मुझे फिल्म का कथानक और अभिनय सारगर्भित लगे हैं। अत: आत्मा के कोमल भावों में भाग दौड़ मची है। मैं अपने आप को कसौटी पर लगा रहा हूँ। कोई विलुप्त सी, महीन सी और एकदम कोमल सी डोरी मुझे वर्तमान से लाकर बांध रही है ताकि मैं अपने गिर्द घिरी समस्याओं के दायरे में मनन करूं और उपाय खोज लूं। मेरे अपरिपक्व से विचार लंबी बनती योजना को काट कर मेरे प्रयत्न पर पानी फेर देते हैं। निराशा मुझे उदास छोड़ जाती है। इस द्वंद्व युद्ध में हताहत हुआ मैं फिर भी हार मानने पर राजी नहीं होता हूँ।

“भाई मजा नहीं आया!” गुमनाम ने असंतोष प्रकट किया है।

“पिक्चर क्या है – निरी हिमाकत समझो!” शैल का रिमार्क है।

“चलो! कहीं और चलते हैं!” बानो ने अजीब सा आग्रह किया है।

“झील के उस पार ..” कौशल ने मजाक मारा है।

सभी हंस पड़े हैं। हमारा ये हंसी मजाक भी फिल्मी दुनिया की ही देन है। युवा पीढ़ी में हम सब फिल्मी युवक युवतियों की नकल करने में लगे हैं। मुझे आज भी आगे बढ़ने का सही रास्ता नहीं दिखाई देता। समस्याएं तो सब सुझाते हैं, बताते हैं और इशारों से किसी दूसरे को इनमें कूद पड़ने को कह देते हैं। पर हल खोजने का प्रयत्न कोई नहीं करता। लगता है – हम सब कायर हैं। शुतुरमुर्ग की तरह हम आपत्तियों से मुंह मोड़ कर अपनी आंखें सुखों के कगारों पर टिका लेते हैं ताकि सुख की कल्पनाओं में हम जी सकें!

“चलो! अकबर में चलते हैं।” शैल ने फिर से सुझाव रक्खा है।

“यस यस पाल्स लैट्स गो टू अकबर।” कौशल ने समर्थन किया है।

हम सभी कारों में आ धंसे हैं। अब होटल अकबर की ओर हम लोग नए उल्लास से अग्रसर हो रहे हैं। हमें लगता है कि हम रीते मन वहां पहुंच कर कुछ पी लेंगे तो तृप्त हो जाएंगे। वो कुछ क्या है मैं नहीं जानता। आज पहली बार लग रहा है कि इस पीने पिलाने में मैं अपना समय नष्ट कर रहा हूँ। मुझे अब इस काफिले के साथ, जिसकी न कोई मंजिल है और न उद्देश्य, विचरना शोभा नहीं देता। इस सब का अब समय चुक गया है और मुझे बदल जाना चाहिए। ये बदलाव की ही भावना फिर मुझे खा रही है और मैं परेशान हूँ।

“हे ए ..? क्या हुआ बे!” गुमनाम मुझे पूछना चाहता है।

“कुछ नहीं यार!” मैंने अनमने से कहा है। मेरी आवाज में एक अरुचि है जिसे गुमनाम भांप गया है।

“अबे! चलकर तो देख! मां कसम बहुत बड़ा गेम है। एक दम सब कुछ हरा हरा लगने लगेगा!” वह मेरी मलिन भावनाओं को दुत्कारने का प्रयत्न कर रहा है।

होटल मॉडर्न है। आधुनिकता की जीती जागती मोहर है। अंदर ठंडक भरी है। इसकी ठंडक ने मेरे मन की ठंडक भी जा घुली है। और मैं कटे पेड़ की तरह सोफे पर विचार शून्य हुआ जा गिरा हूँ। अगर खरीदना चाहूँ तो यहां के हर सुख को पा लूं पर आज सुख और ऐशो-आराम की परिभाषा बदली बदली लग रही है। आज मैं कुछ भी खरीदना नहीं चाहता – पा लेना चाहता हूँ।

“कहां से शुरू करें पाल्स?” शैल ने मुझे पूछा है लेकिन मैं कुछ नहीं बोला हूँ।

“बियर और उसके बाद ..” शैल ने ही आदेश दिए हैं।

शुरुआत तो मैंने नहीं की है पर साथ देना स्वीकार लिया है।

अब सोच रहा हूँ कि अकेला भाग भी निकलूं तो कहां जाऊंगा? लाख कोशिश करने पर भी मैं अपने बागी मन को बियर के मग में डुबो नहीं पा रहा हूँ। बहुत ही मधुर सा संगीत मन में गुदगुदी करने बाहर खड़ा खड़ा मेरा इंतजार कर रहा है। लेकिन मैं और मेरे मन के कपाट खुल ही नहीं पा रहे हैं।

