महान पुरुषों के पूर्वापर की चर्चा !

भोर का तारा -नरेन्द्र मोदी .

उपन्यास -अंश :-

मुझे भी नींद ने आ कर घेर लिया था ! मन था कि डट कर सोऊँ ? कहा-सुना सब भूल कर मैं …निद्रा की गोद में बैठ विश्राम कर लूं,मेरा मन था ! अतः अपने सारे-के-सारे सजीले सपनों को सिरहाने रख , में सो गया था …!!

आँख खुली थी तो …दिन का अवसान था ….?

क्या करू….? कहाँ जाऊं …? कुछ भी तय न था ! न मेरा मन ही था कि मैं कहीं जाता …? दिमाग में एक रिक्तता थी . राजनीति के प्रति घोर वित्रष्णा थी….और अफसोस था कि …लोग कितनी-कितनी डर्टी -ट्रिक्स खेलते हैं …प्रपंच रचते हैं …और अपने ही देश-वासियों को ठगते हैं …? मन था कि उठू….और …गुजरात की ओर भाग लूं ….

“आफिस से फोन था , सर …!” मुझे सूचना मिली थी . “हमने कहा – बता देंगे ….सो रहे हैं …!”

“ठीक है !” मैंने स्वीकार में सर हिलाया था और …आफिस जाने के लिए निकल लिया था .

न जाने क्या हुआ कि …दिल्ली को देखने …समझने की …एक नई जिज्ञासा का जन्म ….हुआ था ! पहले जैसी बे-खबरी न थी . निगाहें पढ़ रहीं थीं – पंढारा रोड …. शाहजहाँ मार्ग ….औरंगजेब रोड ….अकबर रोड ….लोधी रोड ….और फिर खिलजी …तैमूर …और तुर्कमान गेट …से ले कर …पूरा-का -पूरा गुलामी का इतिहास मैं बांचता ही चला गया था …? लगा था – ये दिल्ली नहीं कोई और ही शहर था ? किसी मुग़ल सम्राट के साम्राज्य में घुस आया था – मैं ….गलती से …..?

अचानक जब मैंने अशोक रोड पढ़ा तो …जांन में जांन आई …!

मैं भाग कर आफिस में घुस गया था . मैंने अपने उसी कमरे में जा कर दम लिया …जहां मैं वर्षों बैठा था …और मैंने पार्टी का काम किया था ! जो सज्जन कुर्सी पर बैठे थे …वो मुझे आया देख उछल पड़े …!

“सर, अ अ अ …आप …?” उन के स्वर काँप गए थे . “म मम्म मैं बैठता हूँ ….अब आप के कमरे में …सर …..?”

“अच्छी बात है …?” मैंने हँसते हुए कहा था . “मैं तो मात्र देखने चला आया था …?” मैंने सहज स्वभाव में कहा था .

पलट कर देखा तो लोगों का एक हुज्जूम जमा हो चुका था !

“आप का इंतज़ार था,सर …?” मुझे उल्हाना मिला था . “सब लोग आप से मिलना चाहते हैं …? बाहर से भी लोग आए हैं !” कार्य कर्ता बता रहे हैं . “क्यों न प्रेस -कांफ्रेंस हो जाए ….?” उन का प्रश्न था .

“हो-जाए ….!!” मैंने बे-फिकरी के साथ कहा था . अब मैं डर न रहा था …? अब मैं अपने – माने की अशोक के …राज्य में आ कर खड़ा हो गया था …!! “चलिए ….!!” मैं उन के साथ चल पड़ा था .

बस, यों ही मंच पर खड़े-खड़े प्रेस -कांफ्रेंस आरंभ हो गई थी !

“गुजरात में आपने फिर से मोर्चा मार लिया , बधाई …..?” कार्य-कर्ता कह रहे थे .

“धन्यवाद ….!!”मैं ने नम्रता पूर्वक हाथ जोड़ कर उत्तर दिया था . “बिना आप के सहयोग के ये सब संभव न था …?” मैं फिर बोला था . “पार्टी का वरद-हस्त सर पर होना ….नितांत आवश्यक होता है …?” मैं कहता रहा था .

“दो सीटें …कम रह गईं, सर ….?” तीर की तरह तुरंत प्रश्न आया था …और मेरा सीना भेद कर निकल गया था . लोग आप को क्षमा नहीं करते …मैं सोचने लगा था . “हम लोग तो १३० की गिनती ले कर बैठे थे ….?” एक हंसी फूटी थी और फिजा पर फ़ैल गई थी .

मैं कुछ न बोला था ….!!

“सुना है , आप दिल्ली आ रहे हैं ….?” प्रश्न था – कांग्रेस वालों का प्रश्न था , मैं ये जानता था .

कांग्रेस पार्टी अब मेरे साए तक का पीछा कर रही थी – यह सर्व-विदित था ….!!

“आ …तो …गया ….?” मैंने भी एक ठसके के साथ उत्तर दिया था .

सब लोग हंस पड़े थे . खूब हँसे थे …हम लोग ….??

