महान पुरुषों के पूर्वापर की चर्चा .

भोर का तारा – नरेन्द्र मोदी –

उपन्यास अंश :-

“आज तो बहकी-बहकी बातें कर रहे हो , वकील सहाब ….?” विरोध हुआ था . “क्यों मुफ्त में मरवाते हो , हम गरीबों को ….?”

“मौत से डरना ही तो ….मरना है , मित्रो ! जिन्दा रहना है …तो मेरे पीछे आओ ! स्वाभिमान के साथ मौत को गले लगाते हैं …..गुलामी को अस्वीकार करते हैं …और ….”

बहुत बड़ा संकट सामने था . अंग्रेजों की पुलिस के दस्ते …सामने इन्तजार में खड़े थे . सत्याग्रही उन के लिए आते कबूतरों जैसे निरीह शिकार थे ! इन के पास तो डंडे तक न थे ? बिलकुल निहत्थे थे …और एक पागल वकील की शय पर …मरने चले आ रहे थे ! ये क़ानून का उल्लंघन कर रहे थे . हक़ मांग रहे थे . मान ही न रहे थे ….

बड़ा ही विचित्र खेल था !!

“रुक जाओ ! आगे मत बढ़ना …!! गोली चलेगी …!!” पुलिस की चेतावनी आई थी .

लेकिन गाँधी जी चलते ही चले गए थे !

“और ….?” मैं पूछ रहा था .

“और डंडे बरसने लगे थे …गोलियां चलने लगीं थीं ….और सत्याग्रहियों को पकड़-पकड़ कर घसीटा जाने लगा था ….! लहू बह चला था ! चीखो-पुकार ….चल पड़ी थी ! लेकिन आगे बढ़ता काफिला …रुका न था …झुका न था …टला न था …और अड़ा रहा था …खड़ा रहा था …पिटता रहा था …कराहता रहा था …..”

पीटने वाले ही बेदम हो गए थे !!!

सब को घसीट-घसीट कर ..जेल में ठूंस दिया था ! ‘सत्याग्रह’ और ‘अवज्ञा’ आन्दोलन का अनूठा असर दिखा था . सत्याग्रहियों के साथ …जेल में किसी ने भी …अपराधियों जैसा सुलूक नहीं किया था ! उन लोगों को स्वयं ही सत्याग्रहियों का दर्जा मिल गया था ! और हाँ , एक अनूठा सम्मान उन के लिए हवा पर तैर आया था !!

“ये भी एक कला है, यारो …?” सत्याग्रहियों ने स्वयं महसूस था . “गाँधी जी गलत नहीं हैं ? मरना-जीना तो मात्र दो अवस्थाएं हैं ! लेकिन जो आज हासिल हुआ है …इस का तो आनंद ही अलग है ….?”

“अब हम न झुकेंगे …..”

“अब हम न रुकेंगे ….” नारों की तरह साऊथ अफ्रीका के आसमान पर चढ़ कर गूंजा था . “अंग्रेज हैं कौन ….जो हमें गुलाम बना लेगा ….?” उन का दृढ निश्चय था .

अंग्रेज झुके थे . उन्होंने गाँधी जी की बात को समझ लिया था . गाँधी जी को मना लिया था . जनरल इस्मुट ने सत्याग्रह की पकड़ को …पहली बार देखा था ! उस ने मान लिया था कि ये सत्याग्रह ….बम के गोलों से भी ज्यादा कारगर था …असरदार था …!!

“सन १९०७ में इस आविष्कार का जन्म साऊथ अफ्रीका में हुआ था , नरेन्द्र !”

इस की खबर भारत पहुंची थी . गाँधी जी का नाम हवा पर चढ़ कर देश के कौने-कौने तक पहुँच गया था ! भारत से गोखले गाँधी जी से मिलने साऊथ अफ्रीका गए थे ! उन्हें एक आशा किरण के दर्शन पहली बार हुए थे ! उन्हें लगा था कि …गाँधी के सत्याग्रह के दर्शन में …एक अपार शक्ति थी ….और उन का आन्दोलन भी एक अनूठा ही अस्त्र था !!

