महात्मा गांधी ने कहा था कि राजनीतिक स्वतंत्रता से ज्यादा जरूरी स्वच्छता है। स्वच्छता ही स्वस्थ होने की पहली सीढ़ी है। ऐसे में पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल को देखें तो पता चलता है, उनका दृष्टिकोण ही स्वस्थ समाज के निर्माण पर शायद नहीं था। भारत की आत्मा गावों में बसती है। लेकिन पूर्ववर्ती सरकारें पिछले सात दशक में गांवों तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मयस्सर करा नहीं पाई। जो उनकी नाकामयाबी ही समझ आती है। देश को सेहतमंद बनाना है तो इसके लिए गावों के आधारभूत ढांचे में सुधार लाना होगा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भी कहना था,  कि सरकार की योजनाओं की कसौटी अंतिम जन होता है। यदि जन तक किसी भी लोक – कल्याणकारी योजना का लाभ नहीं  पहुंच रहा है इसका मतलब है कि वह योजना धरातल पर सफल नहीं हो पाई है। ऐसे में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार जो गांधी पर अपना हक़ दिखाती, वहीं उनके विचार से कन्नी काटती। फ़िर क्या सामाजिक लक्ष्य समझें उसके राष्ट्रीय पार्टी होने के। 

        महात्मा गांधी का कहना था, कि यदि कोई व्यक्ति स्वच्छ नहीं है तो वह स्वस्थ नहीं रह सकता। ऐसे में भारतीय राजनीति में 2014 के बाद का कालखंड स्वच्छता के लिहाज़ से स्वर्णिम काल कहा जा सकता। केन्द्र में मोदी के नेतृत्व में आई भाजपा  ने जन-स्वास्थ्य जैसे विषय को भी जन आंदोलन बनाने का कार्य किया। केंद्र की भाजपा सरकार ने न सिर्फ़ ‘ सबका साथ सबका विकास ‘ का नारा दिया। अपितु सबके स्वास्थ्य की तरफ़ ध्यान भी केंद्रित किया। जिसके फलस्वरूप महात्मा गांधी के विचारों को ध्यान में रखते हुए सर्वप्रथम देश के गांवों और शहरों को स्वच्छ बनाने की मुहिम छेड़ी। जो देखते देखते जन आंदोलन में तब्दील हो गया। प्रधानमंत्री ने अपने एक व्यक्तव्य में कहा कि हम कम ख़र्च में मंगल तक पहुँच सकते, तो क्या गली-मुहल्ले साफ नहीं कर सकते। उनके इस कथन से स्पष्ट है, कि वर्तमान की केंद्र सरकार स्वच्छ और स्वस्थ भारत के लिए किस स्तर तक समर्पित है। यह बेहतर समाज के निर्माण का कर्त्तव्य बोध ही है, कि मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत, तो स्वस्थ भारत का नारा दिया। जो पूर्ववर्ती सरकारों के एजेंडे से बाहर था। मोदी सरकार ने स्वच्छता से ही स्वस्थ में सुधार होगा, इसको समझा। तभी शहरी क्षेत्रों को स्वच्छ बनाने के लिए के लिए 1.04 करोड़ परिवारों को लक्षित करते हुए 2.5 लाख सामुदायिक शौचालय, 2.6 लाख सार्वजनिक शौचालय और प्रत्येक शहर में एक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा प्रदान करने का संकल्प लिया। वहीं इस कार्यक्रम के तहत आवासीय क्षेत्रों में जहां व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों का निर्माण करना मुश्किल है वहां सामुदायिक शौचालयों का निर्माण करने का लक्ष्य रखा। तो वहीं ग्रामीण भारत को भी बेहतर स्वस्थ सुविधाएं देने की सरकार ने कर्तव्यनिष्ठता व्यक्त की।

     एक सरकारी आंकड़ें के मुताबिक वर्ष 1947 से लेकर 2014 तक सिर्फ़ 6.5 करोड़ शौचालयों का निर्माण देश मे किया गया,  जबकि वर्ष 2014 से लेकर 2018 के बीच 7.25 करोड़ शौचालय का निर्माण हुआ। वहीं सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2013-14 के बीच कांग्रेस के नेतृत्व में देश की स्वच्छता कवरेज 38.70 % थी, जबकि 2014-18 तक 83.71 % रही। सरकार के आंकड़े कहते हैं, कि अब तक देशभर में लगभग 84 करोड़ शौचालय स्वच्छ भारत अभियान के तहत बनाए जा चुके हैं। अब आसानी से समझ सकते कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार जो देश में अधिकतर समय सत्ता सिहांसन पर काबिज़ रहीं। शायद उसकी प्राथमिकता में सबसे पहली प्राथमिकता स्वच्छता भी नहीं थी। फ़िर जन सरोकार के विषयों पर उसके कर्तव्यनिष्ठ होने की उम्मीद करना बेईमानी ही लगता है।

