महान पुरुषों के पूर्वापर की चर्चा !

भोर का तारा -नरेन्द्र मोदी .

उपन्यास -अंश :-

“भारत को महान बनाने का सपना ही एक बीमारी है ,अमित !” अमला के कहे शब्द बार-बार उमड़ रहे थे …उठ रहे थे …और व्यालों की तरह उस के गले से लिपट कर कह रहे थे , “तुम्हारा सपना …भी तो यही है,अमित ?”

वह चुप था . शांत समुद्र-सा वह …उस सावरमती जेल के भीतर एक तूफ़ान की तरह आ बैठा था ! न जाने क्या उस के भीतर भरा था …जो गरम-गरम लावे की तरह …बाहर बह निकलना चाहता था ! भ्रष्टाचार ….अनाचार ..अत्याचार ….और अव्यवस्ता को जला कर राख कर देना चाहता था ! वह चाहता था कि …एक साम्राज्य की स्थापना हो …एक अनूठे साम्राज्य की, जहाँ मानवीयता का मान हो …जहाँ आदर्शों का आदर हो ….जहाँ का हर नागरिक प्रशिक्षित हो ….और सम्मानित हो !

“आज की व्यवस्था …बैईमानों की है …लुटेरों की है !” अमला कहता ही जा रहा था . “मेरे पिता जी – कर्नल कमला सिंह आज़ाद …जेल में मरे …मैं भी जेल में हूँ …! क्यों कि हम बुराई से जंग हार गए हैं !! अमित तुम मत लड़ो ….इस आग में तुम मत कूदो …मेरे लाल ?” अमला बिलख रहा था . “तुम एक संभ्रांत परिवार के बालक हो …! तुम्हें कमी क्या है,अमित ….जो तुम …..?” अमला ने अमित की आँखों को पढ़ा था . स्वच्छ आसमान की तरह वो आँखें साफ़ थीं . “तुम्हें चाहिए..क्या …?” अमला अंत में पूछ बैठा था .

कितना कठिन प्रश्न था ,ये ? और इस का उत्तर आज भी उसे न आता था …! वह जानता ही नहीं था कि …अपने लिए उसे ..क्या-क्या दरकार था ….? भिन्न प्रकार की भूख थी,अमित की ! वह महसूसता था कि …उसे …धन-माल …ज़मीन-जायदाद…या कल-कारखाने कुछ भी तो नहीं चाहिए था ? वह जो लेना चाहता था …वह तो आसमान पर टंगा चाँद था ! …महान भारत …था – वह !!

“पागल हो गए हो ,तुम …?” अमित ने अपने पिता अनिल चन्द्र की आवाजें सुनी थीं . क्यों तुम …आवारा बनना चाहते हो ….? जिन का कोई घर -घूरा नहीं होता …वो लोग स्वयं सेवक बनाते हैं …?”

“नहीं,पापा …! स्वयं सेवक का मान होता है ! स्वेच्छा से समाज की सेवा करना …और …” अमित ने दलील दी थी . उस की कच्ची और कोरी समझ ने पहली बार …जिन्दगी के आस-पास से कुछ चुना था . “समाज सेवा …..”

“मूर्ख बनाने का आडम्बर है,बेटे !” अनिल चन्द्र गरजे थे . “जो लोग तुम्हें ये सीख दे रहे हैं …घोर स्वार्थी हैं …सत्ता के भूखे ….कुत्ते हैं ! भोले-भले बच्चों को जाल में फंसा कर …उन का जीवन बर्बाद कर देते हैं ! न तुम पढ़ सकोगे ….न तुम शादी कर सकोगे ….और न ही तुम व्यापार करोगे ….? फिर ….फिर ….” उन का गला रुंध गया था . “अकेला बेटा …..परिवार का अकेला ….चिराग ….?” वह रोने ही लगे थे .

उन के भाव और भावनाओं को तब अमित समझ ही कब पाया था ….? एक बाप की अपने बेटे से ..की अपेक्षाओं के बारे …उसे समझ कहाँ थी …? उस कुल १४ साल की उम्र में …उस ने तो मन लगाने के लिए एक खिलौना खोज लिया था ! उस का मन करता था कि वो … शाखाओं में जाए …उन के क्रिया-कलापों में भाग ले …उन की भाषा बोले …उन के से कपडे पहने …और कंधे पर लाठी रख कर …एक अभिमान के साथ …सडकों पर डोले …और गर्व से कहे – मैं हिन्दू हूँ ….!!

