धारावाहिक – 25

अब मेरी बदली बैरिक में हो गई थी ।

मैं एक छोटे जमघट में रह रही थी । वहां सब को नपी-तुली जमीन मिली हुई थी । बिस्तर से ले कर बाथरूम तक सब सब का था और किसी का भी नहीं था । अपना-अपना सामान साथ लिये हम खुले-खिले अपने-अपने पड़ाव डाले जी रहे थे -साथ -साथ ।सामान के अलावा हम सब के पास एक अलग से पोटली थी – अपने विगत की पोटली । इस में हमारा सब संचित साक्ष धरा रहता था और जब कभी हमारा वर्तमान हमें खाने को दौड़ता था तो विगत की इस पोटली से चंद यादें चुरा कर मन जेल से बाहर भाग लेता था ।

अपनी छोटी सी उम्र में मैंने खूब कमा लिया था । और अब सारे का सारा पाेटली में बंधा मेरे सिरहाने धरा था । मैं हर अच्छे-बुरे से हाथ मिला कर लौटी थी । मैं अब ……

‘ले, कॉफी। गरमा-गरम है ।’ अचला थी । ‘और ये एक समोसा , तेरा ।’ उसने मुझे समोसा दिया था । वह हंस रही थी । प्रसन्न थी । कुछ था तो …..पर बता न रही थी ।

‘ये सब क्यों?’ मैंने ही पूछ लिया था ।

‘मिलाई पर मॉं आई थी ।’ अचला बताने लगी थी । वह प्रसन्न थी- बहुत प्रसन्न । ‘बहुत रोती है, मेरी किस्मत पर ।’

‘क्यों ?’ मैंने फिर यों ही पूछ लिया था ।

लेकिन तभी मुझे मेरी मॉं याद हो आई थी । ‘कहॉं थी – पूर्वी विश्वास , मेरी मॉं ?’ मैं स्वयं से ही पूछ रही थी । मेरे परिवार का यों गायब हो जाना ….मुझे याद आ कर एक करारी चोट दे गया था । ये जेल भी क्या – एहसासों की यादगार का गढ़ है । यहॉं अच्छा-बुरा सब साथ-साथ रहता है । और यहॉं सब के लिये सम्पूर्ण स्वीकार्य है ।

‘मैं अपने घर की एक बेजोड़ वस्तु जैसी हूँ , नेहा ।’ अचला बताने लगी है । ‘लोग मानते थे कि मैं आसमान को छू कर ही रहूंगी । शादी हाेने से पहले ही शोर था । दूल्हा पायलट था । दहेज में अस्सी लाख कैश तय था । लेकिन …..’ अचला अचानक ही चुप हो गई थी ।

‘हुआ क्या ?’ मैंने ही पूछा था।

‘वही , जो किस्मत को मंजूर था ।’ तनिक लजा गई थी , अचला । ‘हमीद ने कहा था – मैं बिक रही हॅू । उस ने मजाक भी किया था कि ….अगर लड़का पायलट था तब तो मेरा तलाक होना तय था । पायलट को तो उन एअर हौस्टैस् से ही फुर्सत नहीं मिलती ? वो तो परियां होती हैं …..और पत्नी ……?’

अचानक ही मुझे अपनी मित्र रानी का किस्सा याद हो आया था। छूट का पैसा लगाया था ….पर रानी घर नहीं बसा पाई थी और एक बेटी पा कर भी अकेली रह गई थी ।

‘हिन्दुओं में तो यही होता है ।’ हंसा था , हमीद । ‘अंत में तो तुम्हें मेरे ही पास आना होगा , अचला ।’ उस ने भविष्यवाणी की थी । ‘बैटर …..यू …..?’ उस की राय थी कि मैं कोई उचित कदम वक्त रहते ही उठालूं ।’ अब अचला ने मुझे मुड़ कर देखा था।

‘और तुमने ……?’ मैंने भी पूछ ही लिया था ।

‘हां । मैंने शादी से पहले ही हमीद से निकाह कर लिया था ।’ अचला ने बताया था ।

‘फिर ……?’