गाँधी जी को साऊथ अफ्रीका में एक नया दर्जा दिया था – अंग्रेजों ने !

गाँधी जी ने ‘इस्पेशल इन्डियन एम्बुलैंस कोर ‘ का गठन किया था . उन का उद्देश्य बोआर के साथ होते युद्ध में अंग्रेजों की मदद करना था ! उन्होंने युद्ध में घायल हुए सैनिकों की सेवा करने का व्रत लिया था ! अंग्रेज गाँधी जी के इस आचरण से प्रसन्न हुए थे !!

सन १९१४ में जनरल इस्मुट ने गाँधी जी के साथ बैठ कर …समझौते पर हस्ताक्षर किए थे ! जून के महीने में हुए इस समझौते की खबर …पूरे विश्व की एक ऐसी खबर थी ….जो ‘अजूबा’ थी !!

इस के बाद गाँधी जी भारत न लौट कर …लंदन लौटे थे !!

“तब पूरे देश में एक शक दौड़ा था ! जो दीपक साउथ अफ्रीका से रोशनी ले कर भारत आने वाला था …वह लंदन कैसे गया …? देश में घोर निराशा के बादल छाए थे . देश को एक नई दिशा की दरकार थी . क्रांतिकारी भी दो दलों में बंट गए थे ! कुछ जेलों में पड़े थे और बुरे हाल में थे ! अंग्रेजों का आतंक बढ़ गया था . बंगाल शांत हो गया था . पंजाब सुलगने लगा था . ग़दर पार्टी के लोग तोड़-फोड़ में लगे थे – पर कुछ कर न पा रहे थे !

प्रथम विश्व युद्ध का आरंभ हो गया था !!

एक आशा किरण लौटी थी ! सोचा था – अंग्रेजों को भगाने का अच्छा अवसर था – लेकिन भगाता कौन ….?

और जब सन १९१० में गाँधी जी भारत लौटे तो लोगों ने उन्हें आँखें भर-भर कर देखा था ! उन्होंने गुजरात में सत्याग्रह आरंभ किया था . लेकिन सन १९१८ में वापस ले लिया . इस के विपरीत उन्होंने अंग्रेजों की मदद करना आरंभ किया . सैनिकों की भर्ती कराई और धन-जन से मदद की !

शायद उन का सोच था की वो अंग्रेजों से एक रिश्ता बना लेंगे …बराबरी का एक रिश्ता ? सन १९०९ में लिखे अपने ‘हिन्द-स्वराज’ में उन्होंने कुछ इसी तरह की संभावनाओं को खोजा था ! लेकिन ‘हिन्द-स्वराज’ को अंग्रेजों ने गुजराती में छपने तक न दिया ! अंग्रेजी में छपा ‘हिन्द-स्वराज’ अंग्रेजों के लिए कोई खतरा न था !!

“‘अंग्रेजों का एजेंट है , ये गाँधी !’ पुरजोर हवा फैली थी . ” दादा जी बता रहे थे .

लेकिन जब गाँधी जी तिलक से मिले थे …तो स्पष्ट बातें हुई थीं ! सब तय हो गया था ….!!

“मैंने देश को डोल-फिर कर देख लिया है !” गाँधी जी ने तिलक से कहा था . “मैं समझ गया हूँ कि …अंग्रेज हमें न कभी बराबरी देगा …न हमें स्वराज देगा ! हमें अपना पूर्ण स्वराज अब हासिल करना होगा !” वह कह रहे थे . “पूर्ण स्वराज ही मांगूंगा , मैं !” उन्होंने वायदा किया था .

बाल गंगाधर तिलक की आँखों में एक विश्वास उगा था ! उन्हें आभास हुआ था कि …ये …दो हड्डियों का आदमी …’गाँधी’ फौलाद का बना था ! ये ..अब न रुकेगा ….अब न झुकेगा ….न हारेगा …और न भागेगा …और अब पूर्ण स्वराज ले कर ही दम लेगा …!!

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श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!