भोर का तारा – नरेन्द्र मोदी ! 

उपन्यास अंश .

महान पुरुषों के पूर्वापर की चर्चा !! 

गुजरात राज्य का मुख्य मंत्री बनते ही …न जाने कैसे मेरी आँखों के सामने मेरे दादा जी पाल पुरोहित का चेहरा भक्क्से उजागर हो गया था ! वो मुझे आशीर्वाद देने चले आये थे . अब मेरे पास बैठे-बैठे कह रहे थे …’सत्ता का दर्प …सांप की तरह डसता है , नरेन्द्र !’ ! और उन का कहा सब मुझे अचानक ही याद हो आया था . ‘राजा को राम होना चाहिए !’ 

राम राज्य के स्वप्न का शरीर सहलाते हुए मैं भिन्न प्रकार के एक आन्दोलन से जा भिड़ा था !

सत्ता के दर्प से भी ज्यादा विध्वंसकारी ….सत्ता का स्वांग था …..!! 

मक्खियों की तरह …सत्ता के शहद पर अनगिनत …नेता , अधिकारी , चर-चपरासी ….और चेले -चपाटे आ-आ कर चिपट गए थे ! अपने-पराए का भ्रम भूल मैं …अपनी चकित द्रष्टि से उन सब के …चालाक चेहरों को देख रहा था ! सब ने नकाब पहने थे . सब नकली थे . सब के इरादे थे ….पर गुप्त ! सब के उद्देश्य थे …पर उजागर कुछ नहीं था ! सब की लालसाएं ….कामनाएं ….आशाएं …प्रत्याशाएं ….आ-आ कर मुझ से टकरा रहीं थीं ! सब की आँखों में आग्रह थे !!

“लो,लो ! ये तो ले ही लो …..नरेन्द्र ?” मैं अनजान-सी आवाजें सुन रहा था . “अरे , भाई ! ये तो तुम्हारा हक़ है ! चीफ मिनिस्टर हो ….! इतना तो …..चलता है ….!!” 

तब रास्ते के उस छोर पर मुझे दादा जी खड़े मिले थे ! 

“भाई ! अब सरकारी चाल-चलन तो चलेगा ही …..?” मेरे सामने सुझाव थे . “पार्टियाँ …या कि ..गेट-टू -गेदर ….तो एक आवश्यकता है ….? ओहदों ….और औकातों के अनुसार …हर कोई खर्च तो करेगा ही ….! फोरिन ट्रिप्स …कोई आइयाशी नहीं है ! ये तो चलन है ! सांस्कृतिक आदान-प्रदान है ! हम जाएंगे ….तो वो भी आएँगे ….! तभी तो प्रगति होगी ….?” 

मैंने ‘प्रगति’ शब्द को कई पलों तक कस कर पकडे रखा था ! 

“सरकारी माल-खजाना …खर्चने के लिए ही बना है !” मेरे सामने सुझाव था . “बहती गंगा है , ये ! जल प्रवाहित होता रहे तो ….ही निर्मल बना रहता है ! धन आए ….धन जाए ….तो ही रास्ता तय करता है ! जनता में जान आ जाती है ! उन की मुट्ठियों में पैसा पहुंचता है तो ….खुशहाली स्वयं ही लहलहाने लगती है !!”  

बात तो ठीक थी . मैंने इस पर गौर किया था . जनता के बीच मैंने …तब कुछ ऐसे उपवन उगाने के सोच को जन्म दिया था …जो सर्वहिताय था ! 

सत्ता की इस झलक और झांकियों में ….तब मुझे धुआं भी उठता दिखाई दिया था ! कुछ लोग थे – जो बहुत अपने थे …पर थे बहुत बेगाने ….! उन के हुनर को देख कर मैं दंग रह गया था ! सरकारी माल-खजाने को खाने-पचाने में ये दक्ष थे, वो ! पर अपने चालाक चहरों पर मक्खी तक को न बैठने देते थे ! काम तो सब मेरी कलम से होना था ….पर उस पर नाम उन का लिख जाना था ! 