“क्या कोमल विचार है ….?” अमित हंस पड़ा था . “तब तो उन मुहावरों के माने पता ही न था !” वह स्वयं से कहता है . “पर आनंद खूब आता था ! लगता था -भारत का सरताज मैं ही था ! भारत का मैं अकेला ही रखवाला था ! और मेरी लाठी में इतना दम था कि …किसी भी आताताई के हाथ को एक ही वार में तोड़ डालता …और जो भी भारत की ओर आँख उठता -उसे फोड़ डालता …..

“जोरों से लाठी मारते हो,अमित !”शाखा के शिक्षकों की शिकायत थी . “ये मात्र …शिक्षा होती है …,मित्र ! सहारे से काम लो …लड़ने का वक्त आए … तब जौहर दिखाना ….!” उन का आग्रह था .

“आ गया न …लड़ने का वक्त ….?” स्वयं से पूछा था, अमित ने . “अब तो वार करना ही होगा ….?” वह कह रहा था . “वरना तो ….भाई जी …..?”

सोच और भी गहराने लगा था ….!!

“‘गोधरा काण्ड’ का धरा गोधन कोई मामूली खेल नहीं था ?” अमित की समझ अब सब आ रहा था . “यह एक सोचा-समझा … योजना बद्ध …अंतर्राष्ट्रीय …अभियान था …जिस का मूल मुद्दा …भारतीयता को अन्तः समाप्त करना था ….हमारे हिन्दू होने से पहले ही हिंदुत्व को समाप्त करना था ! सेक्युलरिज्म के शस्त्र से …अब की बार देश को इस तरह से काटना-बंटाना था कि …फिर कभी भी कोई एक न हो पाए ….? कभी भी यहाँ कोई सर न उठा पाए ….कोई भी गर्व से कुछ करने के काबिल ही न रहे ….किसी के पास लगाव-जुड़ाव …के लिए कुछ न बचे …और जो अंत में बच रहे -वो निरी छूंछ ही हो ! और आदमी के इस रेत को …मलवे को गुलामी का एक पुख्ता जिस्म पहना कर …वर्कर्स तैयार कर लिए जांय …जो काम करें …सिर्फ काम करें …उन के लिए जो चालाक हैं…चतुर हैं !!”

“जिन्दगी का दूसरा नाम …कुछ देना है ,लेना नहीं !” नरेन्द्र मोदी की आवाजें लौट-लौट कर अमित के कानों तक आने लगीं थीं. “मित्रो ….बन्धुओ ….भाईओ …! मैं तो कहूँगा कि …जितना आनंद देने में आता है …उतना न तो लेने में आता है …और न ही लूटने में ! मैं चाहता तो अब तक अपने लिए किले बना लेता..गढ़ खड़े कर लेता …इत्ता कमा लेता कि ….” रुक कर उन्होंने सामने एकत्रित विद्यार्थियों की टोली को निहारा था . “तुम लोग इस राष्ट्र की शक्ति हो …प्राण हो ……सामर्थवान हो …! तुम लोग अगर चाहो तो ….युग बदल दो …तुम लोग चाहो तो चलते वक्त को रोक दो ….और अगर तुम लोग चाहो तो ……”

“आप क्या चाहते हैं ….?” प्रश्न अमित ने पूछा था .

“तुम्हें ….!”बे-लोस उत्तर था , नरेन्द्र मोदी का . “सच में ही अमित …मैं तुम्हें चाहता हूँ ! तुम होनहार हो ….चरित्रवान हो …और तुम एक अनूठी प्रतिभा के धनी हो ! मैंने तुम्हारे भीतर से भारत के भविष्य को देखा है , मित्र ! सच में …! हाँ,सत्य भाषण के बाद मैं बात समाप्त करूंगा कि …अगर तुम मेरे साथ जुड़ जाओ …तो ….”

वक्त वहीँ ठहर गया था ! हवा भी रुक कर ताक-झांक करने लगी थी ! रात्रि का वो प्रहर हिलना ही न चाहता था ! आसमान पर बैठे सितारों ने नरेन्द्र मोदी की मांग को बड़ा कर दिया था . आसमान भी उन दोनों को अमर हो जाने के संकेत दे रहा था ! इस मिलन को देखने के लिए उन के मित्रों की आँखें भी खुलीं थीं ! नरेन्द्र मोदी की आवाज़ अभी भी मरी नहीं थी ! नरेन्द्र मोदी की पसरी बाँहें …अमित के आव्हान के लिए फैली ही रहीं थीं ! और …अमित ….?”

