“ये तो बाबर से भी बड़ा शैतान है!” लोगों में चर्चा चल पड़ी थी। “चुन चुन कर काटा है राजपूतों को! औरतों और बच्चों को भी नहीं बख्शा!” लोग बतिया रहे थे। “ये तो हिन्दुओं का सबसे बड़ा जानी दुश्मन है।” लोग मान बैठे थे। “ये पंडित हेम चंद्र का मुंह लगाया हिन्दुओं को कुरान की कसम खा कर उल्लू बनाता है।”

चंदेरी में हुई मार काट, नरसंहार और शेर शाह सूरी द्वारा किया विश्वासघात हवा पर तैर रहा था। सब कुछ अशांत था। पूरा हिन्दुस्तान ही अशांत था। हेमू अशांत था और कादिर खान काजी ने तो शर्मसार होकर आत्महत्या ही कर ली थी। प्रजा पालक बना शेर शाह सूरी अब एक जल्लाद था, कट्टर मुसलमान था और हिन्दू विरोधी था।

“आप सा करा क्या रहे हैं?” केसर की भवें तनी हुई थीं। उसने जो सुना था उसपर उसे विश्वास न हो रहा था। “इतना बड़ा नरसंहार और राजपूतों के साथ में ..?” केसर को भी अब उत्तर चाहिये था।

लेकिन बताता क्या हेमू?

“ये आम शिकायत है सुलतान। आदेश दें मैं चंदेरी जा कर तहकीकात करता हूँ और आपको ..”

“नहीं नहीं। ये पूरन मल इस्लाम विरोधी है!” उलेमाओं का तर्क था। “गाजियों की राय में तो इस पूरन मल ने मुसलमान औरतों के साथ वो सुलूक किया है जिसमें इसका सर धड़ से अलग होना ही चाहिये था। गवाही के तौर पर फातिमा बीबी आपके सामने पेश हैं सुलतान। बोलिए बीबी सच सच बयान कीजिए ..।”

“सुलतान! हमें रंडी कहते हैं ये राजपूत।” फातिमा इीइी अब रो रो कर बयान कर रही थी। “हमें नाचने गाने वाली बता कर हमारे साथ .. हमारे साथ ..” चुप हो गई थी बीबी फातिमा।

“बताइये बीबी! खुलकर कहिये – क्या क्या होता है आप लोगों के साथ?”

“सारे कुकरम होते हैं – जहांपनाह।” फातिमा फफक फफक कर रो पड़ी थी।

“बस बस!” शेर शाह सूरी गर्जा था। “मैं भरे दरबार में शपथ लेता हूँ कि इस पूरन मल को मैं मटिया मेट कर दूंगा और चंदेरी की ईंट से ईंट बजा दूंगा।” ऐलान था सुलतान का।

पंडित हेम चंद्र ठगे से, हैरान परेशान से शेर शाह सूरी का चेहरा देखते रहे थे। उनका मन तो हुआ था कि कहें ..

“अब चूहे को शेर बनाने का दंड तो मिलेगा साधू जी महाराज।” हेमू के विवेक ने चुप चाप उसके कान में कहा था। “यहीं .. भरे दरबार में .. सरेआम ये चूहे से शेर बनाया आपका शेर शाह आपका सर कलम कर देगा।”

पसीने छूट गये थे हेम चंद्र पंडित जी के।

गुरु जी की याद आई थी हेमू को। शेर शाह सूरी चंदेरी पर हमला करने दिल्ली से निकला था तो हेमू भी चुपके से केसर के साथ घर चला आया था।

“मैंने कोई अपराध नहीं किया है सुलतान।” एक वफादार सेवक की भांति राय पूरन मल शेर शाह सूरी के सामने हाथ बांधे खड़ा था। “आप न्याय करें – मेरी यही गुजारिश है।” राय पूरन मल ने प्रार्थना की थी।

“पहले किला खाली कर दो।” शेर शाह सूरी ने हुक्म दागा था। “उसके बाद ही बात होगी।”

हुक्म की तामील हुई थी। राय पूरन मल ने किला खाली कर दिया था। शेर शाह सूरी के साथ ही राजपूतों के भी तंबू तन गये थे। किला खाली था और अगली कार्यवाही का हुक्म आना शेष था।