शेर और लोमड़ी का खेल आरंभ हो चुका था ! शेर तो जब शिकार करता था तो ….समूचा जंगल दहला जाता था ! लेकिन लोमड़ी सारा का सारा माल डकार कर निशान तक न छोडती थी …! और थे इस गेम के गीदड़ …जो शेर के किए शिकार का …मांस नोंच-नोंच कर खा जाते थे …..और फिर शोर मचाते थे ….चिल्लाते थे ….और कहते थे – इस ने …इस शेर ने मारा है , ये शिकार ! बिखरी पड़ी हैं -ये हड्डियाँ ! देख लो !! हमने नहीं , गुनाह तो इस ने किया है !! इसे मारो ….इसे जेल में डालो ….गुनाह इस ने किया है ….हमने नहीं !!!” 

फिर मैं और किसिम की आवाजें आती सुनाता – इसे पिंजड़े में बंद करो ! इसे रोको ! सब मिल कर दम लगाओ !! वरना ….ये अकेला शेर ही इस सारे जंगल को उजाड़ देगा ……?

और मेरी विडम्बना क्या थी ….? माने कि मेरी ….एक मुख्य मंत्री की विवशताएँ थीं ….! चपरासी से ले कर चीफ मिनिस्टर तक एक लम्बी चैन थी – प्रशाशन की चैन ….जिस में नेता थे …अधिकारी थे ….प्यादे और मुहरे ! ये मेरे काफिले के अभिन्न अंग थे ! इन के बिना तो मैं अधूरा ही था ! और इन के बिना तो शाशन प्रणाली को चला पाना असंभव ही था ! 

हाँ, मेरे कान तो मेरे ही थे ! अकेले तो थे …पर उन में आती आवाजें …अनेक थीं ….अलग-अलग थीं ….मारक और संहारक – दोनों ही थीं ! कर्ण प्रिय संवाद से ले कर …कर्कश और जानलेवा उल्हानों तक मुझे तो सब सुनना ही था ! ‘मुझे दो, मुझे दो …?’ का शोर ….अब मेरे कान फोड़ने लगा था ! 

अब आ कर राम-राज्य की परिभाषा मेरी समझ में आयी थी ! 

“जिसे न दोगे ….वही तुम्हारा जानी दुश्मन होगा …नरेन्द्र !” अब मेरा ही विवेक मुझे बता रहा था . “जैसे कि आई पी एस अधिकारी संजीव भट्ट ….!” उदहारण भी मेरे सामने थे . “संजीव भट्ट एक बईमान और भ्रष्ट आई पी एस ऑफिसर था . यह बात मेरे सामने उजागर हो चुकी थी . और भी कितने सच -झूठ थे जो अब पहेलियों की तरह मुझ से उत्तर मांग रहे थे ! भ्रष्ट और बईमान नेता , अधिकारी और समाजसेवी – सभी मुझ से खतरा खाने लगे थे . उन सब का कयास था कि मैं शायद उन्हें बहुत दिनों तक बर्दाश्त न कर पाऊंगा ? संजीव भट्ट पर वनस कोटा के एस पी रहने के दौरान नौकरी बहाल के नाम पर घपला और घोटाले के आरोप थे ! उस पर और भी कई भ्रष्टाचार और अपराध के मामले चल रहे थे ! उसे मुझ से डर था कि कहीं …..?

“ये धर्मराज ….किसी को नहीं छोड़ेंगे …….!” राजनैतिक और आधिकारिक दायरों में एक धारण फ़ैल चुकी थी . 

सच में मैं भी चाहता था कि …अपने चारों और अच्छी छवि के लोगों को ही बिठाऊँ !

लेकिन हुआ उल्टा ! मैं हैरान था कि …मिडिया ने अचानक ही संजीव भट्ट को एक निहायत ही होनहार …कर्मठ और योग्य आई पी एस ऑफिसर बता कर …मेरी चली गहरी चाल का शिकार हुआ ….बे-गुनाह व्यक्ति बताया ! बताया कि …’गोधरा काण्ड ‘ संजीव भट्ट के अनुसार नरेन्द्र मोदी की एक साजिश थी ….जिस में हिन्दूओं को छूट दी गई थी कि …वो उन के साथ हुए अन्याय का बदला चुकाएं !