उस ने अपने मुकाम को उस दिन पा लिया था ….खोज लिया था …! उस के प्रश्न का उत्तर उस दिन आ कर मिला था ! और न जाने कैसे नरेन्द्र मोदी भी उस के बारे सब कुछ जानते थे ? एक आश्चर्य ही था कि …जो वह नहीं जानता था …वह मोदी जी को पता था ….?

उस शाम के सन्नाटे में अमित और नरेन्द्र मोदी …एक दूसरे के सामने कई लम्हों तक खड़े रहे थे ….अलग-थलग ….प्रथक-प्रथक ….भिन्न-भिन्न मुद्राओं में …असम्प्रक्त ….!!

दोनों के बीच समानताएं तो थीं …पर उम्र की एक बड़ी असमानता भी तो थी ….? नरेन्द्र मोदी पके-पौडे युवक थे ! लेकिन अमित तो एक कच्ची ककड़ी-सा लुंज-पुंज युवक ही था …? उस के भीतर का फैलाव नरेन्द्र मोदी के सिवा किसी और को नज़र ही न आया था …? कुल १८ साल का अमित नरेन्द्र मोदी के लिए – बड का एक पूर्ण पौधा था !

“मैं …..म-म मैं आप के लिए क्या कर पाऊंगा ….,सर ?” भारी कंठ से पूछा था ,अमित ने .

“वही ….जो कभी सुभाष ने किया था, अमित !”

“सर …! पर …..,सर ……”

“देश का युवक तुम्हारी भाषा समझ लेगा,अमित !” हँसे थे ,नरेन्द्र मोदी . “तुम्हारी अभिव्यक्ति ….तुम्हारा रुझान …और तुम्हारा समपर्ण ….तुम्हें वहां तक ले जाएंगे ….जहाँ हमारी राह हमारा रास्ता देख रही है ,अमित !”

“सर! पर मैं तो कुछ समझ ही न पा रहा हूँ …?”

“मैं जानता हूँ ! लेकिन मैं ना समझ नहीं हूँ ! मैंने जो देखा है …समझा है …. और जो भोग है , मैं उसी के आधार पर …तुम्हें चुनना चाहता हूँ,मित्र !”

“तो …मेरा भी समर्पण …स्वीकारिए , सर !!” अमित नत-मस्तक था .

कोई क्या नाम देता इस घटना को ….? कौन-सा रिश्ता बताते ,इसे …? क्या था – जो उन दोनों को साथ-साथ ले आया था …? उन का तो परिचय भी पूरा न था ….???

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की बाग़डोर अब अमित के हाथों में थी !

तन्हाई के उस नितांत एकांत में ….अमित शाह महसूसता है कि ….’सत्ता’ के माने तभी समझ आता है जब …सत्ता हाथ में आ जाए ! सत्ता हाथ में आते ही अपने अर्थ समझा देती है …! सत्ता हाथ में आते ही – हाथ का हाव-भाव ही बदल जाता है ! बोली-भाषा तक अलग-थलग हो जाती है ! आँखों में भी अलग ही चमक होती है ! और आवाज़ में जो रौब-रुबाब आ जाता है …वो तो एक दम अज़ब की ही बात लगाती है !!

और निर्णय लेने की क्षमता …काम करने का सलीका …जोड़ने-तोड़ने की कला ….तथा …हार-जीत का दंगल …सब गोटों की तरह स्वयं ही फिट होता चला जाता है ! जीत-हार के बजते नगाड़े ….हर्ष-विषाद को पीने-पचाने की कला ….सब कुछ सिखाने लगती है …!

“और ….और हाँ ! और भी ना जाने क्या-क्या नहीं सीखा है ?” अमित ने अंगडाई तोड़ी थी . “पर …..अभी तक ……?”

दिन २६ जनवरी २००१ का था ! मैं दिल्ली में था . मुझे दिल्ली में रहते हुए अब एक अरसा हो गया था ! १९९८मैन जब ये मेरा नेशनल सेक्रेटरी – ओर्गानैज़ेशन , का चयन हुआ था …तब से मैं यहीं था ! मुझे दिल्ली अब रास आने लगी थी . मैं गुजरात को भूल अब भारत को याद रखने लगा था ! मेरा मन अब महान भारत के गली-कूचों में डोला करता था ! और मैं कभी आसाम …तो कभी जम्मू …और कभी विदेश तो कभी स्वदेश ….में विचरता रहता था ! मुझे अपना ये पद भाने लगा था !

