लेख– स्वास्थ्य सेवाओं में तेजी से हो रहा सुधार मोदी सरकार के नेतृत्व में

       महात्मा गांधी ने कहा था कि राजनीतिक स्वतंत्रता से ज्यादा जरूरी स्वच्छता है। स्वच्छता ही स्वस्थ होने की पहली सीढ़ी है। ऐसे में पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल को देखें तो पता चलता है, उनका दृष्टिकोण ही स्वस्थ समाज के निर्माण पर शायद...

लेख– गणतंत्र में गण की पूछ कहीं कम तो नहीं हो रहीं?

संविधान की प्रस्तावना की शुरुआत होती है, हम भारत के लोग। इसका निहितार्थ यहीं है, कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और कच्छ से लेकर असम तक हम सब एक है। ऐसे में जब हम गणतंत्र दिवस इस वर्ष मनाने जा रहें। फ़िर हमें विचार करना चाहिए, कि क्या हम सभी वास्तव में एक है। फ़िर वह...

लेख– मोदी सरकार के नेतृत्व में तेज़ी से बढ़ रही देश की अर्थव्यवस्था!

   किसी देश की समृद्धि और खुशहाली का पैमाना उसकी आर्थिक नीति और स्थिति पर निर्भर करता है। वर्तमान दौर में अगर भारत ब्रिटेन को पछाड़कर वैश्विक अर्थव्यवस्था के मामले में पांचवे स्थान पर पहुँचने वाला है। तो यह देश के नागरिकों और खासकर वहां की तत्कालीन रहनुमाई तंत्र के...

लेख– सिनेमा कहीं अश्लीलता परोसने और व्यवसाय तक ही सीमित तो नहीं हो रहा!

कहते हैं, एक दृश्य हज़ार शब्दों के बराबर होता है, और दृश्य-श्रव्य संचार का सशक्त माध्यम होता है। तो सिनेमा जो उपयुक्त का मिला-जुला स्वरूप है। क्या आज के दौर में अपने उद्देश्य को सार्थक कर पा रहा। तो इसका जवाब काफ़ी हद तक नकारात्मक ही मिलेगा, क्योंकि सामाजिक और...

लेख– आख़िर हम मानवीय मूल्यों को क्यों बिसारते जा रहें?

बीते दिनों उसी राजधानी नई दिल्ली के पांडव नगर और मयूर विहार में दो युवकों की हत्या रोडरेज की वज़ह से कर दी गई। जिस दिल्ली को आम बोलचाल की भाषा में कहते हैं, दिल्ली है दिल वालों की। फ़िर ऐसे में काहे का दिल और दिल्ली? हम मानसिक रूप से इतने कमजोर और असहनशील होते जा...