आज बहुत दिनों बाद तुम्हारा फोटो देखा.. वही तुम्हारा और पिताजी के संग की फोटो.. यह फ़ोटो तुम्हारी मेरे पास नहीं थी, माँ! वो तो अचानक ही मैने सिद्गार्थ का एकाउंट देख लिया.. तो तुम और पिताजी मुझे उस फ़ोटो में नज़र आ गए.. थे। सच! माँ! तुम्हें और पिताजी को संग देखकर तस्वीर में एक पल के लिये भी नहीं लगा, कि तुम अब हो ही नहीं। पर फ़ोटो को देखते ही वही सारा नज़ारा आँखों के आगे घूम गया.. जब तुम और पिताजी संग शाम के वक्त मंदिर ज़रूर जाया करते थे.. और विवाह से पहले की बात है.. जब तुम मंदिर जाने से पहले कह कर जातीं थीं, कि,” जब तक मैं और पिताजी घूम कर आएँ, भाइयों को खाना खिला देना!”।

और माँ! मुझे अच्छी तरह से याद हैं.. वो पल जब मैं काम के नाम चिढ़ जाया करती थी.. और बेमन से भाइयों को  खाना परोसा करती थी। बचपन था.. वो मेरा! जो पंछी की तरह उड़ गया.. और अपनी सारी यादें.. अपने स्वभाव का खट्टा-मीठापन छोड़कर तुम भी चलीं गयीं।

पिताजी संग तुम्हें उस फ़ोटो में मंदिर की ओर जाता देखकर ऐसा लगता है.. माँ! कि तुम्हें ज़ोर से आवाज़ देकर देखूँ.. शायद तुम पीछे मुड़कर मेरी तरफ़ देखो,” और एक बार फ़िर मुझसे पहले की तरह कुछ कहो!”।

आँखों को गीला कर तुम फ़ोटो में क्यों आ गईं माँ!.. अब कब तक तुम्हारे फ़ोटो देखकर तसल्ली करूँ.. फ़ोटो खींचते वक्त क्या पता था, कि मैं हर कभी तुम्हें केवल फ़ोटो में ही देखा करूँगी..  हर एक फ़ोटो से जुड़ी तुम्हारी कुछ यादें मेरे सामने घूम जातीं हैं… और फ़िर बहुत देर के लिये मैं तुम्हारे साथ हो लेतीं हूँ.. कभी न सोचा था, माँ! कि तुम यूँ अचानक ही फ़ोटो में आकर आगे के सफ़र में संग चलोगी। अब चलना तो है.. ही! पर तुम्हें फ़ोटो में साथ लेकर अच्छा नहीं लगा.. काश! तुम आज भी संग होतीं।

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading