अभी तक ये तय नहीं हुआ था कि मृत सिकंदर लोधी को कहां पनाह मिलेगी लेकिन ये तो तय हो चुका था कि अब सिकंदर लोधी का साम्राज्य बंटेगा!

दिल्ली में जैसे कोई मेला लगा था – सारे हिन्दुस्तान में आये तुर्क और अफगान सिकंदर लोधी के अंतिम दर्शन के लिए चले आये थे। बहलोल लोधी से लेकर सिकंदर लोधी तक के सारे दोस्त, रिश्तेदार और उमर उलेमा हाजिर थे। सब को आशा थी कि अब उन्हें उनका हक मिलेगा और अब उन्हें भी हिन्दुस्तान में अपनी अपनी रियासतें मिलेंगी और ..

चारों दिशाओं में आगंतुकों के खेमे लगे थे। दिल्ली में खूब रौनक थी।

“बहलोल को तो मैंने तलवार पकड़ना सिखाया था!” एक बुजुर्ग कांपती आवाज में जमा लोगों को किस्से सुना रहे थे। “पर लौंडा निकला जांबाज! भाई, क्या जूझता था जंग में?” उन्होंने हाथ फैलाकर एक आश्चर्य जाहिर किया था।

“कौन हैं ये जनाब ..?”

“दधिया खान हैं!” तुरंत उत्तर आया था। “जानते नहीं इन्हें? इनके तो मकबरे पूरे ..”

“लेकिन ये तो ..?”

“अरे तो क्या हुआ? अपने जीवन में ही जीते जागते बनवा डाले मकबरे! कल का क्या पता भाई? अब तो लोग जानेंगे न दधिया खान को”

हंसी का एक चक्रवात उठा था और फिजा पर फैल गया था!

“आओ आओ, मेरे जाने जिगर ..!” दधिया खान बांहें पसार कर इब्राहिम लोधी से मिले थे। “चश्मे बद्दूर! तरस गये हम तुम्हारे दीदार के लिए ..” वो शिकायत कर रहे थे।

“आप तो जानते हैं कि अब्बा जान ..?”

“अरे हॉं! वो किसी को ढीला नहीं छोड़ता था। मुझसे ही कित्ता काम लिया? पूरे हिन्दुस्तान में मैंने ..” वह अपनी डींगें हांकने लगे थे। “पर हॉं! देता किसी को कुछ नहीं था, तुम्हारा अब्बा! मीठा ठग था सिकंदर ..” वह जोरों से हंसे थे।

चारों ओर शिकायतों के पुलिंदे ले लेकर आगंतुक घूम फिर रहे थे! सब आये थे ये बताने कि उन्होंने सल्तनत के प्रति वफादारी दिखाई थी, अपने फर्ज पूरे किये थे और अब उन्हें हर कीमत पर अपना हक चुकाना था।

“जलाल को तो आधा मिलेगा ही!” नसीर खान लोहानी गाजीपुर से पधारे थे और अब जलाल का हक मांग रहे थे। “अरे भाई! हमें दिल्ली से अलग कर दो हम भी अपना कुछ देखें?” वह सहज में बतिया रहे थे। “में तो इब्राहिम से सीधी सीधी बातें करूंगा! इस पार या उस पार!” उन्होंने अपने पत्ते फेंक दिये थे।

हेमू दिल्ली पहुंच गया था। इब्राहिम को तनिक तसल्ली हुई थी। क्योंकि उसके चारों ओर जमा हुई जमात में उसका शुभ चिंतक तो कोई न था। यहां तक कि अभी ये भी तय न हो पा रहा था कि सिकंदर लोधी को कहां दफनाया जाये?

“पहले यही एक बात तय कर दो हेमू कि अब्बा हुजूर को पनाह मिले तो कहां? मेरी तो समझ से बाहर है और ये लोग ..?”

