महान पुरुषों के पूर्वापर की चर्चा !

भोर का तारा – नरेन्द्र मोदी .

उपन्यास -अंश :-

मन तनिक हलका हुआ था -मेरा ! फिर भी मैं ना जाने क्यों …’लड़की’ के प्रसंग को ले कर …असहज हो गया था ….!!!

उस वक्त की बात है जब मैं गुजरात राज्य में हुई क्षति की पूर्ती के लिए …दिन-रात भाग रहा था …! ये २००४ का समय था . गुजरात को नष्ट-भ्रष्ट कर भू-कम्प तो चला गया था …पर उस के दिए घाव अभी तक न भरे थे …? और फिर गोधरा भी तो धधक ही रहा था …? लेकिन मैं एक दृढ -निश्चय के साथ …चलता ही चला जा रहा था ! बढ़ता ही जा रहा था – अपनी मंजिल की ओर !!

“ये तो कमाल ही हो गया ….?” मैं अचानक कह उठा था . भुज में हुए विध्वंस को मैंने एक चश्मदीद गवाह की तरह देखा था . और आज ….जब मैं लौटा था …तो बदले द्रश्य को देख कर …दंग रह गया था ? लगता ही नहीं था कि यहाँ कभी कोई भू-चाल आया भी था ….? तब मैंने प्रशंसा में कहा था ,”कितना प्यारा …लेंडस्केप ..तैयार किया है ….?” मैंने मुड कर पास खड़े उस आई पी एस अधिकारी को देखा था . “किस ने किया है , ये चमत्कार …. ?” मेरा प्रश्न था .

“इन से मिलिए ,सर !” प्रदीप शर्मा ने बड़ी ही विनम्रता के साथ कहा था . “मिस ….सोनी ….!” उस ने नाम बताया था . “आर्किटेक्ट हैं ! पूना की एक फर्म में काम करती हैं ! लेकिन रहने वाली तो भुज की ही हैं !” प्रदीप शर्मा मुस्करा रहा था . “आप की तो ……फैन हैं …..?” उस ने अपनी उस चुलबुली हंसी के मध्य से मुझे अवगत कराया था .

उस पल में …..उस छिन में …मैंने भुज में आए ..एक और तूफ़ान को देख लिया था ….!!

मिस सोनी संगमरमर की प्रस्तर प्रतिमा-सी …मेरे सामने खड़ी थी ….विंहस रही थी …..और शायद मुझ से मिलाने को बे-ताब थी …? उस अनिंद्य सुंदरी को आँखें भर-भर कर देखता मैं ….हैरान था …कि ..आखिर परमात्मा ने उसे इतना रूप-लावण्य दे कर निहाल किया था ….तो क्यों ..?

“कुल २७ साल की हैं,सर !” अचानक प्रदीप शर्मा ने मुझे मिस सोनी की उम्र बताई थी .

“वनडरफुल ….!!” मैंने मन में कहा था और ….प्रदीप शर्मा को निगाहें भर कर देखा था . उस का कहा मैं सब समझ रहा था . प्रदीप शर्मा का पूरे-का-पूरा सन्देश मुझ तक पहुँच गया था !

“चित्रा को देख कर मैं …दंग रह गया था ,नरेन्द्र !” न जाने कैसे अब मैं …अपने गुरु जी की आवाजें सुन रहा था . “मैं …न रोक पाया था …अपने आप को ….?” वह बता रहे थे . “और …चित्रा – जिसे मेरा बाप अपने लिए ब्याह कर लाया था , मुझ पर आसक्त हो गई थी !” उन का बेबाक स्वर चलता ही चला आ रहा था . “और ….और …हम दोनों ….लिपट गए थे ….मिल गए थे ….प्रेमाकुल हुए …पागल हो गए थे …जब तक कि मेरा बाप …कुल्हाड़ी लिए …हम दोनों को ……?”

सच में ,मित्रो ! मेरे भी पसीने छूट गए थे ….!!

“मैं नहीं जानता ,नरेन्द्र कि ….चित्रा का क्या हुआ …? पर ,हाँ ! मैं बच कर भाग आया था ….और फिर कभी न लौटा …..” उन की वाणी सहज थी . “बेटे ! जब ये औरत …का भूत …चढ़ता है …तो आदमी पागल हो जाता है ….?”

और अब मैं भी पागल होने-होने को था ….? प्रदीप शर्मा भी ये जान गया था …..!!

