सिकंदर लोधी की सल्तनत के वारिसों में ग्रह युद्ध छिड़ गया था!

जैसे सभी बहलोल लोधी और सिकंदर लोधी के भाई भतीजे उसकी मौत का इंतजार कर रहे थे और अब गीदड़ों और गिद्धों की तरह सल्तनत की कमाई पर अपने हक जमाने के लिए पूरी शिद्दत के साथ टूट पड़ थे! सब को पता था कि यही मुबारक मौका था – जब इब्राहिम को सब कुछ गड़प कर जाने से रोका जा सकता था और हर किसी को उसका हक हकूक मिल सकता था! उन सब ने मिल कर इब्राहिम लोधी के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया था। सब उससे असहमत थे और उसके खिलाफ थे!

इब्राहिम लोधी को एक चालाक, लड़ाका और जिद्दी सुलतान होने के आरोपों से मढ़ दिया था और सब ने एक स्वर में उसका विरोध किया था। जलाल के पक्ष में ज्यादातर लोग थे। जलाल को सब एक सज्जन शासक मानते थे। यहां तक कि इब्राहिम के बेटे इस्लाम शाह को भी लोग सराहते थे। लेकिन इब्राहिम लोधी ..

“एक बार ग्वालियर इब्राहिम के हाथ चढ़ गया तो यह हाथ किसी के नहीं आएगा!” उन सभी का एक मत था।

“ग्वालियर तो अब गुड़ का पूआ है! सिकंदर लोधी ने पंद्रह साल तक ग्वालियर को लगातार घेरा है। अब तो आया धरा है झोली में और ग्वालियर हाथ आने के बाद तो ..?”

सबकी लालची निगाहें ग्वालियर की लूट पर लगी थीं!

लेकिन आगरा में आ बैठा इब्राहिम लोधी अब अकेला न था!

दीपाल पुर में उनके चचेरे भाई आजम हुसैन शेरवानी अपने तीस हजार घोड़ों के रिसाले और तीन सौ लड़ाकू हाथियों के जत्थे के साथ आगरा आ पहुंचे थे। उनको सभी चचेरे, फुफेरे और ममेरे भाइयों का आदेश था कि ग्वालियर की जंग वो लड़ेंगे और जीतने पर सारा धन माल, सेना सपीना सब उन सब का होगा – अकेले इब्राहिम का नहीं!

लाहौर से लेकर बिहार बंगाल तक सारे अफगान, अमीर और उलेमा अब सब एक थे और इब्राहिम के खिलाफ थे! जलाल ने कालपी और जौनपुर संभाल लिया था और अब ग्वालियर पर ..

चिंता मग्न आगरा में अकेले बैठे इब्राहिम लोधी को अपनी ग्रह युद्ध के ये लक्षण उसकी नइया डुबोते दिखाई दे रहे थे!

तभी हेमू ग्वालियर से लौटा था!

डूबते को तिनके का सहारा हेमू – जैसे ही उसके सामने आया था – इब्राहिम लोधी की ऑंखों में चमक लौट आई थी। एक साक्षात मूर्त हुई आशा के दर्शन किये हों उसने – ऐसा लगा था। लगा था – जैसे अभी अभी हेमू ने आकर उसे जीवन दान जैसा कुछ दे दिया है!

“क्या समाचार हैं?” इब्राहिम ने बुझे मन से पूछा था।

“खैरियत है!” हेमू ने संयत स्वर में कहा था। “आगे के क्या आदेश हैं?” उसने पूछा था।

इब्राहिम लम्बे लमहों तक चुपचाप बैठा हेमू को दखता रहा था। उसकी समझ में न आ रहा था कि अपने दिमाग में दौड़ते ग्रह युद्ध के घोड़ों को कैसे रोके और कैसे ग्वालियर को फतह कर सल्तनत में मिला ले?

“तीस हजार का रिसाला और तीन सौ लड़ाकू हाथियों का जत्था लेकर आजम हुसैन शेरवानी दीपालपुर से आगरा पहुंच गए हैं!” इब्राहिम लोधी ने धीमे स्वर में हेमू को सूचना दी थी। “जंग भी शेरवानी साहब – सुलतान लड़ेंगे! अफगानों की जमात लाहौर से लेकर बिहार बंगाल तक एक है, लाम बद्ध है और मेरे खिलाफ है!” इब्राहीम लोधी ने सत्य को उगल दिया था। “अब हम लड़ें .. या न लड़ें .. या फिर ..” इब्राहिम फिर से चुप हो गया था।

हेमू बेखबर न था! उसे चलते ग्रह युद्ध की पूरी सूचना थी ओर ये भी सूचना थी कि ये अफगानों का विद्रोही दस्ता हेमू के भी खिलाफ था, हिन्दुओं के खिलाफ था और किसी भी हिन्दू को आगे बढ़ता नहीं देख सकता था! लेकिन वह ये भी जानता था कि इब्राहिम लोधी अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए हेमू को किसी भी कीमत पर छोड़ेगा नहीं!

हेमू का अंदर बाहर एक बारगी उत्साहित हो उठा था!