अचानक उस काली अंधेरी रात में शेर शाह सूरी के सैनिकों ने उन साथ में ही लगे राजपूतों के तंबुओं पर धावा बोल दिया था। मार काट, खून खराबा और मची हाय हत्या में पूरी कायनात गारत हो उठी थी।

“राजपूत महिलाओं को जौहर के लिए कहो क्षत्राणी।” राय पूरन मल ने एक वीर पुरुष की तरह आदेश दिये थे। “मैं नहीं चाहता कि मलेच्छों के हाथों तुम्हारी लाज लुटे।” उसने अपनी पत्नी को संकेत दिये थे। “और मेरे योद्धाओं एक दूसरे का सर काट दो।” राय पूरन मल का आदेश था। “हम इन शैतानों के हाथ नहीं मरेंगे।”

एक आश्चर्यजनक दृश्य उठ खड़ा हुआ था।

जहां राजपूतानियां आग के अथाह सागर में कूद कूद कर जान झोंक रही थीं वहीं राजपूत वीर सैनिक एक दूसरे का वध कर रहे थे। खून का दरिया बह निकला था। सुबह के सूरज के निकलने से पहले ही चंदेरी की कहानी समाप्त हो चुकी थी।

शेर शाह सूरी ने खाली किले पर अधिकार कर लिया था।

“दोश तो मेरा ही है केसर।” हेमू ने स्वीकार किया था। “ये सब भी मैंने ही सिखाया इसे।” हेमू ने हामी भरी थी। “लेकिन मैं ये नहीं समझ पाया था कि मैं एक शैतान को गलत शिक्षा दे रहा था। मैं तो इसे आदमी समझ बैठा था, केसर।”

शर्म से हेमू का सर केसर के सामने झुक गया था।

“राजपूतानियां आग में कूद कूद कर मरें, प्राण झौंकें और राजपूत एक दूसरे का सर काट काट कर अलग से बलिदान करें?” केसर कहने लगी थी। उसके सीने में दम घुटा जा रहा था और वो चंदेरी में हुई घटना को पचा नहीं पा रही थी। “क्या ये आपकी दी शिक्षा है साजन?” केसर का सीधा प्रश्न था।

हेमू चुप था। शांत था। अंदर विद्रोह का ठाठें मारता समुंदर वह रोके खड़ा था। वह गलत समय पर गलत कदम नहीं उठाना चाहता था। लेकिन अब जब केसर ने उसे कुरेद दिया था तो वह आग के शोलों जैसा जलने लगा था।

“मैं तो इसे बहादुरी नहीं मानता।” हेमू बोला था।

“कल को हमारा हिन्दू राष्ट्र होगा तो क्या हम भी इस उदाहरण को अपनाएंगे?” केसर बोलती ही जा रही थी। “मैं तो .. मैं तो साजन रण चंडी हूँ।” केसर की दांती भिंच गई थी। “अगर ऐसा कोई वक्त मुझ पर आया तो मैं तो मरने से पहले मार कर ही दम लूंगी!” केसर की आंखें चमकने लगी थीं। “मैं तो साजन ..”उसका गला रुंध गया था। उसे गहरा रोष था चंदेरी में घटी घटना पर।

“हम इस उदाहरण को अपनी शिक्षा में शामिल नहीं करेंगे केसर।” आश्वासन दिया था हेमू ने। “हम वीरता और बलिदान के नए आयाम कायम करेंगे।” हेमू का कहना था। “मुगलों और अफगानों से लड़ने के लिए हमें भी सोच बदलना होगा केसर।” हेमू बताने लगा था। “मैंने साथ रहकर सुलतान सिकंदर से लेकर इब्राहिम लोधी और अब शेर खान तक को पढ़ा है। मैंने जाना है केसर कि शैतान से जीतने के लिए शैतानों की ही जरूरत है – इंसानों की नहीं।”

“मेरा मन अब इन शैतानों को मिटाने का है, साजन!” केसर ने हेमू के कंधे पर सर रखकर आग्रह किया था।