“आप का तो ….यश …फ़ैल रहा है ….?” मिस सोनी कह रहीं थीं . “सब जानते हैं ….कि …आप …..?” मधुर आवाज़ थी सोनी की ….! बहुत ….आकर्षक …सौम्य ….और सटीक लगी थी,मुझे वह ! शब्दों का चुनाव एक दम सही था .

“जानते हो मेरी माँ का गला मेरे डैडी ने क्यों काटा था ….?” ना जाने कैसे मैं फिर क्रिस्टी के सामने खड़ा था . “इस लिए ,नरेन्द्र कि …वह …कुल्टा थी ….दुश्चरित्र औरत थी ….और मेरे डैडी पागल हो गए थे …? मैं भारत भाग आई थी ….”

“अब मैं भाग कर कहाँ जाऊं …..?” मैंने क्रिस्टी से ही पूछा था .

“तुम भाग नहीं सकते हो, नरेन्द्र !” लो ! अब निवेदिता जी मुझे पकड़ कर खड़ी हो गईं थीं . “जानते हो …न कि …स्वामी जी की म्रत्यु के बाद …मैंने संघर्ष छेड़ दिया था …और लार्ड कर्जन से सीधे जा कर भिड़ गई थी …?” वह मुझे बता रहीं थीं . “सीधे टक्कर लो ….दुराचारियों से ….भ्रष्ठाचारियों से …..और पलट दो इस बेईमान …तंत्र को ….?” वह कहती ही जा रहीं थीं .

लेकिन मैं भ्रमित था ! मैं डरा हुआ था !! मैं …तो ….? मैं तो अब मुड कर प्रदीप शर्मा को भी न देख पा रहा था ….?

“हमने अपना हक़ पा लिया था , उन से …?” अब की बार माँ शारदा उदय हुईं थीं . “वो तो ….परमहंस थे …..पर हम भी …तो ….?”

“पर मैं क्या मांगूं,माँ ….?” मैं उन से पूछना चाहता था . “म …म….मैं …अगर इस जाल में फंस गया ….तो ….?”

“लोग कहते हैं – आप ….पी …एम् …बनेंगे ……?” मिस सोनी ने मेरा मौन तोडा था .

“लेकिन ……..अ-के-ले …..?” प्रदीप शर्मा ने आग पर घी डाला था . “वैभव को …….अकेले-अकेले ….भोगना ……बुरा लगता है …..?” वह बता रहा था . “सर ! आप की ……..सौहरत ……….?”

मैं अब प्रदीप शर्मा की चापलूस बातों को सुन रहा था ….?

कैसा विचित्र समारोह था …? लग रहा था जैसे वहां …..उस हिल-व्यू गार्डन में … कोई स्वयंबर हो रहा था …और कामदेव ने कामातुर नदियों का जाल …चहुदिक फैला दिया था ….? वहां उपस्थित सभी अपने-अपने होश खो बैठे थे ….! अब देखना यह था कि ….कौन …ले जाएगा मिस सोनी को ….वर कर ….और …कौन-कौन रह जाएंगे – हाथ मलते ….?

“इन के हाथों में जादू है, सर !” प्रदीप शर्मा फिर से कहने लगा था . “ये देखिए …..आप स्वयं ….देखिए ……?” अब वह चाहता था कि मैं मिस सोनी का स्पर्श करू.

सुंदर उंगलियाँ थीं ! लम्बी -लम्बी …सुघड़ उंगलियाँ …और वो रचे नाखून ….न जाने क्यों मुझे बुला बैठे थे ….? सोनी का गोरा रंग भी ….क्या ही रंग था ….? और ढंग भी तो निराला ही था …? मेरी नीयत …न जाने क्यों बहकने लगी थी ! मन भागने लगा था . तन ….तन को छूने के लिए राजी हो गया था ! मात्र एक संकोच ही बचा था …हमारे बीच ….जिसे प्रदीप शर्मा ने ….अब की बार समाप्त ही कर देना था ….!!

“छू मत लेना , दरवेश …..?” अचानक मेरे कंधे के उस पार से एक आवाज़ आई थी . आवाज़ – जिसे मैं जानता था …और पहचानता भी था . “डूब जाओगे ….!!” फिर आई थी एक चेतावनी .

जसोदा थी ! जसोदा बैन – मेरी धर्म पत्नी जो सहसा ही मेरे साथ आ खड़ी हुई थी !!