“आपको क्या चाहिये ..?” हेमू ने चुप्पी तोड़ी थी। निराशा में डूबे इब्राहिम लोधी के चेहरे को देखकर हेमू को तरस आ गया था।

“ग्वालियर!” इब्राहिम लोधी ने धीमे धीमे उगला था। उस आवाज में आत्म विश्वास न था। लेकिन चाहत तो थी – नंगी चाहत जिसे हर कीमत पर ग्वालियर चाहिये था – सल्तनत में शामिल!

“मिलेगा!” हेमू ने हंस कर बड़े ही सहज भाव से उत्तर दिया था।

इब्राहिम अबकी बार चौंक पड़ा था। उसे लगा था जैसे हेमू ने मजाक मारा हो। उसे विश्वास ही न हुआ था कि हेमू ये कह क्या रहा था? आजम हुसैन शेरवानी के सर पर आ बैठने के बाद उम्मीद ही कहां थी जो ..

“कैसे ..?” इब्राहिम लोधी ने प्रश्न पूछ ही लिया था।

हेमू अब इब्राहिम लोधी के बिलकुल निकट आ बैठा था। उसने अपने इरादों को एक तरतीब में खड़ा कर दिया था और अब वह बड़ी ही दानिशमंदी के साथ इब्राहिम लोधी को वह बताना चाहता था जो अमूल्य था, अभेद्य था और अजेय था!

“आपके इन चचेरे फुफेरे भाइयों को जो जंच रहा है वह वैसा नहीं है!” हेमू ने बताना शुरु किया था। “ग्वालियर गुड़ का पूआ नहीं है!” उसने स्पष्ट कहा था। “पंद्रह साल से जो सिकंदर लोधी सुलतान झक मार रहे थे – उसका कारण था। और वो कारण आज भी बरकरार है!” इस बार हेमू की आवाज उभरी थी। “पुष्ट प्रमाण हैं मेरे पास इस रहस्य के!”

“क्या ..?” ध्यान देकर सुनते इब्राहिम लोधी ने पूछ लिया था।

“बादल गढ़!” एक गाज जैसी गिरा दी थी हेमू ने। “बादल गढ़ का किला – जिसकी संरचना महाराजा मान सिंह ने की थी – आज भी अजेय है!” हेमू ने इब्राहीम लोधी को आंखों में घूरा था। “और अब किले की हिमायत में तैनात गुरिल्ला एक ऐसा प्रश्न हैं जिसका उत्तर बिना खोजे हम कहीं नहीं पहुंच सकते!”

“ये कौन सी नई मुसीबत है भाई!” इब्राहिम ने बिलबिला कर पूछा था।

“नई नहीं – बहुत पुरानी है!” हंस गया था हेमू। “और कभी से इंतजार में हैं कि हमारी फौजें हमला करें तो वो उन्हें फाड़ फाड़ कर खाएं!”

“लेकिन .. हेमू?”

“ये सत्य है सुलतान! जो गुड़ का पूआ हमें ग्वालियर दिखाई दे रहा है – वह है नहीं!” हेमू बता रहा था। “तभी तो विक्रम जीत बिल्ली की तरह घात लगाए चुपचाप बैठा है!”

“फिर तुम कैसे कहते हो कि तुम मुझे ग्वालियर ..?”

“आप आदेश दें – मैं ग्वालियर आपको ला दूंगा!” हेमू फिर से हंस गया था।

“पर कैसे मेरे भाई ..?” चिल्ला सा पड़ा था इब्राहिम। उसकी समझ में ही कुछ न आ रहा था।

“ये जो आपके मेहमान आये हैं – तीस हजार रिसाला ओर तीन सौ हाथी लेकर – इन्हें पहले युद्ध लड़ाते हैं ओर इन्हें तौमरों के गुरिल्लाओं के सामने आने देते हैं!” शरारत थी हेमू की ऑंखों में। “चार पांच घंटे जो भी ये टिकेंगे उसी दौरान हम बादल गढ़ के भीतर घुस जाएंगे। कादिर के पास पूरा मुहिम है। और जब आपके मेहमान हार कर भागेंगे तब हमारा आक्रमण होगा! हम बादल गढ़ को अंदर बाहर से अपने कब्जे में ले लेंगे और फिर ..”

“और फिर ..?”

“आप अगले दिन ग्वालियर में दरबार लेंगे और ..”

“लेकिन हेमू ..?”

“यकीन कीजिए आप, सुलतान!” हेमू की आवाज में दर्प था।

“तुम्हें क्या चाहिये?” इब्राहिम लोधी ने अहम प्रश्न पूछ लिया था।

हेमू ने इब्राहिम लोधी के चालाक चेहरे को पढ़ा था। वह जानता था कि सुलतान इब्राहिम लोधी कोई कच्ची गोलियां खेलने वाला इंसान न था!

“उन लोगों को प्राण दान दे दें – जो आगे भी आपके काम आएंगे, आपके वफादार सिद्ध होंगे और सल्तनत का हिस्सा बन जाएंगे!”

“और कुछ ..?”

“मुझे छुट्टी चाहिये!” हंसा था हेमू।

“क्यों ..?” इब्राहिम लोधी अब प्रसन्न था।

“गौना करने जाना है सुलतान!” शर्माते हुए हेमू ने कह ही दिया था।

“बहुत खूब – बहुत खूब! जाइये लाइये गौनावली को! हम स्वागत करेंगे!”

दोनों हंसे थे और हंसते ही रहे थे!

मेजर कृपाल वर्मा 1

मेजर कृपाल वर्मा

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