     वहीं स्वच्छता के बाद मोदी सरकार का ध्यान जन स्वस्थ में सुधार का है। जन स्वास्थ्य को लेकर भाजपा सरकार की प्राथमिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता, कि 2018 के बजट में स्वास्थ्य की मद में 27 फ़ीसदी ज़्यादा रकम की बढ़ोतरी की गई। इसके अलावा मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सरकार ने डायबिटीज, हाइपरटेंशन, और सामान्य कैंसर के सब- सेंटर और प्राइमरी हेल्थ सेंटर पर स्क्रीनिंग करने की सुविधाएं भी दे रही। इसके अलावा हार्ट स्टेंट के लिए कीमतों की सीमा भी सरकार ने तय की है। बेयर मेटल स्टेंट 7,260 रुपये जबकि मैटेलिक और बायोडिग्रेडेबल स्टेंट समेत ड्रग एल्युटिंग स्टेंट यानी डीईएस 29,600 रुपये तक की कीमतों में अब मिलेंगी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस तरह से स्टेंट की कीमतों में 85 फ़ीसदी तक की कमी आ गई है। जो यह दर्शाता है, कि मोदी सरकार जन स्वस्थ को लेकर सचेत है।

     इसके अलावा मोदी सरकार ने के तहत  देश के कमज़ोर इलाकों में मेडिकल शिक्षा, रिसर्च और क्लीनिकल केयर में सुधार लाने के साथ-साथ हेल्थकेयर की क्षमता बढ़ाने की दिशा में कार्यरत है। वहीं मोदी सरकार ने 13 एम्स की स्थापना की घोषणा 2014 में ही कर चुकी है। वहीं सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक 70 मेडिकल कॉलेजों में सुपर स्पेशलिटी ब्लॉक भी मोदी सरकार के नेतृत्व में बनाये जा रहे हैं। इनके अलावा दो नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट, 20 स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट और विशेष इलाज और सुविधाओं से लैस 50 कैंसर केयर सेंटर भी बनाये जा रहे हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना जन आरोग्य योजना (आयुष्मान भारत) देश  को समर्पित किया। 2018 में स्वास्थ्य के मद पर 56,226 करोड़ रुपये आवंटित हुआ। ऐसे में समझ सकते 2014 के बाद लगातार स्वास्थ्य के मद पर बजट में बढ़ोतरी हुई है। अब बात आयुष्मान भारत यानी प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना की करते हैं। तो मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आयुष्मान भारत के शुरुआती सौ दिनों में 6.85 लाख लाभुकों ने नि:शुल्क उपचार कराया है और पांच लाख से अधिक लोगों के उपचार के दावे का निपटारा करते हुए उसके लिए धन भी मुहैया करा दिया गया है। इस योजना के अंतर्गत कार्यरत प्रणाली की कार्यक्षमता का अनुमान इस बात से पता किया जा सकता कि हर दिन पांच हजार दावों का निपटारा हुआ है। चालू वित्त वर्ष के अंत तक 25 लाख लोगों को उपचार की सुविधा उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। तो वहीं इस महत्वाकांक्षी योजना में 10 करोड़ से अधिक परिवारों यानी अमूमन देश की 40 प्रतिशत जनसंख्या को अस्पतालों में भर्ती होकर उपचार कराने का अवसर मिलेगा। वंचित तबक़े के परिवार देश के 16 हजार अस्पतालों में हर साल पांच लाख रुपये तक का उपचार करा सकते है। इस योजना के अंतर्गत वंचित तबक़े का स्वास्थ्य पर व्यय का 60 प्रतिशत भाग केंद्र सरकार को वहन करना है तथा शेष योगदान राज्यों का होगा। ऐसे में समझ सकते कि मोदी सरकार गांधी के स्वच्छ भारत,  स्वास्थ्य भारत की परिकल्पना को पंख देने का कार्य तेजी से कर रहीं, बशर्तें उसके पास कार्य करने का समय कम है।