‘फिर वही । मैं कमाती थी ….और हमीद बैठ कर खाता था ।’ अचला ने अपने खाली हाथ झाड़ दिये थे । ‘और एक दिन वह देर रात अपने एक दोस्त के साथ लौटा था । दोनों नशे में थे । खाना साथ पैक करा कर लाये थे । खाते-पीते हमीद ताे बेहोश हो गया था । अब उस दोस्त ने मेरे कपड़े खोलने के लिये हाथ बढ़ाया था ।

‘ये क्या…. बदतमीजी… है ?’ मैंने कड़क स्वर में पूछा था ।

‘पैसे दिये हैं , मैडम ।’ वह अकड़ा था ।

‘तो …..कोठे पर जाओ ……।’मैं उस से उलझ पड़ी थी । ‘निकलो मेरे घर से ……? आउट …..गेट आउट ….।।’ और मैंने उसे धक्के मार कर घर से बाहर फेंक दिया था । और फिर न जाने कैसे , नेहा …. मेरे क्रोध , घृणा , पश्चाताप और हमीद द्वारा किये ….मेरे अपमानाें का ज्वार फूट पड़ा था। मैंने किचन से चाकू लिया था और….हमीद का गला चाक कर दिया था। फिर मैंने उसे चाकू से गोद डाला था। मुझे लगा था कि ….मेरे सर चंडी चढ़ आई थी । मैं अब दुर्गा थी …..काली थी …..रण-चंडी थी …..। और फिर यूं ही खून में लथपथ मैं पुलिस स्टेशन पहुँची थी। मैंने सब सच-सच बयान कर दिया था ।’ अब अचला उदास थी । ‘जिन देवियों का हमीद मजाक बनाया करता था- उन्हीं ने उस का संहार किया, नेहा ।’

‘लेकिन तुमने तो …..खुड़ैल को नहीं मारा , नेहा ….?’ अचानक ही ये प्रश्न कल्पतरु की ओर से आया था । ‘जैसे ही उस ने तुम्हें अवांछित स्थानों पर छूने का पाप किया था ……तुम ने उस की तभी जान क्यों नहीं ले ली ? सती-नारी तो …..’

अब क्या उत्तर दूंं……..? इस देव-तुल्य कल्पतरु से कौन सा झूठ बोलूं ? कैसे छुपाउं अपने गुनाहों को ? खुड़ैल ने भी तो मेरी ऑंखों पर वही चश्मा फिट कर दिया था …..जो हमीद ने अचला को बहकाने के लिये किया था ? फिर जब मुझे एहसास हुआ था ….कि मैं गर्भवती थी ….तो भी मैंने खुड़ैल को खत्म करने का कोई प्रयास नहीं किया ? और अब भी …..जब कि मैं मिली हूँ उस से …..मैंने …..

‘घर के सारे बच्चे अपनी बुआ को छत्राणि कहते हैं।’ अचानक ही अचला ने मेरा सोच काटा था । ‘उन्हें घमंड है , मेरे ऊपर ।’ अचला प्रसन्न थी । ‘शायद अब बेल हो जाये , मॉं बता रहीं थीं । आधी सजा तो पूरी हुई । वकील की राय है कि मैं छूट जाऊंगी । क्यों कि हमीद को उस ने बी सी सिद्ध कर दिया है।’ अचला कहती ही जा रही थी …..लेकिन मेरे कान तो कुछ और ही सुन रहे थे ?

‘पैसे मांगे थे ….तभी तुम मुझे पुकार लेतीं , नेहा …? मुझे बता देतीं …..सच्चाई ….तो मैं …टुकड़े-टुकड़े कर डालता ….इस नामर्द के ?’ आवाजें मेरे बाबू की हैं। ‘मैं तो मुगालतों में ही रहा ….कि मैं तुम्हारी मुसीबतें बांट रहा था ….? लेकिन ……नेहा , अगर तुम ….तनिक सा भी इशारा कर देतीं…..तो ….?’

‘ग ल ती ….हो ही गई, बाबू ।’ नेहा की ऑंखें सजल थीं। उस के हाेंठ कांपने लगे थे । ‘मैं अचला की तरह छत्राणि न बन पाई ? एक के बाद दूसरी गलती हुई , मुझ से । छुपती रही तुम से ….अपने पापों की गठरी …..और बह गई ….उन गंदे नालों में ……?’

‘लेकिन ……नेहा ……?’

‘आभारी हूँ , बाबू ।’ नेहा बिलख रही थी । ‘अभागिन हूँ , मैं……जो रावण की जगा ….अपने राम को मार बैठी ….? पाप और पापी दोनों जिंदा हैं …..और मैं …..जेल में ……?’

रोये जा रही थी , नेहा ।

सॉरी बाबू ……….

क्रमशः ……….

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