हेमू ने पूरी जानकारी लेने की मुहिम पहले ही बना ली थी।

सारे कार्य कर्ता और हिसाबी किताबी लोग उसने बुला भेजे थे। दिल्ली के चारों ओर क्या क्या बसा था, कहां कहां बसा था और कहां कहां संभावना थी कि सिकंदर लोधी को दफनाया जाये? पांच घोड़ों पर सवार हेमू का ये चौकड़ी दल अब पूरी दिल्ली के आर पार घूम रहा था। हेमू को जानकारी मिल रही थी।

“ये कुतुब मीनार है जनाब!” मनसब मौला बता रहा था। “कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनाई थी। गुलाम वंश का था। समय और कीमत ..”

“आगे चलो! यहां तो एक कदम जगह नहीं यार!” हेमू चौंका था। “कितने सारे गुंबज .. मकबरे और अभी तक अधूरी मीनार खड़ी हैं पर ..”

“खिलजियों ने बनाना तो शुरू किया था जनाब पर ..” मौला बताने लगा था।

और फिर तुगलकों का किला था तुगलकाबाद और इसकी लंबाई चौड़ाई का सिलसिला इतना बड़ा था कि संभव ही न था कि सिकंदर लोधी को कहीं पनाह मिले? फिराजशाह कोटला और फिर राय पिथौरा का किला? है कहां कोई जगह?

चार सल्तनतों का वैभव दिल्ली के आसपास धरोहर की तरह धरा था!

हेमू हैरान था। तीन सौ साल से हिन्दुस्तान की लूट हो रही थी और ये तुर्क और अफगान अपने अपने महल और मकबरे बनाते ही चले जा रहे थे? मंदिरों को तोड़कर ये मस्जिदें बना रहे थे और हमारे महलों और किलों पर अपने हस्ताक्षर कर अलग से अपना हक कायम कर रहे थे। और जो जमावड़ा अब दिल्ली में जमा हुआ था – उनके इरादे भी नेक न थे! सब के सब भूखे भेड़िये थे और सब को अब अलग अलग साम्राज्य चाहिये थे! सब को अभी तो और भी लड़ाइयां करनी थीं और हिन्दुओं की ऑंखों में धूल झोंकनी थी ताकि ..

पसीने छूट गये थे हेमू के!

“हुआ कुछ ..?” इब्राहिम पूछ रहा था। “देर करने में नुकसान है हेमू!” इब्राहिम की आवाज मुलायम थी।

“मैं सोचता हूँ कि मोहम्मद शाह सैयद के मकबरे के बगल में बड़ा एक बगीचा है। खुली जगह है। वहीं अगर ..?

“ठीक है, ऐलान कर देते हैं!” इब्राहिम ने सुझाव मानते हुए कहा था। “और हॉं! तुम निकल जाओ! मैं जब तक इन लोगों को संभालता हूँ तुम ग्वालियर पर चढ़ाई की मुहिम तैयार कर लो!” अब इब्राहिम ने हेमू की ऑंखों में घूरा था। “वही – धौलपुर जैसी मुहिम – जहॉं हमें ..” हंसा था इब्राहिम। “मुझे उम्मीद है तुमसे!” कहते हुए उसने हेमू को विदा किया था।

सिकंदर लोधी की मातमपुरसी की सभी राहो रस्में पूरी होने लगी थीं।

एक गहमागहमी थी। आंसू थे तो मुस्कुराहटें भी थीं। गम था तो खुशी भी साथ ही खड़ी थी। एक लम्बा चौड़ा साम्राज्य छोड़ा था सिकंदर लोधी ने। और साथ में थीं उसकी यादें .. उसके किये कारनामे और उसका किया दिया वो सब .. जो ..

“ये गजब टूटा कैसे इब्राहिम ..?” पंजाब से आये आलम खान पूछ रहे थे। “ये तो खूब अच्छे खासे थे .. लड़ाई लड़ रहे थे – फिर ..?”

“बस, चचा जान!” इब्राहिम ने सहजता से बताया था। “ये बीमारी ही ऐसी है कि इसका पता नहीं चलता!”