कमाल ही था ….? जसोदा की आँखों में मेरे लिए …शुभ कामनाओं के चिराग जल रहे थे ! वह मेरी अब तक की कामयाबी से प्रसन्न थी-शायद ….? लगा -उसे अपने पति पर गर्व था …अभिमान था ….और आज …अचानक ही वह …अपने सिन्दूर की सहायता करने चली आई थी ….?

“तुम्हारी शादी तो शास्त्रों के अनुकूल हुई है , नरेन्द्र !” गुरु जी थे . “जसोदा तुम्हारे साथ ही रहेगी – इस जन्म में ! तुम्हारे भले-बुरे की वह भी भागीदार बनेगी ….!” उन के सत्य वचन थे .

मैंने …अपना हाथ पीछे खींच लिया था …..!!!

“क्यों भागना चाहते हो …?” गुरु जी पूछ रहे थे . “क्या कष्ट है …?” उन का प्रश्न था .

“मेरा मन ही नहीं लगता ,अब …!” मैं उदास था . “ना जाने क्यों ये …ये पर्वत मुझे बुलाते रहते हैं …? न मुझे चैन लेने देते हैं …और न ही सोने देते हैं !!”

अब हम अपने पड़ाव पर पहुँच गए थे . ब्रम्ह्चारिओं ने अपने-अपने तप आरम्भ कर दिए थे . मैं अब निपट अकेला था . क्रिस्टी भी अब मुझ से बातें न करती थी . मैं था ….और मेरा परमात्मा ! हाँ ! मेरा अनगढ़ भविष्य था – जो अब मुझे एक अपूर्व उजास की तरह भीतर से भरने लगा था !

“सूरज तुम्हें आ कर जगाता है ….चाँद तुम्हें सुला कर जाता है ….और रात स्वयं ही एक नरम बिछौना बन …तुम्हें अपनी अंजुरी में भर लेती है …?” मेरा मन मुझ से बोल रहा था . “ये अनमोल सुख कितनों को मिलता है,नरेन्द्र …?” वह पूछ रहा था . “जिस दुनियांदारी में तुम दौड़ कर पहुँच जाना चाहते हो …..वहां सुख नहीं है …..”

“सुख चाहिए …किसे …?” मैं भवक उठा था . “बताओ.बताओ ! उन बर्फ से ढकीं …पर्वतों की चोटियाँ पर …कौन बैठा है …? कौन है …वहा …और क्या कर रहा है -वह ? मैं न मानूंगा – तुम्हारी बात ! मैं स्वयं वहां जाऊंगा …हाथ लगा कर इन्हें देखूँगा ….महसूस करूंगा ….और फिर प्रश्न पूछूंगा …कि …तुम यहाँ खामोश क्यों बैठे हो ….जब कि …वहां …उधर -संसार में …प्रलय होने को है …?”

“जाओ ! देख आओ ….!!” गुरु जी प्रसन्न थे . “माना तो मैं भी न था , नरेन्द्र ! मैं भी वहां पहुँच कर ही लौटा था !”वह हँसे थे . “लेकिन ,बेटे ! वहां …जिस से भी भेंट हो – वही भगवान् है !” बड़े जोरों से हँसे थे ,गुरु जी .

मैं पहाड़ों की चढ़ाई चढने लगा था ! मेरी निगाहें उन …धवल-सजल ….और सजीले …पहाड़ों की चोटियाँ पर …चिपकीं थीं – जो अजूबे थे …? लेकिन मैं उन के साथ सम्पर्क-सूत्र जोड़ लेना -अहम मान बैठा था ! मैं न जाने क्यों मान बैठा था कि …वहां …मुझे शिव के दर्शन ..अवश्य ही होंगे …? मिलेंगे मुझे , शिव ! और तब मैं बालक ध्रुव की तरह …उन की गोद में बैठ कर …उन से ही पूछूंगा – संसार के सारे रहस्य …! पूछूँगा-अपने प्रश्नों के उत्तर …. ! और जब इस धरा पर फिर से पदार्पण करूंगा …तो मुझे सब आता होगा ….सब ज्ञात होगा ….और मैं ……..

अंतहीन यात्रा थी – वह ! दम तोड़ चढ़ाई थी . तीखी चट्टानें थीं . शीतल जल था …ठंडी हवा थी …लेकिन …वो जो शीत था – वो तो दुश्मन था …? और ….और अब मुझे लगा था कि ….मुझे एक आश्रय फिर चाहिए था ….?

और , मित्रो ! मुझे ये आश्रय भी मिला था …..????

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श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!