हिन्दुस्तान का बंटवारा हो रहा है – नेकीराम शर्मा ने प्रसंग सामने रख दिया था।

माधवी कांत चौंक पड़ी थीं। नेहा ने भी निगाह उठा कर नेकीराम शर्मा को देखा था। सुधीर संयत था। लेकिन विक्रांत के तेवर तन आये थे। ये कालखंड की कहानी का आरंभ था। नेकी राम शर्मा का चेहरा चमक रहा था। उन्हें जो कहना था उन्हें याद था। और जो नहीं कहना था वो भी उन्हें पता था।

“इट मीन्स इंडिया इज फ्री फॉर ऑल!” बंटवारे का मजमून जान कर शिखर का चेहरा तमतमा रहा था। “ये क्या बात हुई कि मुसलमान हिस्सा लेंगे, सिक्ख अपना सूबा मांगेंगे, अंबेडकर जी को अछूतिस्तान चाहिये और राजे रजवाड़े चाहे तो स्वतंत्र रहें और न चाहें तो मर्जी से हिन्दुस्तान पाकिस्तान में से किसी के भी साथ मिल जाएं? लूट हुई ये तो।” वह गरजा था। “देश हमारा है और हमें ही कोई पूछ नहीं रहा है। लेकिन क्यों?”

“इसलिए कि हमारे कर्णधार गांधी और नेहरू नकली हैं।” शिखा ने अफसोस जाहिर किया था। “मैं .. मैं ..” उसका गला रुंध गया था। “मुझे शक तो पहले से ही था कि ये दोनों बिके हुए हैं, हिन्दू हैं ही नहीं और ये इस्लाम के एजेंट हैं!” शिखा ने निगाहें उठा कर अपने जमा सहयोगियों की प्रतिक्रिया पढ़ी थी। “गांधी ने तो कहा था – मेरी लाश के ऊपर होगा बंटवारा – फिर ये मरा क्यों नहीं? नेहरू ने कहा था – जब आजादी आएगी तो भगत सिंह की लाश हमारे बीच बैठी होगी! लेकिन अब .. आज ..?” शिखा का प्रश्न था।

शिखर और शिखा दोनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक हैं। दोनों एक दूसरे से प्रगाढ़ प्रेम करते हैं। दोनों की मंजिल एक है – हिन्दू राष्ट्र की स्थापना। और आज जब भारत बंट रहा है और हिन्दू राष्ट्र का दीपक बुझ गया है तो दोनों उत्तेजित हैं।

“आपके प्रश्नों का उत्तर मेरे पास है शिखा जी!” बलराज जी बोले थे। बलराज जी ने ही आज सभा बुलाई थी ओर होते देश के बंटवारे पर कुछ खास मुद्दे तय करने थे। “लॉर्ड माऊंटबेटन ने इंग्लैंड में बैठ कर पहले से ही बंटवारा तय कर दिया है। कांग्रेस सहमत है। मुसलमान खुश हैं। सिक्ख भी अपना सूबा ले लेंगे वह जानते हैं और राजे-रजवाड़े भी प्रसन्न हैं कि उन्हें पूर्ण आजादी है – जो चाहें सो करें। और अंबेडकर जी ..” रुके थे बलराज जी। “हिन्दुओं की पीठ में गांधी ने छुरा घोंपा हैं!” उनका स्वर डूब गया था। “वॉट ए ट्रेटर?” पश्चाताप था बलराज की आवाज में।

गहन चुप्पी फिर से घिर आई थी। नेकीराम शर्मा की धारदार आवाज ने बंटवारे के दृश्य को सजीव बना दिया था। माधवी कांत मौन थीं। उन्हें भी रह रह कर बंटवारे के दृश्य याद आ रहे थे।

