by Major Krapal Verma | Oct 8, 2025 | स्वामी अनेकानंद
राम लाल की आंखों में विजय गर्व सा कुछ तैर आया था। “बर्फी चुप थी। बर्फी हिली भी नहीं थी। पर मैं मान गया था कि वो मेरे आने के इंतजार में थी। तब मैंने अपने उस पर धरे हाथ से उसे अपनी ओर समेटा था और उसने भी करवट बदल कर मुझे मौका मोहिया कराया था।” “फिर...
by Major Krapal Verma | Oct 8, 2025 | स्वामी अनेकानंद
मात्र अंग्रेजी सीखने का विचार ही आनंद के शरीर को कीड़ों की तरह काटता बकोटता रहा था। उसे रह-रह कर याद आता रहा था कि किस तरह वह अंग्रेजी का घोर और कट्टर विरोधी था। और किस तरह वह इसे गुलामी की जंजीर बताता था। उसका मानना था कि जब तक हम अंग्रेजी बोलते रहेंगे – गुलाम...
by Major Krapal Verma | Oct 8, 2025 | स्वामी अनेकानंद
पटरी पर निष्क्रिय बैठा आनंद आज ऊंघ न रहा था। “जरूर-जरूर राम लाल ने झुग्गी में अकेली बर्फी के साथ बुरा काम किया होगा?” आनंद कयास लड़ा रहा था। “ये आदमी सीधा नहीं है।” उसने मन में सोचा था। “बर्फी ..?” “आनंद बाबू!” कल्लू ने...