अब क्या था ….? मेरे ऊपर दनादन अखबार ,टी वी , रेडियो और पत्र-पत्रिकाओं का कहर गिरने लगा ! मैं बेदम हो गया . मैं घबरा गया . संजीव भट्ट की सोची इस मुहिम को मैं कैसे काटता , मुझे पता ही न था !

मैं पढ़ा रहा था – बेचारे संजीव भट्ट बफादारी के बदले …गद्दारी के शिकार हुए ! संजीव भट्ट सच कहते हैं कि ‘गोधरा काण्ड’ एक नाटक है ….है कुछ नहीं ! संजीव भट्ट का बयान है कि वो ….स्वयं इस पूरी घटना के चश्मदीद  गवाह हैं और दावे के साथ कह सकते हैं कि …इस तमाम हुए नर-संहार का एक ही आदमी जिम्मेदार है – और वो है नरेन्द्र मोदी – गुजरात प्रांत का मुख्य मंत्री – स्वयं ….!! 

चूंकि मैं मुख्य मंत्री था अतः मेरे हाथ में कुछ ऐसे तंत्र-मंत्र थे ….कारगर काम करते थे ! मैंने कहा – पता लगाओ , असलियत क्या है ….? 

“पूरे प्रकरण का एक ही सूत्रधार है – कांग्रेस !” मुझे बताया गया था . “संजीव भट्ट को बहुत बड़ा लालच दिया गया था . उस की पत्नी स्वेता को अगले चुनावों में सीट मिल रही थी ! संजीव भट्ट  अब एक पूरे फ्रंट के चहेते थे – जिस में पूरा सेक्युलर फ्रंट, एन जी ओज ,मीडिया -गठ -जोड़ -सभी शामिल थे . बहुत सारा धन भी लगाया जा रहा था ! इनाम -इकरार भी तय हो चुके थे . मुद्दा सिर्फ एक है – मोदी ! और आदेश हैं – गेट हिम ….अट  एनी  कॉस्ट !! 

मेरी तो जान ही सूख गई थी ! 

“किस झंझट में आन फंसा ……?” मैंने झुंझला कर स्वयं से पूछा था . “सोचा था -राम राज्य …..और आ धमका कसाई राज्य ….? अब तुम्हें ये कसाई टुकड़ों में काट-काट कर खाएंगे, नरेन्द्र भाई !” एक चेतावनी मेरी आँखों के सामने खड़ी थी . 

“नरेन्द्र मोदी पर संजीव भट्ट के तीन मुख्य आरोप हैं !” अखबार और टी वी बता रहे थे . “संजीव भट्ट कहते हैं कि २७ फरवरी की उस रात को जब मुख्य मंत्री निवास पर पुलिस अधिकारिओं की बैठक हुई थी …तो वो उस में मौजूद थे ! उस बैठक में स्वयं नरेन्द्र मोदी ने …अधिकारियों को निर्देश दिया था कि …हिन्दूओं को छूट दी जाए ..ताकि वो  ……”

संजीव भट्ट का ये इल्जाम सरासर गलत था ….झूठ था ! लेकिन मेरी आवाज़ तो मेरे ही गले में अटकी थी ….! मैं क्या करता ….?

सच ये था कि मैं जब १०.३० बजे गोधरा से वापस लौटा था तो ….मेरी आत्मा आहात थी ….मैं तो मर ही चुका था ….! जो हुआ था ….वो …वो …बहुत बुरा हुआ था ! बहुर बुरा और न्रशंस द्रश्य था ! मैं इस आई बला के परिणामों को समझने लगा था . मैं महसूस रहा था कि …इस घटना की जो प्रतिक्रिया होगी ….वो भयंकर ही होगी !! 

और जो मैंने देखा था – वह भी तो भयंकर ही था ….बीभत्स था ….अमानुषिक था ….और था बेहद विरस ….खट्टा …..चूक खट्टा …!!