“क्या हो कि बंटवारा न हो?” शिखर ने सीधा प्रश्न पूछा था।

“और हम क्या क्या कर सकते हैं, बलराज जी?” शिखा भी पूछ रही थी।

“संपूर्ण क्रांति!” जमा सारे लोग एक स्वर में बोल पड़े थे। “लैट्स ऑप्ट फॉर ए रिवॉल्यूशन!” एक नई मांग खड़ी हो गई थी। “अपनी मातृ भूमि को यों खंड खंड होते हम न देख पाएंगे बलराज जी!” जमा लोग चीखने चिल्लाने लगे थे।

हिन्दू ठगे गये थे – ये बात हिन्दुओं की समझ में अब आई थी। लेकिन अब तो बहुत देर हो चुकी थी। नेकीराम शर्मा बताने लगे थे। बंटवारे की विभीषिका भारत भूमि पर आग की लपटों की तरह फैल चुकी थी। नर संहार हुआ था और खून की नदियां बही थीं। गांधी जी ने खुले आम मुसलमानों का पक्ष लिया था। कलकत्ता में पहुंच कर सत्याग्रह किया था जबकि पाकिस्तान से हिन्दुओं की लाशें रेल गाड़ियों में लद लद कर आ रही थीं ओर उन्हें ..

“हे भगवान!” माधवी कांत ने अचानक ईश्वर का स्मरण किया था। “भुलाते नहीं भूलते वो दिन नेकीराम जी!” वह आहत थीं।

“गांधी जी ने मस्जिदें खाली करा दी हैं।” काली चरण ने सूचना दी थी। “हिन्दू शरणार्थी सड़कों पर पड़े हैं।” वह कह रहा था। “उनके रहने खाने का बंदोबस्त करना होगा!” उसने प्रस्ताव रक्खा था।

और स्वयं सेवकों ने रात दिन लगा कर उन सब शरणार्थियों के रहने खाने की व्यवस्था की थी।

“लावारिस!” शिखर जोर जोर से बोल रहा था। “हिन्दू आज लावारिस रह गया शिखा!” वह हांफ रहा था। “हमारा कोई सरपरस्त है ही नहीं!” उसका उलाहना था। “जिनपर हमें गर्व था और भरोसा था वही दगा दे गये!” अफसोस था शिखर की आवाज में। “हमारी तो तपस्या ही भंग हो गई शिखा।”

“निराश क्यों होते हो!” शिखा पूछ रही थी। “कोई रास्ता तो होगा ही ..”

“अब बंटवारे को कोई नहीं रोक पाएगा शिखा।” शिखर ने होंठ भिंच कर कहा था।

हिन्दुओं की कमर पर पैर रख कर पाकिस्तान का जन्म हो चुका था।

हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई सब आपस में भाई भाई का नारा एक षड्यंत्र की तरह ईजाद किया गया था। गांधी जी का सपना था भारत को एक धर्म निरपेक्ष राज्य बनाना। एक ऐसा देश बनाना जहां हर धर्म, हर कौम, हर विचार स्थान पा सके और फल-फूल सके। पाकिस्तान जहां इस्लामिक देश बन रहा था वहीं भारत हिन्दू राष्ट्र न बन कर एक धर्म निरपेक्ष राज्य बन रहा था। चालाकी से मुसलमानों ने एक अलग देश लेने के बाद भी हिन्दुस्तान में रहने का मन भी बना लिया था।

“आश्चर्य की बात है कि कल जो पाकिस्तान की कसमें उठा रहे थे आज वो पाकिस्तान नहीं जा रहे हैं।” सरदार वल्लभ भाई पटेल ने प्रश्न पूछा था। “और जो पाकिस्तान नहीं चाहते थे उन्हें ही पाकिस्तान भेजा जा रहा है।”

ये खेल मुस्लिम लीग का था ओर ये एक सोची समझी साजिश थी।

“देश आजाद नहीं फिर से गुलाम हो गया है।” बलराज जी बता रहे थे। भारत पर अब आंख इस्लाम की है। मुस्लिम लीग ने अपनी रण नीति तैयार कर ली है। जो लोग यहां भारत में रहेंगे वो भारत के इस्लामी करण का काम करेंगे!” बलराज जी बता रहे थे। “और हम हिन्दू इतने पागल हैं कि फिर से भाई-चारे के नाम पर बलिदान हो जाएंगे!”