अब हमारी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बनानी थी ! अटल जी का राज था ! अटल जी से लोगों को आशाएं थीं ! वह एक असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे ! उन के पास दूर-द्रष्टि थी . वह श्रजन करता थे ! और मैं भी सोचता था कि ..उन के इस साथ आए सामीप्य में -मेरी समझ में भी बहुत बड़ा इजाफा हुआ था ! मेरा दिमाग जैसे दशों दिशाओं में खुल गया था ! जैसे कि …जीवन में पहली बार ही मेरी समझ में एक नागरिक की परिभाषा आई थी ! मुझे भारत की सीमाओं …और उन की सुरक्षा का ज्ञान पहली बार हुआ था !!

“मैं तैयार था . मैं आज गणतंत्र दिवस की परेड देखने के लिए उल्लासित था . मैं और भी अपने मित्रों और साथियों को निमंत्रण दे चुका था ! ‘आप आएं …और हमारी परेड …देखें !’ मैं उन से कहता रहा था . देश के प्रति समर्पित होने के लिए ये मेरे लिए एक नया अवसर था !

तभी ,हाँ …तभी ! एक जोरों का झटका लगा था ! मेरे भीतर-बाहर का सब हिल-डुल गया था ! मैं गिरते-गिरते बचा था . आकाश-पाताल एक हो गए लगे थे ? मैं बुरी तरह से बमक पड़ा था ! क्या था ,ये .? मैंने स्वयं से पूछा था . तभी फोन की घंटी बज उठी थी .

“हाँ,मन्नू …..?” मैंने फोन पर कहा था .

“भूचाल ….था ….!”मालवीय बोल रहा था . “दो मिनट का था ..! ७.७ का था ….!”

“तो …..?” मैं झल्ला पड़ा था . “परेड देखने तो आ रहे हो , ना …..?” मैंने पूछा था .

“नहीं ….!” वह तडका था . “तुम पागल हो …..! गधे ….हो …तुम …!!” वह मुझे फोन पर ही गरियाने लगा था . “बर्बाद हो गए ….हम …और …तुम …..?” वह अपनी कहे जा रहा था .

“क्या हुआ , व्वे …..?” मैंने बड़ी ही सौम्य आवाज़ में पूछा था .

“गुजरात गया ….!!” उस ने कहा था . “भुज में आया है , ये भीषण भूचाल ….!! सब कुछ गारत हो गया ,मित्र !”

“गेट ….योर …प्लेन ….!!” मैंने उसे आदेश दिए थे . “लेट’स गो ….!! लेट’स ….रन …!! लेट’स ………..” मैं अब हांप रहा था . “मैं पहुँचता हूँ, मन्नू ! देर न …लगाना …..” मैंने फोन रखते हुए कहा था .

“कुर्सी पर बैठे आदमी के भाग्य का देता है , विधाता !” मैंने आह रिताते हुए स्वयं से कहा था . “ये आदमी नेक नहीं है ! ये देश-भक्त भी नहीं है !!” मैंने कुर्सी पर बैठे चीफ मिनिस्टर केशोभाई पटेल के लिए के लिए ऐसा कहा था . मैं अब तक बहुत कुछ जानता था ! मैं दिल्ली में बैठा था – पर बे-खबर न था ?

“आ रहे हो, सर ….?” अमित का फोन था .

“फ़ौरन ….पहुँच …रहा हूँ !” मैंने उड़ते हवाई जहाज के भीतर से कहा था . “बस ! अब पहुंचे …तुम्हारे पास …!” मैंने उसे आश्वासन दिया था . “और ,हाँ ! उन का क्या हाल है ….?” मैंने चीफ मिनिस्टर के बारे पूछा था .

“बीमार है !” अमित ने बताया था . “बहाना है,बीमारी का !” वह क्रोध में था . “सारी तबाही का कारण-ही …. ये आदमी है !” अमित बौखला रहा था . “सम्पूर्ण बर्बादी है,सर !!” अब अमित रुआँसा हो आया था . “हवाई जहाज से नज़र भर कर देखना …! लगेगा ….कि ….”

सच कहा था,अमित ने . भुज और उस के आस-पास के प्रदेश ….पूर्ण रूप से तबाह हो गए थे ! मेरा ह्रदय काँप-काँप उठा था ! इतना भीषण …और बीभत्स द्रश्य मैंने जीवन में पहली बार ही देखा था !

“हीरोसीमा पर ….एटम बम मारा था ,….अमरीका ने !” मैं अचानक ही दादा जी की आवाजें सुनने लगा था . “समूचा शहर ही जल कर राख हो गया था ! ऐसी तबाही विश्व ने पहली बार ही देखी थी ! सम्पूर्ण मानवता ही रो पड़ी थी,नरेन्द्र !” कहते-कहते दादा जी भी रो पड़े थे .

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श्रेष्ठ साहित्य के लिए -मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

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