“हे..ए! लैट्स डांस!” बानो ने मुझे झटक कर उठा लिया है।

देखते देखते हम सभी मस्ती में सराबोर नाच रहे हैं। फर्श एक दम चिकना है और जूतों के रबड़ के बने तले बहुत तेजी से घूम जाते हैं। इन घुमेरों ने मेरे सारे गम छांट डाले हैं, समस्याएं दूर जा गिरी हैं और मन एकदम हल्का हो गया है। बानो ने लपक कर मेरा गिलास उठा लिया है। हम दोनों ने एक दूसरे की आंखों में घूरा है। एक मुक्त हंसी है जो प्रतिबंधों को सड़क पर लगे बैरियर की तरह उठा कर दौड़ गई है। मैं अनायास ही बानो से जा लिपटा हूँ। अब हम दोनों लिपट गए हैं। मधुर संगीत मुझे स्फूर्तिदायक लग रहा है। सब कुछ किसी अज्ञात खुशी में घुल सा गया है।

बानो मुझे अच्छी लग रही है। उसके कोमल अंगों का स्पर्श जितना शीतल है उससे कहीं ज्यादा मादक है। मेरी आंखें तो मानो बानो में जाकर जड़ ही गई हैं। मन कह रहा है कि मैं कुछ पीता भी चलूं। लेकिन अब भी कोई प्रतिबंध है जो मुझे हर बार पीछे खींच लेता है। लेकिन मेरी हिम्मत हर बार बढ़ती जा रही है। मैंने बानो को अपने आलिंगन में और भी कस लिया है। इस एकात्मता में हमारे जिस्म बंध गए हैं और हमारे कदम एक ही लय पर थिरक कर साथ साथ वापस आ जाते हैं। हम दोनों किसी दर्प रेखा के पार छलांग लगाने को आतुर हैं। बानो कुछ और चाहती है ये तो मैं भी जान गया हूँ।

जब घुमेरों का सिलसिला तेज हुआ है तो मैं एक कदम आगे बढ़ गया हूँ। अपने उत्तप्त होंठों से मैंने बानो के होंठों पर अपनी मोहर दाग कर रसपान कर लिया है। मैंने एक चोरी की है और अब मेरा मन बार बार चोर बनने को आतुर है। बानो सहज स्वभाव में इसी कोने में आसन्न मेरे इर्द गिर्द घूमने से थक नहीं रही है। हर बार हम एक चूक जैसी कर जाते हैं और हंस जाते हैं। बानो के गर्म जिस्म ने मेरे शरीर में भी आग भर दी है। मैं चाहता हूँ कि अब संगीत बजता ही रहे, हम इसी तरह नाचते रहें ओर खुशी अनवरत इसी लय में आती रहे ताकि मैं उस पीछे छूट गए मलिन भावों को दुबारा न झेल पाऊं!

“यू आर ग्रेट .. दलीप ..” बानो ने फुस फुस आवाज में कुछ कहा है।

लेकिन इस बार ये वाक्य मुझे अंदर तक छू गया है। मैंने बानो को इनाम के बतौर और भी पास खींच लिया है ओर कहा है – यू आर सो स्वीट, माई डार्लिंग।

“ओ दलीप! दलीप .. आई लव यू!”

बानो की आवाज में अजीब आग्रह है। ये आग्रह मुझे बांध सा गया है। मैं अब बानो के सामने आत्मसमर्पण कर देना चाहता हूँ। मैं नहीं चाहता कि इन खुशियों से कहीं दूर भाग जाऊं। बानो खुशियों का सपुंज आधार है जिस पर मैं टिक सकता हूँ। बानो मुझे सर्व गुण संपन्न लग रही है। मेरा दिमाग उसकी समालोचना में कुछ भी बुरा नहीं कहना चाहता है। अचानक लगा है कि मैं थक गया हूँ। बानो अब भी मुझे छोड़ना नहीं चाहती है। लेकिन मैं अनमना सा हो गया हूँ और उद्विग्न मन हुआ अकुला सा गया हूँ।

“ऐसी खुशियां कितनी क्षणिक होती हैं?” मैं सोफे पर बैठा सोचे जा रहा हूँ। मन में वही पुरानी ठंडक किसी अनाम दरवाजे से धंसने लगी है। बानो अब मुझसे आंखें नहीं मिला पा रही है। शैल आकर उसे ले गया है। मैं बानो को शैल के साथ नाचते देख रहा हूँ। चंद मिनटों में ही बानो मुझे बदली बदली लगती है। उसके कहे शब्द भी मुझे मिथ्या लग रहे हैं।

“तुम बहक रहे हो।” कोई मेरे ही अंदर से बोल पड़ा है। “विचारों को विस्तृत रक्खो। संकीर्ण विचारधारा से काम लिया तो ..”

इसी के इलाज हेतु मैं एक मग बियर चढ़ा जाता हूँ। बानो के कहे वो वाक्य बियर में डूब कर अर्थ बदल देते हैं। मैं भी पलट जाता हूँ। इसी तरह शायद हम सब ने पलटना सीख लिया है। लेकिन अब मेरा मन गालियां देने लगा है। मेरी आत्मा पूछ रही है – ये तुमने क्या सीख लिया दलीप?

“बिना ये सीखे जीना भी तो संभव नहीं है।” उत्तर मैंने स्वयं खोज लिया है।

मेजर कृपाल वर्मा

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