मुझे ऐसे शहर में घर नही चाहिए

सिलवटों में चादरों की बिक जाए प्यार जहाँ,
मुझे ऐसे शहर में घर नहीं चाहिए|
स्पर्शों में हवस हो सम्मान की ना हो जगह,
मुझे ऐसे शहर में घर नहीं चाहिए|

गूंजती रहीं हों जहाँ सिसकियाँ सन्नाटों में,
फंस गयी हों हिचकियाँ शोरगुल के काँटों में,
उम्मीद ने तोड़ा हो दम विश्वास की छाया में जहाँ,
मुझे ऐसे शहर में घर नहीं चाहिए|

रोज़ उलझती रही नाराज़गी वादों के संग,
बदलता गया हो जहाँ आँखों का सुहाना ढंग,
तय हो चली हो सज़ा गुनाह से पहले ही जहाँ,
मुझे ऐसे शहर में घर नहीं चाहिए|