कविता :-
तुम्हारे जाने के बाद –
मुंह बंद है – ख़ुशी के कमल का ..
जूही के होंठ हिलते ही नहीं ….
समीर है कि ठंडक में सुलग उठा है ….
और मेरे मन के उदगार-द्वार –
खुलते ही नहीं !!
तुम्हारे जाने के बाद –
मन तलाश रहा है -अंधेरों को ….
छूता है – काली परछाईयों को ….
उन पलों के पेट से तुम्हें जिन्दा करता है-
जो जिए थे हमने -साथ-साथ ….
जिन्हें सींचा था साँसों से -बार-बार …!!
तुम्हारे जाने के बाद …
मैं अपनी पहचान भूल गया हूँ ….
रंग-रूप …कहा-अनकहा ..भोगा -न-भोगा –
क्या था – सब ….?
सब भूल गया हूँ …
अब तुम्हारे आने की पहचान में ……
मैं ……..
कृपाल !!