“सर, पार्टी में जोरों की चर्चा है कि …आप का विरोध ….” भगत चाय पीते-पीते बताने लगा था . “कह रहे हैं – मोदी तो एक अफवाह है …? नाम तो कोई ….और ही …..?”

“हाँ,हाँ ! नाम तो कोई भी हो सकता है ….?” मैंने हामीं भरी थी …और अपनी कोई राय व्यक्त न की थी .

“कुछ लोग तो यहाँ तक कह रहे हैं कि …अगर मोदी का नाम आया भी तो …..पार्टी की नाक जाती रहेगी ….?” फुस-फुस बातें हो रहीं थीं . “ये ….आदमी ….भला ….पी एम् ….? शर्मा जी तो ….दल छोड़ कर भाग जाएंगे …..”

मैं सब कुछ सुन रहा था …और …कुछ भी नहीं सुन रहा था …! मैं भी तो जानता था कि मेरा नाम …निर्विरोध तो आएगा ही नहीं ….? मैं जानता था कि …जो मेरे अपने थे – वही मेरे नहीं थे …? जिन के लिए मैंने तन-मन और धन से काम किया था – जांन तक लड़ाई थी ….वो मेरा विरोध अवश्य ही करेंगे ….?

मैं आफिस छोड़ कर भागा था . मैं अब दिल्ली में खो जाना चाहता था . मैं खोज लेना चाहता था – अपनी राहें ….अपनी चाहें …और मैं देख लेना चाहता था …अपनी उस मंजिल को ….जहाँ के लिए मेरा मन …आने के लिए बन चुका था ….?

“जामा मस्जिद है – ये …!” मैं सुन रहा था . “इसे बनवाया था ….अररे ..रे ..! नहीं ….रे ….? ये तो हनुमान मंदिर था …? इसे तुडवा कर मस्जिद बनाई थी ! और ये लाल किला भी तो …प्रथ्विराज चौहान के नाना ने बनवाया था …? लेकिन मुसलमानों ने सब अपने नाम लिख लिया ….?

मैं अब भाग खड़ा हुआ था ! पुराने किले के चारों ओर बने …तालाब पर आ बैठा था . मेरे विचार उड़ रहे थे ! मन बिदक गया था …? सत्ता के गलियारों में …अकेला…डोलता मैं …डर रहा था ….!!

“कैसे ….कैसे …आ सकते हो ….तुम …दिल्ली ….?” मैं …कुछ अपुष्ट आवाजें सुन रहा था . “अरे,भई …? हम ही तो रहते हैं , यहाँ …? ये देखो ! ये रहा -मेरा मज़ार …? वो रही ….कब्र …और वो किला मेरा है …? हम गए कहाँ हैं …? देश ….दिल्ली …सब हमारा ही तो है …? हमने जीता था -इसे जंग में …? तलवार के जोर से हमने ….

हाँ,हाँ ! इस्लाम तलवार के जोर पर ही फला-फूला था …मैं समझ गया था ….!!

धर्म से ज्यादा इस्लाम एक खौफ था …जिसे लोगों ने डर की वज़ह से अपनाया था …? लेकिन हिन्दू-धर्म एक औषधि जैसा था – मनोमालिन्य हरता …सुख देता …सम्रद्ध बनाता …एक प्रिय साधन जैसा था ….? तभी ये जिन्दा रहा ….और इन शैतानों के सायों के बीच …बैठा ही रहा …और अब …..?

“थेंक यूं …मोदी जी ….!!” अचानक मैंने एक आवाज़ सुनी थी . “आप का फोटो ले लिया ….?” वह सुंदर लड़की बता रही थी . “मैं -सुनीता …? एक्सप्रेस से ….!” उस ने अपना परिचय भी दिया था . “एक प्रश्न ….?” वह फिर मेरे पास चली आई थी .

लेकिन न जाने क्यों मैं उठा था …और भाग लिया था …..!!

मैंने मुड कर उस लड़की को नहीं देखा था ! मैंने मुड कर दिल्ली को भी नहीं निरखा था !! कुछ नहीं …पढ़ा था …कुछ नहीं …सुना था ….! मैं भागने की जल्दी में था . दिल्ली से कहीं दूर जाने की सोच रहा था ….?

तभी मुझे याद आया था कि मैं माँ से मिलने तो गया ही न था ….?

“इतनी …बड़ी …भूल …..?” मैंने अपने आप को ललकार कर पूछा था . “भूला …क्यों …मैं …माँ को ….?” मैं अधीर हो उठा था .

“कहाँ हो ….?” अमित का फोन था . “लोग पागल हो रहे हैं …..?” वह कह रहा था .

“माँ से मिल कर लौटूंगा …!!” मैंने संक्षेप में …अपना दो टूक उत्तर दिया था .

“मैं भी ….आ जाऊं …?” अमित ने चहक कर पूछा था .

कितना प्यारा है- ये अमित ….? लो …! मैं अपने सारे गम भूल गया हूँ !

“आ-जा-ना ….!!” मैं गहक कर बोला हूँ . आवाज़ आद्र है . “पा-जी ….!!” मैंने उसे हमेशा की तरह नाम दिया है !!

मेरा वशीकरण मंत्र है – ये अमित !!!!

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शेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

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