दर्शनाजी की पहले वाली दस-लाख की प्रोपर्टी बिक्कर पैसा तो सारा ठिकाने लग गया था। इस पैसे के पीछे कोइ दिन जाता होगा.. अदालत तो रोज़ ही चलती थी। जो रमेश के हाथ में बचा था.. वो तो रमेश फ़टाफ़ट निपटा ही रहा था।
“ ओ पैसे!.. कित गए!”।
दर्शनाजी ने रमेश से सवाल किया था।
“ तेरे ताईं दे दिये.. और तेरे रिश्तेदार मेरे धोरे माँग की खा गए!”।
रमेश ने अपनी माँ को सफ़ाई देते हुए बताया था, कि.. दस-लाख में से उनके बैंक में डलवा दिये.. और काफ़ी उनके ही रिश्तेदारों में बंट गए। कहने का मतलब यह था.. पैसा ठिकाने लग गया। अभी दर्शनाजी की ज़मीन का मामला यहीँ खत्म नहीं हुआ था.. अभी तो उनके पिता की ज़मीन कई जगह और बिकनी बाकी थी। रमेश ने एक बार फ़िर से शिवजी नाम के पटवारी से माँ से पूछे बग़ैर ही बयाना ले लिया था। “ यह पटवारी आपको ऐसे-कैसे अम्माजी से पूछे बग़ैर एडवांस दे देता है”। सुनीता ने रमेश से पूछा था।
“ मुझे पता है.. क्या करना है!.. ये औरत तो बेवकूफ़ है.. इसको गियर में लेना मुझे अच्छी तरह से आता है.. इसकी सारी ज़मीन मैं ही लूँगा!
रमेश ने सुनीता को दर्शनाजी की एक तरह से पूरी ज़मीन हड़पने का प्लान बताया था.. पर सुनीता रमेश की बात सुनकर थोड़ी हैरान थी.. और उसको रमेश की बातें अच्छी भी नहीं लग रहीं थीं। “ अगर ये अपनी माँ की पूरी ज़मीन खा लेगा.. तो आगे चलकर इस घर के लीगल हिस्सेदारी में से अपना नाम उड़वा देगा। इसकी माँ शातिर दिमाग़ औरत है.. जानती है.. उड़ा खाएगा.. और जो कमी रह जाएगी.. वो तो सासू-माँ खुद ही पूरा करने में एक्सपर्ट हैं। ये औरत जान-बूझ कर इसके हाथ खून से रंगकर फ़िर इसको लात मारेगी”।
सुनीता दर्शनाजी और रमेश को लेकर मन ही मन सोच रही थी। वैसे अंदाज़ा तो सही लगा रही थी.. सुनीता!.. और सोचने वाली बात तो यह थी.. कि जब दर्शनाजी भली-भाँति जानती थीं.. कि रमेश पैसों का सही इस्तेमाल नहीं करेगा, तो फ़िर हर बार ज़मीन बेचने के लिये रमेश का ही चयन क्यों किया.. विनीत और रामलालजी भी तो थे। इसी को तो कहते हैं.. मास्टर-माइंड। वाकई! थी.. तो बन्दी मास्टर माइंड ही.. दिमाग़ के मामले में तो अच्छे-अच्छे को पीछे छोड़ रही थी।
अब खैर! जो भी ही!.. दो बच्चे साथ में थे.. परिवार नाटकबाज था.. रामलालजी के हाथ से फैक्ट्री वालों के हिसाब के पैसे छूटते नहीं थे.. सारा तमाशा मध्य-नज़र रखते हुए.. पैसे तो आ ही रहे थे.. और शाही ठाठ चल रहे थे। इस शाही ठाठ को लेकर एक बार मुकेशजी ने सुनीता से कहा भी था,” जैसा पैसा घर मे आता है.. वैसी ही मानसिकता भी लाता है!”।