“ईसाई कौन से चले गये हैं?” बलबीर जी बोले थे। “इन्हीं की तो सरकार है। कानून से लेकर भाषा इन्हीं की है। हमें बंटवारे में मिला ही क्या है?” उनका प्रश्न था।

“और अब गांधी जी फिर सत्याग्रह पर बैठने जा रहे हैं!” बलराज जी बता रहे थे। “वो जो पचपन करोड़ पाकिस्तान को देना है अब गांधी जी जिद कर रहे हैं कि भारत पाकिस्तान को वो रकम अभी चुकाए!”

पूरी सभा को जैसे फालिज मार गया था।

“खाली हाथ हम क्या करेंगे?” सुमन जी बोल पड़े थे। “भारत कौन सा धनी मानी देश है। पचपन करोड़ पाकिस्तान को देने के बाद हमारे पास तो खाने को कुछ नहीं बचेगा!”

“गांधी से पूछो!” बलबीर जी तड़के थे। “इस आदमी ने हमें बरबाद करके मरना है।” उन्होंने गांधी को कोसा था।

“है कोई तरीका जो ..?” शिखर ने फिर से प्रश्न पूछा था।

“नहीं! अंग्रेज बैठे हैं। वो भी पाकिस्तान की लर बजाते हैं। उन्हीं का तो से सारा खेल है।” बलराज जी बता रहे थे।

“ये गांधी और नेहरू देश का अहित करने पर क्यों तुले हैं?” शिखर का प्रश्न था। “क्यों न हम इन लोगों को ..?”

“कोई कुछ नहीं कर सकता इनका शिखर!” विवश हुए बलराज जी बता रहे थे। “आज देश का जनमानस नेहरू और गांधी से ज्यादा किसी को भी देश का हितैषी नहीं मानता। लोग मानते हैं कि आजादी गांधी ने लाकर दी है। नेहरू गांधी का चहेता है और ..”

बेबसी के बादल सभा पर छा गये थे। बरसने को तो कुछ अब बाकी बचा ही न था।

“आप क्या सोचते हैं बलराज जी कि क्या गांधी के सपनों का भारत कभी साकार होगा?” प्रश्न अब की बार भवानी प्रसाद ने पूछा था। वो अभी तक चुप बैठे थे लेकिन अब उन्हें भी कोफ्त होने लगी थी। “क्या हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई ..”

“दुनिया का कोई भी राजनीतिज्ञ इस सपने को हाथ नहीं लगाएगा।” तनिक हंसे थे बलराज जी। “ये तो कोरी कल्पना है। न इनका गुट निरपेक्ष चलेगा और न चलेगा ये धर्म निरपेक्ष। ये तो अंग्रेजों और मुस्लिम लीग की खेली चाल है भवानी भाई!”

“आप का मतलब है कि भारत गया हाथ से?” शिखर तन आया था।

जुड़ी सभा भी एक अनिर्णय का शिकार बनी बैठी थी। किसी के पास भी बंटवारे की संगीन हो आई स्थिति का कोई तोड़ नहीं था।

“कुछ तो करना ही होगा बलराज जी।” नाथूराम गोडसे ने पहली बार मुंह खोला था। “अगर गांधी जी हमारी बात नहीं सुनते हैं तो हमारे क्या लगते हैं?” गोडसे का प्रश्न था।

फिर से एक चुप्पी छा गई थी। कोई नहीं बोल पा रहा था। गांधी जी के खिलाफ तो एक शब्द तक बोलना गुनाह था। वो राष्ट्र पिता बन चुके थे। पूरे संसार में गांधी जी एक नई रोशनी के रूप में विख्यात हो चुके थे। उनकी अहिंसा और सत्याग्रह का लोहा हर कोई मान चुका था। उनका कद आज के संसार में सभी राज नेताओं और राजनीतिज्ञों में सर्व श्रेष्ठ था!

मेजर कृपाल वर्मा

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading