“प्रणाम गुरु जी!” हेमू ने आसन पर बैठे गुरुलाल शास्त्री के पैर छूए थे। “क्षमा चाहूंगा कि मैं ..” उसने विलम्ब से आने के लिए क्षमा याचना की थी। “वो क्या था कि कादिर शेख शामी के साथ दिल्ली नहीं गया!” हेमू ने सूचना दी थी। “और कादिर के रहते हुए ..” वह रुका था। “मैं नहीं चाहता कि कादिर को किसी तरह से भी कोई सुराग मिले कि ..” खड़ा ही रहा था हेमू।

“बैठो!” गुरु जी की आवाज में आदर था, स्नेह था! “मैं ज्यादा ही उत्सुक था कि तुम आओ तो आगे की सोचें!” गुरु जी बताने लगे थे। “क्या है कि सिकंदर लोधी की महत्वाकांक्षा आसमान से ऊपर है!” उनकी ऑंखों में एक आश्चर्य डोलने लगा था।

“वो कैसे ..?” हेमू ने तुरंत पूछा था।

“खुरासान ..!” एक लम्बी आह रिता कर गुरु जी बोले थे। “सिकंदर का सपना है – खुरासान ..” वो बताने लगे थे।

“मैं समझा नहीं गुरु जी!” हेमू भ्रमित था।

“खुरासान का अर्थ है बेटे कि – सिकंदर की महत्वाकांक्षा है कि वो भारत को खुरासान में शामिल कर दे। इसका अर्थ हुआ कि हम हिन्दू सब कुछ हार जाएंगे! खुरासान का अर्थ है – पूर्ण रूपेण इस्लाम, हम उनके अधीन होंगे जो ..”

“प्रमाण मिला है कोई ..?” हेमू का प्रश्न था।

“हॉं! है प्रमाण!” गुरु जी आगे झुक आए थे। “तीन फारस के विद्वान .. आज लाल गढ़ी में बैठे हैं और उनका काम है – गीता और महाभारत को संस्कृत से फारसी में अनुवाद करना। सिकंदर ने स्वयं भी नौ हजार फारसी की आयतें लिखी है। और वो चाहता है कि मस्जिदों में जो पढ़ाई हो वो ..”

“इससे क्या होगा गुरु जी?” अबोध बच्चे की तरह पूछा था हेमू ने।

“विचारों का ही तो खेल होता है हेमू!” हंस गये थे गुरु जी। “हिन्दुओं के दिमागों में वो विचार बीज डालना जिससे इस्लाम फले-फूले, फारस की सभ्यता यहॉं पहुँचे और हमारी सभ्यता ..”

“ये सिकंदर लोधी ..?”

“बड़ा ही होशियार है बेटे! हर नुक्कड़ पर जासूस बिठा रक्खे हैं। हर तरह की खबर उस तक पहुँचती है। खुद भी रात को छुपकर, हुलिया बदलकर घूमता है और देखता है .. पड़ताल करता है .. कि ..”

“एक सम्राट को क्या ये शोभा देता है?”

“एक सम्राट का कर्तव्य यही तो होता है हेमू!” गुरु जी हंसे थे। “अगर वो बेखबर रहेगा तो दुश्मनों को उसकी खबर लेना बहुत आसान हो जाएगा!”

“तो क्या ..?”

“क्यों नहीं! हमें कल इससे भी कही अधिक आवश्यकता होगी। क्योंकि हमारा ..” गुरु जी बताते रहे थे।

हेमू का दिमाग जैसे दसों दिशाओं में खुलकर डोल आया था!

“जौनपुर के वजीर का हशर देखा?” गुरु जी ने अचानक पूछ लिया था।

“नहीं तो!” हेमू ने अनभिज्ञता दिखाई थी।

“उसका सब माल असबाब, और जमीन जायदाद जब्त!” हंस कर बता रहे थे गुरु जी। “बेईमान था! रंगे हाथों पकड़ा गया। अब सब पत्तों से कांप रहे हैं। तुम्हारे शेख शामी भी तो ..?”

“इनका क्या है ..?”

बिहार में मिली जागीर!” गुरु जी हंस पड़े थे। “ये भी तो छुपे रुस्तम हैं! इन्हें भी तो सासाराम में ..”

“तभी कादिर का ब्याह किया है!”

“और अब कादिर को लेकर बिहार में ..” गुरु जी ने हेमू को निहारा था। “शायद तुम्हारा नम्बर भी लग जाए?” उनका कयास था। “शेख शामी की निगाह तुम पर है!”

“लेकिन गुरु जी ..”

“खुशी की बात है बेटे! हमें भी तो रास्ता चाहिए?”

“लेकिन मैं .. इस कादिर के साथ ..?”

“रहो कुछ दिन! हमें रास्ता तो चाहिए बेटे! आज हिन्दुओं की थोड़ी मांग बढ़ी है!”

“क्यों?” हेमू ने पूछा था।

“इसलिए बेटे कि अब हिन्दू बहादुरों की आवश्यकता है ताकि उन्हें हिन्दुओं के खिलाफ लड़ा कर फतह हासिल की जाए! गतिरोध जो आ रहा है उसे तोड़ने के लिए ..”

“मैं समझा नहीं गुरु जी!”

“इस तरह समझो!” गुरु जी संभल कर आसन पर बैठ गए थे। “बंगाल तक तो इस्लाम पहुँच गया है। रह गया है दक्खिन! वहॉं तक पहुँचने में आड़े आते हैं राजपूत, जाट, गूजर, अहीर, मराठे और ..” गुरु जी विहंसे थे। “अब इनका इलाज कहॉं है?”

“कहॉं है?”

“आपस में लड़ाओ इन्हें या कि इन्हीं को इन्हीं से लड़ाओ!” गुरु जी की ऑंखों में एक चमक तैर आई थी। “सिकंदर लोधी अकेले मान सिंह तौमर से लड़ लड़ कर हार गया है पर मजाल है कि उसे रास्ता मिले! आगरा में वह इसलिए गया था कि ग्वालियर पास पड़ेगा और एन केन प्रकारेण उसे हड़प लिया जाएगा। लेकिन धौलपुर तक जाकर लौट आए हैं!” गुरु जी खूब हंसे थे।

“तो ..?”

“तो अब तुम जैसे बहादुर हिन्दुओं की भर्ती खुल गई है।” सूचना दी थी गुरु जी ने।

“तो क्या हमें ..?”

“क्यों नहीं!” गुरु जी का स्वर साफ था। “हमें राज-काज सीखना है, हेमू! हमें इन्हीं से सब कुछ सीखना है और फिर अपना सब ईजाद करना है। काम कठिन है और तुम्हें सांपों की बमई में बैठ कर, उन के साथ मिलकर ये करिश्मा करना होगा बेटे!” गुरु जी का आदेश था। “मेरी नजर इब्राहिम लोधी पर है।” उनका स्वर धीमा था। “सिकंदर तो ..”

“मतलब?”

“गया समझो!” गुरु जी ने चुपके से कहा था। “पर कितना बड़ा काइयां है?” गुरु जी की आवाज में एक उलाहना जैसा उभरा था।

“कैसे गुरु जी?”

“बेटे! मुझे थोड़ी उम्मीद थी कि यह सिकंदर एक हिन्दू मॉं का बेटा था और मैंने सोचा था कि दूध का असर तो अवश्य आएगा! लेकिन न जाने कैसे ये निरा ही ..”

हेमू की ऑंखों के सामने अशरफ बेगम का चेहरा आ कर ठहर गया था। कितनी असहाय ऑंखें थीं उनकी। इस्लाम के नीचे आने के बाद तो कोई उठ भी कैसे सकता था? औरतों के साथ बहुत बेरहमी बरती जाती थी। कादिर और नीलोफर के जोड़े को याद करते ही हेमू सारा खेल समझ गया था। लेकिन .. केसर ..?

“मुझे तो इनकी नीयत में ही खोट नजर आता है गुरु जी!” हेमू ने अपनी राय दी थी। “मैंने जो देखा है अभी तक उससे तो यही लगता है कि ये लोग भूखे नंगे हैं जो भारत आए हैं! इनके पास, इनके यहां शायद कुछ रहने खाने को नहीं है और यहॉं आ कर जब ये हिन्दुस्तान का वैभव देखते हैं तो दंग रह जाते हैं! फिर तो इन्हें लूट-पाट के सिवा और कुछ नजर ही नहीं आता!”

“ठीक कहते हो हेमू!” गुरु जी का स्वर गंभीर था। “कठिनाई तो यही है कि इन लुटेरों से हम बचें तो कैसे?”

“ईंट का उत्तर पत्थर ही तो है, गुरु जी?” हेमू ने सीधे-सीधे कहा था। “हमें इनके साथ इनसे भी ज्यादा बेरहम होकर वार करना होगा!” उसकी आवाज में एक सच्चाई थी। “विनम्रता, कुलीनता और सज्जनता इन्हें नहीं सुहाते!” उसके होंठ भिच आए थे। “इन्हें तो कोड़ों की मार ही समझ आती है! और हमें ..”

“यह रास्ता भी तुम्हीं निकालोगे!” गुरु जी ने अपने हाथ झाड़ दिए थे। “भविष्य तो अब तुम्हारा है हेमू!” उन्होंने आशीर्वाद जैसा दिया था।

और अब हेमू की निगाहों के सामने अनाम से मरघट आ खड़े हुए थे – जहॉं हिन्दुओं की सिसकती सुबकती लहूलुहान लाशें पड़ी थीं .. जिंदा जलते हिन्दुओं के जिस्म थे जिनसे इस्लाम के किये अपराधों की दुर्गंध रिस रही थी .. अबला स्त्रियों की चीखो पुकार थी .. उनकी लुटती लाज और उनके साथ होते अन्याय अपराध बलात्कार और वो सब था जो घोर अमानुषिक था! हेमू की ऑंखें लाल-लाल अंगारों सी दहकने लगी थीं।

“मुझे यह सब याद रहेगा गुरु जी!” उसने जैसे भविष्य में आने वाले हर निर्णय को समझ लिया था।

गुरु जी ने हेमू को अपनी बांहों में सहेज लिया था। लम्बे पलों तक वह उसे सहेजे ही खड़े रहे थे। उन्हें लगा था जैसे उन्होंने एक हिन्दू सम्राट के अभी अभी दर्शन किये हों और अब वह भारत के ओर छोर नापने निकल पड़ा हो!

संध्या का आसमान आरक्त हो आया था और हवा तनिक हिलकर ठहर गई थी!

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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