बात तो पिताजी सही कह रहे थे.. पर सुनीता के आगे माँ-बापू की पगड़ी और रमेश के संग घर बसाने का वादा भी था। अब ज़्यादा सोचने का फ़ायदा कोई न था.. अब जैसा भी था.. रमेश वाला रास्ता ही सही था। फ़िर भी सुनीता ने एक दिन बातों-बातों में रमेश से पूछ ही लिया था,” अम्माजी ने इतनी बड़ी रकम आपके बैंक में ट्रांसफ़र कर कैसे दी!”।
“ अरे! मैने इसे बेवकूफ़ बनाया था.. इसने तो कहा था.. मेरे बैंक में ट्रांसफर कर दे.. मैंने ही बोल दिया था.. चार हज़ार रुपये का ड्राफ्ट बनेगा.. चार हज़ार सुनते ही.. इसके होश उड़ गए.. और इसने मेरे बैंक में ट्रान्सफर करवा दिये”।
रमेश ने सुनीता को बताया था।
“ लगती तो नहीं है.. ये बेवकूफ़!.. पर चलो!.. बन गई होगी!”। सुनीता ने दर्शनाजी के लिये मन ही मन सोचा था।
दूसरी बार की ज़मीन भी रमेश ने आठ-लाख में बेची थी.. और उस बार दर्शनाजी को शायद कुछ भी नहीं दिया था। पर हाँ! अपनी माँ के मायके में रमेश ने नोटों के लड्डू खूब बाँटे थे। पूरे आठ-लाख रुपये आये थे.. रमेश के बैंक में। नोटों का बैंक भरा देख रमेश फूला ही नहीं समाता था। आठ-लाख रुपये एकदम आदमी के बैंक में भर जाएँ तो पैर तो ज़मीन से ऊपर हो ही जाते हैं। दिल्ली में हर बार कितने की ज़मीन बिक रही है.. इस बात की सबको खबर होती थी.. रमेश मुकेशजी और परिवार में ख़ुद ही सारी जानकारी देकर आता था।
इधर सुनीलजी ने वज़न कम करने का नया बिसनेस शुरू किया था.. जिसमें उन्होंने रमेश को भी शामिल होने के लिये आमंत्रित किया था.. हालाँकि सुनीता जानती थी.. कि यह निर्णय ग़लत है.. और रमेश काम करने वालों में से नहीं है.. वो सिर्फ शो-शा करेगा.. और अपना पैसा देखायेगा.. पर यह अंदर की बात थी.. और सुनीता किसी से कह न पाई थी.. रमेश ने सुनील जी के साथ काम शुरू किया था।
हर इतवार रमेश दिल्ली meetings अटेंड करने आने लगा था। इंदौर में भी पता था.. कि रमेश दिल्ली में अपने साले के साथ काम कर रहा है.. पर किसी ने भी कोई ऑब्जेक्शन नहीं उठाया था.. सोचने वाली बात तो यह थी.. कि घर में फैक्ट्री खड़ी है.. और यह कोई अनजान ही काम शुरू कर रहा है.. बाप-भाई कुछ बोल ही नहीं रहे!.. दाल में रमेश को लेकर कुछ काला था.. सुनीता की सोच सही जा रही थी.. रमेश आगे चलकर किसी फैक्ट्री का हिस्सेदार साबित नहीं होता.. जिसमें रमेश के परिवार का ही हाथ था।
खैर! जो भी हो.. काम के सिलसिले में रमेश का हैदराबाद जाना तय हो गया था.. जिसका ढिंढ़ोरा रमेश ने पूरे घर में पीट दिया था। हैदराबाद जाने से पहले एक शाम दर्शनाजी ने घर में जमकर गाली- गलौच और झगड़ा करवाया था।
अगले दिन रात को किसी जानकार ने फोन किया था,” रमेश को रोड पर कोई हौंडा-सीटी वाला मार गया है.. शायद पैर टूट गया है.. एम्बुलेंस बुलाई है.. जल्दी आ जाओ!”।
विनीत और रामलालजी समय पर घटना स्थल पर पहुँचकर रमेश को अस्पताल ले गए थे।
“ मुझे दो लाख रुपयों की ज़रूरत है!”।