“मैं तुम्हारे साथ हूँ प्रिये!” हेमू आद्र हो आया था।

हेमू और केसर के आगमन की अफवाहों ने सारे वातावरण को सजग कर दिया था। लोग तरह तरह की बातें करने लगे थे। कुछ को तो विश्वास था कि अब हेमू शेर शाह सूरी के दरबार में न लौटेंगे। शेर शाह सूरी की बदनामी जोरों शोरों से फैल रही थी। लोगों को घोर निराशा हुई थी और हिन्दुओं का तो मनोबल ही टूट गया था।

“प्रणाम ..” हेमू ने गुरु जी के चरण स्पर्श कर अभिवादन किया था।

गुरु जी ने निगाहें उठा कर हेमू को देखा था तो उन्हें एक शहंशाह का स्वरूप कुछ सहमा सहमा सामने आ खड़ा हुआ लगा था।

“हार गये ..?” गुरु जी ने एक अप्रत्याशित प्रश्न पूछ लिया था।

“आपने हारने के लिए तो नहीं कहा था?” हेमू ने हंस कर उत्तर दिया था। “कुछ शेष प्रश्न हैं – जिनका उत्तर पाने चला आया हूँ।” हेमू ने अपने आने का आशय स्पष्ट किया था। “केसर भी आई है।” उसने सूचना दी थी।

अब केसर ने भी गुरु जी के चरण स्पर्श किये थे और सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद लेकर गुरु माता के पास चली गई थी।

अब दोनों गुरु शिष्य आश्वस्त होकर आमने सामने बैठे थे। एक लम्बा अंतराल दोनों के बीच आ बैठा था। लेकिन हेमू की गौरव गाथा गुरु जी के पास किये पुण्य कर्मों की तरह धरी थी। उन्हें अटूट विश्वास था कि हेमू हिन्दू राष्ट्र की स्थापना अवश्य करेगा। लेकिन उसका आज यों सकारण लौटना उन्हें शक में डाल रहा था।

“चंदेरी की घटना घटी – इसके लिए मैं शर्मिंदा हूँ गुरु जी।” हेमू बोला था।

“तुम्हें इसका दोश जाता ही नहीं हेमू!” गुरु जी की आवाज स्वस्थ थी। “यह तो होना ही था – और आगे भी यही होगा।” उनका कथन था।

“लेकिन क्यों गुरु जी? मैंने तो पूर्ण प्रयत्न किये थे कि किसी तरह हिन्दू मुसलमान साथ साथ आ जाएं और हम ..”

“ये कभी नहीं होगा वत्स!” गुरु जी साफ नाट गये थे। “तुम्हें शायद ध्यान नहीं रहा कि मैंने तुम्हें बताया था – उस्मानिया और खुरासान के बारे मैं!” उन्होंने आंख उठा कर हेमू को देखा था। “वहां के आदेश हैं हेमू कि भारत को एक इस्लाम देश बनाना है। हर कीमत पर इन्होंने हमारा धर्म और हमारी संस्कृति नष्ट कर देनी है और यहां इस्लाम को रोप देना है। ये सारे शासक उन्हीं के आदेशों के गुलाम हैं।”

हेमू चुप था। हेमू के सामने तीन शासक आ खड़े हुए थे। उन तीनों के आचरण समान थे। हिन्दुओं के प्रति उन तीनों का एक ही दृष्टिकोण था। उन तीनों ने हिन्दुओं को मिटाने के लिए हर संभव प्रयत्न किये थे। और आज ये शेर शाह सूरी ..?

“विकास और सामाजिक सुधारों का ठीक रास्ता चुना है तुमने!” गुरु जी ने प्रशंसा की थी हेमू की। “ये सब हमारे काम आएंगे .. और जब हम ..”

“अपना हिन्दू राष्ट्र स्थापित होगा .. तब ..?” तनिक हंसा था हेमू। “लेकिन काम बहुत कठिन है गुरु जी।” एक लंबी श्वास छोड़ी थी हेमू ने!

“आशीर्वाद दे तो रहा हूँ।” विहंस कर बोले थे गुरु जी। “तुम नहीं डूबोगे, वत्स!” गुरु जी बहुत प्रसन्न थे।

मेजर कृपाल वर्मा

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