हिन्दू-मुस्लमान के नाम पर फिर से किसी ने साजिश रच कर ….विष-बीज बो दिए थे ! लाशों पर लाशें पट गईं थीं ! जले …अधजले …..मृतक ….बिलबिलाते बच्चे ….और निर्वसन महिलाओं की लाशें …..? उफ़ ……!!

मैं बेहद डरा हुआ था ! मुझे अनुमान था कि …अब कुछ और भी अघटनीय घटेगा ….! ज़रूर ही गाज गिरेगी ….आसमान फटेगा …..और शायद किसी …क्रूर किस्म के नर-संहार का सूत्रपात हो जाए ….!!

उसी रात मैंने डर की वजह से मुख्य मंत्री निवास पर पुलिस अधिकारियों की मीटिंग बुलाई थी ! 

लेकिन ये भी सच था कि श्री संजीव भट्ट आई पी एस उस बैठक में मौजूद ही न थे ! वो तो अपने रचे जाने वाले प्रपंच के तंत्र को आखिरी अंजाम दे रहे थे ! नोट बटोर रहे थे ….और अगले इनाम-इकरार तय कर रहे थे ! कारण -उन के द्वारा ….उन की शहादत के ज़रिये ….नरेन्द्र मोदी को घेरना आसान था ! अतः वह अब मुंह माँगा पा रहे थे !! 

संजीव भट्ट की उस रात की अनुपस्थिति के सबूत बाद में मिले थे !

तत्कालीन पुलिस महानिदेशक के . चतुर्वेदी ने साफ़ कहा था कि संजीव भट्ट उस बैठक में मौजूद नहीं थे ! उन्हें तो उस बैठक में शामिल कोने के लिए बुलाया ही नहीं गया था …?

लेकिन संजीव भट्ट ने इसी घटना को आगे बढ़ा कर कहा था –

२८ फरवरी २००२ की सुबह १० बजे की हुई बैठक में भी वह मुख्य मंत्री निवास पर था और ११ बजे वह मुख्यालय गया था ! मुख्य मंत्री ने दंगों पर काबू पाने के लिए सेना बुलाने के सुझाव को ठुकरा दिया था ! और जब गुलबर्गा सोसाईटी में दंगाईयों ने कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी पर हमला किया था – तो मैंने सीधे इस की सूचना मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी को दी थी ! और मुख्य मंत्री ने मुझ से कहा था – तथ्यों की रिपोर्ट बना कर भेजें !

लेकिन यह भी बाद में साबित हो गया था कि संजीव भट्ट मुख्य मंत्री निवास पर नहीं ….अहमदाबाद में अपने गठबंधन के साथ थे !! 

और फिर संजीव भट्ट थे भी इतने छोटे कि उन का सीधा मुख्य मंत्री से संपर्क होना एक अनोखी घटना ही थी ….?

लेकिन संगठन का उद्देश्य तो मुझे घेरना था ? अतः संजीव भट्ट से कहलवाया गया – गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में मारे गए …कार सेवकों के पार्थिव शरीरों को अहमदाबाद लाने ….और उन की शव-यात्रा निकालने के आदेश स्वयं मुख्य मंत्री ने ही दिए थे ! सारे अधिकारिओं के मना  करने के बावजूद भी  …मुख्य मंत्री ने एक न मानी ….और परिणाम स्वरुप …..हिन्दू-मुसलामानों के बीच ……”

श्री संजीव भट्ट का वरिष्टता क्रम और उन की जॉब प्रोफाइल …उन के मुख्य मंत्री की बैठक में शामिल होने को …. सर से ही झूठ साबित करता है !

मैं स्वयं चकित था ….भ्रमित था ….और बेदम था ! जो द्रश्य गोधरा में घटा था …..वह कोई साधारण हिन्दू-मुसलमान का दंगा न था ! यह तो एक अंतर्राष्ट्रीय साजिश का सूत्रपात जैसा था ! कोई था – जो मेरी जान का ग्राहक था ……मेरे खून का प्यासा था !! 

वह मेरे जीवन का अंत ला देने के लिए अब आमादा था !!!

………….

श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!