किसी देश की समृद्धि और खुशहाली का पैमाना उसकी आर्थिक नीति और स्थिति पर निर्भर करता है। वर्तमान दौर में अगर भारत ब्रिटेन को पछाड़कर वैश्विक अर्थव्यवस्था के मामले में पांचवे स्थान पर पहुँचने वाला है। तो यह देश के नागरिकों और खासकर वहां की तत्कालीन रहनुमाई तंत्र के लिए यह बड़ी उपलब्धि होगी। वैसे एक बात स्पष्ट होनी चाहिए। भारत को एक वक्त सोने की चिड़िया कहा जाता था। ऐसे में समझ सकते कि सोने की चिड़िया कहलाने के पीछे का मक़सद क्या रहा होगा। आज जब हमारी अर्थव्यवस्था विकासशील देश होने के बाद भी विकसित देशों के समानांतर पहुँच रहीं। ऐसे में आर्थिक इतिहासकार एंगस मैडिसन की माने, तो हमारी अर्थव्यवस्था पहली सदी से दसवीं सदी तक विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। इनके मुताबिक पहली सदी में भारत का सकल घरेलू उत्पाद विश्व के कुल जीडीपी का लगभग 33 फ़ीसदी के करीब था। जो आज की 2019 की स्थिति से काफ़ी अधिक था। ऐसे में यह दीगर होना चाहिए, कि अगर पहली सदी में हमारी अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी, और आज के समय में पांचवे स्थान पर पहुँचने वाली है। तो भारत की अर्थव्यवस्था के पिछड़ने का कारण ब्रिटिश काल में भारत की अर्थव्यवस्था का जमकर शोषण होना और आज़ादी के बाद भी भारतीय रहनुमाई व्यवस्था सिर्फ़ अपने हित के लिए लम्बे समय तक कार्यरत रहना रहा। 
     आज वैश्विक अर्थव्यवस्था के पैमाने पर भारत जो कीर्तिमान बनाने जा रहा है। उसकी परिकल्पना शायद ही किसी ने देश की आज़ादी के समय किया हो, क्योंकि आज़ादी से पूर्व लगभग दो सौ वर्षों के अंग्रेजी औपनिवेशिक काल में भारतीय अर्थव्यवस्था को लूट कर खंडहर में तब्दील कर दिया गया था। आज़ादी के बाद भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था की राह पकड़ा। आज़ादी के पश्चात भी कई बार ऐसा दौर आया जब भारतीय अर्थव्यवस्था लड़खड़ाई। 1991 में जब भीषण आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा, तो देश का सोना भी गिरवीं रखना पड़ा। ऐसे में उस दौर में शायद ही कोई यह उम्मीद कर रहा होगा, कि एक समय ऐसा भी आएगा जब भारत विकसित देशों के समकक्ष खड़ा हो पाएगा।
    आज भारत विश्व मे तेज़ी से अर्थव्यवस्था के मामले में बढ़ रहा है। 2018 में ही हमारे देश ने यूरोप के विकसित देश फ्रांस को पछाड़ते हुए विश्व की छठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया था। बिजेनस स्टैंडर्ड के मुताबिक 2017 के अंत में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2.597 लाख करोड़ डॉलर रहा, जो फ्रांस के  2.582 लाख करोड़ डॉलर से अधिक रहा था। जिस कारण भारत को विश्व बैंक ने छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में शुमार किया था। इसके बाद अब 2019 में भारत ब्रिटेन को पीछे छोड़कर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। यह बात पीडब्ल्यूसी की वैश्विक अर्थव्यवस्था निगरानी रिपोर्ट बता रही। ऐसे में जिस हिसाब से आज हमारा देश अर्थव्यवस्था के मामले में आगे बढ़ रहा। वह यह साबित कर रहा, कि नोटबन्दी और जीएसटी से देश को नुकसान नहीं हुआ है। इस पर सिर्फ़ विपक्षी दल नकारात्मक माहौल पैदा करके अवाम को भड़काना चाहते हैं। जिससे इन दलों का राजनीतिक अस्तित्व बना रहे। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मानें तो भारत की 2019 में विकास दर 7.8 प्रतिशत रहने वाली है।
      ऐसे में आज जिस दौर में देश के भीतर सभी विपक्षी दल मोदी सरकार को कमज़ोर बताकर एकजुट हो रहें। नोटबन्दी और जीएसटी को मोदी सरकार की सबसे बड़ी भूल बता रहें। उसी दरमियान अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष कहता है, भले ही भारत के लिए बेरोजगारी बड़ी चुनौती है।  लेकिन सरकारी कदम सकारात्मक दिशा में है। ऐसे में बढ़ती बेरोजगारी के लिए सिर्फ़ मोदी सरकार को दोष देना विपक्षी दल बंद करें। ख़ासकर कांग्रेस और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी, क्योंकि देश में बेरोजगारी आदि आज चरम पर है। तो इसके लिए जिम्मेदार कहीं न कहीं यूपीए की पिछली सरकार है। जिस दौरान सिर्फ़ देश घोटालों का अड्डा बन गया था। आईएमएफ ने कहा कि हाल के बरसों में जहां चीन की वृद्धि दर नीचे आ रही है। वहीं, भारतीय अर्थव्यवस्था ऊपर की ओर बढ़ रही है।
    फ़िर कुल मिलाकर हम उम्मीद कर सकते कि आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व के विकसित देशों से भी आगे निकल सकती। जैसा कि एचएसबीसी की रिपोर्ट भी कह रही। एचएसबीसी की एक रिपोर्ट कहती है, कि भले वर्तमान दौर में वैश्विक जीडीपी में भारत का हिस्सा सिर्फ़ तीन फीसदी हो। लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था में वृद्धि की प्रवृत्ति यह जरूर बयाँ कर रही कि यह अगले दशक में जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए, दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक भारत वित्त वर्ष 2016-17 में 2300 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था रहा है। लेकिन भारत 2028 तक 7000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। हां तो इसके लिए एक बेहतर कार्य नीति वाली और स्थाई सरकार की ज़रूरत भी है। जिस पर खरा वर्तमान दौर में भाजपानीत एनडीए ही दिखती है, क्योंकि पूर्ववर्ती सरकारों ने जिस हिसाब से देश का धन स्वहित और घोटालों के नाम पर लुटा। वह देश की अर्थव्यवस्था को बट्टा लगाने वाला ही साबित होता है। तो ऐसे में अगर पूर्व रिजर्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन की सिफारिशों जैसे कि बैंकों के पुनर्पूंजीकरण और उच्च कॉर्पोरेट निवेश के रास्ते में आने वाली मुश्किलो को कम करने के अलावा देश को स्थाई सरकार अगले एकाध दशक के लिए मिलती है। जो रघुराम राजन के सुझाव पर अमल भी करें। तो पहली सदी में जितना हिस्सा भारत का वैश्विक अर्थव्यवस्था में था। वह तो हासिल नहीं कर लेगा। लेकिन एक बेहतर स्थिति में भारत स्थापित होता जरूर वैश्विक परिदृश्य में दिख सकता है। जहां पहुँचने की परिकल्पना शायद किसी ने देश की आज़ादी के वक्त की हो?