“भाई हमारा तो कौल करार था – सिकंदर के साथ!” दौलत खान – उनके बेटे बोले थे। “पंजाब हमें दे दो!” उन्होंने इब्राहिम की प्रतिक्रिया पढ़ी थी। “तीन हिस्से कर लो! पंजाब हमारा, तुम दिल्ली को रख लो और जलाल को जौनपुर दे दो!” उन्होंने अपनी राय पेश की थी।

अचानक ही साम्राज्य के बंटवारे की बात आरम्भ हो गई थी!

आजम हुमायूं शरवानी और मीयां अली कुली भी मुंह खोलकर बोलने लगे थे। मीयां साहब बहुत बुजुर्ग थे। बहलोल लोधी के जिगरी रहे थे। सिकंदर इनकी बहुत कद्र करते थे। लेकिन अब तो वो अल्लाह को प्यारे हो चुके थे और सामने खड़ा इब्राहिम गोटें खेल रहा था!

“भाई हमें भी अधिकार दो, हमारा हक दो कि हम भी अस्सी हजार सैनिक रक्खें, पांच हजार रिसाला और सौ हाथी हमारे पास हों! यह जरूरत की बात है! कौन जाये रोज दिल्ली?” उनकी मांग थी।

“मैं खाने ए जहान लोधी हूँ!” एक शहजादे सामने आये थे। “बिहार से आया हूँ।” वह बता रहे थे। “मेरा मानना है कि हम सल्तनत को ..”

“देखिये भाई जान!” इब्राहिम लोधी आहिस्ता से बोला था। “अभी तक तो अब्बा जान जन्नत भी नहीं गये!” उसने गंभीर आवाज में कहा था। “और आप को बता दूं कि मैंने अब्बा से वचन भरे हैं कि मैं पहले ग्वालियर को फतह करूंगा!” उसने खाने जहान को अपांग देखा था। “अगर आप जंग में शरीक होना चाहें तो ..?”

“नहीं, वो तो नहीं!” खाने जहान ने तुरंत ना कह दी थी। “पर ..?”

“ये बाद की बातें हैं! बाद में ही करेंगे!” इब्राहिम ने एक फतवा जारी कर दिया था।

निराशा के काले काले बादल हर चेहरे पर बरसे थे – और खूब बरसे थे!

दिल्ली से लौट रहे हेमू के दिमाग में एक भयंकर कोलाहल भरा था!

“ये मेरा किला .. ये मेरा मकबरा .. ये मेरा महल .. मेरी रियासत और मेरा साम्राज्य! मैं ये लूंगा .. ये लूटूंगा और अस्सी हजार की फौज रक्खूंगा .. पांच हजार घोड़े होंगे मेरे पास! मैं .. मैं तोड़ दूंगा सारे मंदिर! मिटा दूंगा सारे हिन्दुओं को! फिर से देश हमारा होगा .. हमारे वंशजों का होगा .. तुरकों का होगा और अफगानों का होगा! हा हा हा ..!

आसमान पर घिर आया बादल गरज रहा था। शायद बारिश होने को थी।

“और एक तुम हो कि अब इब्राहिम के लिए लड़ोगे? उसे ग्वालियर फतह कर के दोगे? उसे .. नए नए हिन्दू मां के वीर लाकर दोगे और तुम ..?”

था कोई और विकल्प हेमू के सामने?

दिमाग में एक छोटा सा उगा अंकुर डरता भागता अपने विकास के लिए आग्रही हो आया था! हिन्दू राष्ट्र – अभी तक एक विचार से आगे कुछ न था! और जो सामने था – वो तो एक विकट सच था! लुटेरों का जमघट था .. और .. और हिन्दुओं का ..?

गुरु जी के आंगन में लगे तुलसी के बिरवे को हेमू लम्बे लमहों तक उनकी सुरक्षा के बारे ही सोचता रहा था!

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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