“आप की हो गई?” मैंने भी उसी से पूछा है।
“नहीं!” तनिक शरमा कर उसने उत्तर दिया है।
आरक्त गालों की छटा मोहक बन गई है। अन्य सभी ने एक दूसरी को नोचा-खोंचा है और सामने वाली ने बाजू वाली के कंधे में दांत गाढ़ दिए हैं।
“ओई मां!” कह कर बाजू वाली चीखी है।
एक हंसी – खिलखिलाती दोपहरी जैसी घाम की तरह हर रीते मन को किसी चुटैले उजास से भर गई है।
“कहीं मेरा इंतजार तो नहीं कर रहीं आप?” मैंने निष्प्रह ढंग से पूछ लिया है।
पल भर का सन्नाटा, घुसुर-पुसुर, दबी-दबी हंसी और वही मचलना, मुंह बनाना जारी रहा है। हसीना की हालत देखने के काबिल बन गई है। लगा है उसके मन का चोर मेरे हाथ में सोटी और लंगोटी दोनों पकड़ा कर सामने सजा भुगतने को खड़ा है। पर मैं सजा देने के लोभ में सजा पा जाने के जुर्म से डर रहा हूँ।
“आप बहुत मजाकिए हैं।”
“खुले दिल के हैं!”
“हाथ भी खुला रखते हैं।”
“पर दिल पर तो डीग का फाटक चढ़ाया हुआ है।”
“नहीं रे! वहां भी कोई एक बस गई है।”
“कौन है यार? सो लकी!”
“ये है – बैरागिन!” सोफी का फोटो फिर सामने आ गया है।
“देसी माल पसंद नहीं आता?” सीधा शूल जैसा सवाल एक ने मेरे मन में चुभो दिया है।
मैं अब भी सोफी को विदेशी या देशी के पचड़ों से नहीं जोड़ पा रहा हूँ। प्यार में प्रतिबंध नहीं होता। देश, जाति या धर्म का सवाल प्यार को सटक जाता है – मैं जानता हूँ। और ये भी जानता हूँ कि इस इंपोर्टिड माल से शीतल के अलावा अन्य कुंवारी किशोरियां भी जलती हैं। ईर्ष्या औरत का असली स्वरूप है इसलिए मैं डर भी रहा हूँ और सभी लंबे छोटे तानों को तीर की तरह सहने को संभल गया हूँ।
“सुना है – आप सैडिस्ट हो गए हैं?” उसी अनिंद्य सुंदरी ने मुझ पर सरे आम तोहमत थोप दी है।
“गलत सिद्ध करने के लिए सबूत तो पेश करना होगा। ओके, सब लोग आज रात आठ बजे पार्टी में आ जाएं!” मैंने महान घोषणा की है।
सहसा मुझे गो गैटर वाला वायदा याद हो आया है।
“कहां?” एक ने पूछा है।
“कहां? वेट ए मिनिट प्लीज!” कह कर मैं अंदर ऑफिस में जा घुसा हूँ। ओबेरॉए? हां-हां! वैल दैन, सी यू! कह कर लौटा हूँ। “आप लोग ओबेरॉए इंटरकॉनटिनैंटल में पहुँच जाएं!” मैंने सफाई के तौर पर कहा है।
“हम दस हैं?”
“एक और को साथ ले आइए ताकि संपूर्ण इकाई टूट जाए!” मैंने अभी भी महान बनने की कोशिश जारी रक्खी है।
“सी ..? ही इज सो ग्रेट!” उसी सुंदरी ने कह कर मेरी नजरें पकड़ ली हैं। सौंदर्य की पूजा करके कृतार्थ हुई मेरी निगाहें लौटी हैं तो वो इस तरह शरमाई है जिस तरह लाजवंती का बिरवा तनिक स्पर्श पर सिकुड़ जाता है। सहसा मैंने अपने आप को इस दलदल से ऊपर खींचा है। यों हर बार धंस कर निकलना पैर गीले करने के सिवा कुछ भी नहीं है। बानी का करुणांत चेहरा सहसा सामने घूम गया है।
“सी यू ऐट एट ओ क्लॉक!” कह कर मैं चलता बना हूँ।
घड़ी में समय देखा है तो कुल छह बजे हैं। दिन इतना लंबा कभी नहीं लगा और शायद यों निरुद्देश्य घूमना भी कभी इतना नहीं खला जितना कि आज। मुझे लग रहा है कि मैं अपना हर पल – जो कीमती है यों खर्च रहा हूँ ज्यों धप्पल का माल हो और अल्लपों में उड़ा खाना जायज हो!
घर वापस आया हूँ तो फाइल सामने आ गई है। मुक्तिबोध ने कुछ जरूरी कागज भेजे हैं। कुछ पर डिसीजन मांगा है तो कुछ पर हस्ताक्षर करने हैं। मैं बहुत ही तल्लीन हो कर काम में जुट गया हूँ। लगा है – बरसों बाद मुझे कोई काम मिला है। सहसा मुक्तिबोध से बात करने की जिज्ञासा हुई है। मैंने कागजों और फाइलों में सर गढ़ाए-गढ़ाए ही ऑल बुक किया है।
“मुक्ति ..?” मैंने उसे आत्मीयता से पुकारा है।
“यस सर! मैं मुक्ति बोल रहा हूँ!” मुक्तिबोध का विश्वास भरा स्वर सुनता हूँ।
“कैसा चल रहा है?” मैंने पूछा है।
“ऐवरी थिंग इज ओके! और हां आप कब आ रहे हैं?”
“बस! दो-चार काम हैं। सुलझा कर चला आऊंगा!”
“वो तो हो गया सर!”
“हो गया?”
“वैल डन सर, सब हो गया!” मुक्तिबोध ने जैसे मुझे मुबारकबाद दिया हो।
“क्यों, आशा नहीं थी?” मैंने मुक्ति को कुरेदा है।
“आशा ..? रत्ती भर भी नहीं थी सर। आज कल का पॉलिटिकल माहौल भेद कर काम कराना ..”
“मैं जानता था मुक्ति!” मैंने अपनी दूरदर्शिता वाक्य के बीच में ठूंस दी है।
“इंटरेस्टिंग न्यूज सर!”
“यस!”
“श्याम की शादी है। आप के लिए न्योता है।”
“ठीक है! और देखो! मेरी ओर से दस हजार का चेक भेज देना। मैं तो नहीं आ पाऊंगा!” बेबाक स्वर में मैंने कह दिया है।
ये सच मैं पल भर पहले ही सह गया था। शीतल के सामने जाना मुझे अच्छा नहीं लगा है इसलिए चेक भेज कर मुंह बंद करना चाहता हूँ। शीतल क्या करेगी – इसी पर सहमा सा श्याम के भविष्य को परखता रहा हूँ।
मैं ओबेरॉए में दस मिनट पहले पहुंच गया हूँ। कारों की कतारों में अपनी गाड़ी पार्क कर अंदर जा कर मैंने एक नजर से सारी स्थिति जान ली है। बाहर अतिथि सत्कार के उपलक्ष्य में खड़ा मैं मन ही मन कल्पना कर रहा हूँ कि वो किस तरह सज संवर कर आएगी? नवीन क्या उसी कुर्ता पायजामा में चला आएगा? क्या वो नाली और गलियारे की गंध उसके साथ जुड़ी होगी? क्या यहां भी वो भाषण देगा?
पर ऐसा हुआ नहीं है!
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड