उठी अंगड़ाई के साथ साथ ही सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के अधूरे अरमान भी उठ खड़े हुए थे।
“इस बार नहीं!” वह स्वयं से कह रहे थे। “इस बार तो काबुल तक खदेड़ना है और समूल नष्ट कर देना है इन निशाचरों को।” वह तनिक मुसकुराए थे। “अच्छा होता अगर केसर होती और ..” एक अफसोस अचानक उनके पास आ बैठा था।
केसर ही क्यों उनका तो अपना कोई भी उनके पास न था। जैसे पूरा भारतवर्ष ही हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की खुशियां मना रहा था, नाच रहा था और गा रहा था।
“राजा साहब!” सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य ने राजा टोडरमल को संबोधित किया था। “इस बार पानीपत से हम लौटेंगे नहीं!” उनका ऐलान था। “हमें काबुल तक पहुंचना होगा और उसके लिए आप के बंदोबस्त मुकम्मल होने चाहिए।”
“कोई भी मजबूरी आपके सामने नहीं आएगी सम्राट!” राजा टोडरमल ने उन्हें आश्वस्त किया था। “आपके साम्राज्य में सब कुछ संपूर्ण है।” वह हंस गये थे।
“पानीपत के संग्राम के लिए हम शादी खान – आपको सेनापति नियुक्त करते हैं।” सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य हुक्म दे रहे थे। “आप काली बेग हाथी पर सवार होकर हमारी पूरी संगठित सेना का मार्ग दर्शन करेंगे।” सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य ने सभी उपस्थित सेनापतियों को उल्लसित निगाहों से देखा था। “हमलावर टुकड़ियों को अर्धचंद्राकार की शक्ल में दुश्मन के सामने लाएंगे और फिर पूर्ण चंद्राकार होकर चारों ओर से घेर लेंगे। हर टुकड़ी का सेनापति अब चंद्रमा की नाभि की ओर आगे बढ़ेगा और ..” हंस गये थे सम्राट।
सभी सेनापति मान रहे थे कि सम्राट ने इस बार अत्यंत आधुनिक लड़ाई का तरीका ईजाद किया है।
“हसन खान फौजदार आप नसीब जंग हाथी पर सवार होकर अपनी टुकड़ी को बाईं ओर रख कर जंग लड़ेंगे तो फैजल खान आप गजभंवर हाथी पर सवार बाई ओर से जंग लड़ेंगे। इक्खतियार खान आप गौरव हाथी पर सवार दुश्मन का सामने से मुकाबला करेंगे तो शगर खान आप फैज महर हाथी पर सवार इनके ठीक पीछे होंगे। मैं हवाई पर सवार हूँगा और आपके ठीक पीछे रहूंगा!” सम्राट ने अपने सभी रणबांकुरे और अनुभवी सेनापतियों को प्रशंसक निगाहों से देखा था। “आप – भगवान दास मेरे साथ होंगे और भंवर पर सवार होंगे।” तनिक ठहर कर बोले थे सम्राट। “दुश्मन को समूल नष्ट करना है इस बार।” उन्होंने अपना इरादा बताया था। “हसन खान आप ने अकबर को तलाश कर बंदी बना लेना है और ..”
“कत्ल कर देते हैं सम्राट!” हसन खान हंसे थे। “न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।”
सभी लोग एक साथ हंस पड़े थे।
“और आप संग्राम खान हैदर खान की खबर ले लें!” सम्राट का आखिरी आदेश था।
लेकिन युद्ध के मैदान से आठ मील की दूरी पर खड़े बादशाह अकबर और सेनापति बैरम खान हुई हार की खबर पाते ही काबुल की ओर रवाना हो जाने की पूरी तैयारियां कर चुके थे। वह सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य को जानते थे। इस बार जान सलामती के लिए काबुल भाग जाना ही उनके लिए श्रेष्ठ था।
“हो भी सकता है कि .. ये युवक कामयाब हो जाए?” मन ही मन अल्लाह मीयां को याद करते हुए सेनापति बैरम खान सोचे जा रहे थे। “अल्लाह! एक मौका मुझे भी तो दो।” बैरम खान ने आज अल्लाह की इबादत की थी। साथ खड़े चौदह बरस के अकबर को उसने हसरत भरी निगाहों से देखा था। “एक बार .. बस इस बार और ..” विनती की थी – बैरम खां ने।
पूरे पानीपत संग्राम की बागडोर संभाले कादिर खान का दिमाग बड़ी तेजी से काम कर रहा था। वह अब जैसे दिल्ली का बादशाह था और केसर उसकी .. चहेती केसर हंस हंस कर उसके गले में अपनी सुकोमल बाँहों का हार डाल रही थी और ..
“एक साथ, एक जान और एकजुट होकर हमने हमला करना है।” कादिर आदेश दे रहा था। “मरना जीना तो अल्लाह मियां के हाथ होता है।” वह बता रहा था। “इंशा अल्लाह! जीत तो हमारी ही होगी!” उसने कहा था। “शाह कुली खान तुम हेमू के हाथी के आस पास पहुंच जाना और मेरे इशारे का इंतजार करना!” वह बता रहा था। “मेरा इशारा पाते ही हेमू के हाथी को कब्जे में ले लेना और फिर ..” उसने पूर्व निर्धारित रण नीति को दोहरा दिया था।
लेकिन कादिर खान पर किसी को रत्ती भर भी भरोसा नहीं था।
उसने अपने आप को पूरी सेना से पृथक रख लिया था। उसका हाथी और उसके घुड़सवार उसी के थे ओर अलग एक पेड़ों के झुरमुट में छिपे थे। कादिर को पूरा विश्वास था कि वह हेमू का वध करने में कामयाब हो जाएगा और फिर सीधा दिल्ली की ओर कूच करेगा और अपना इनाम पा लेगा।
पानीपत के मैदान में सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य का ये दूसरा अवसर था जब उन्होंने एक अजेय सेना को लेकर आक्रमण किया था।
सम्राट की सेना पूर्ण प्रशिक्षित थी। जांबाज हाथियों को दुश्मन की सेना को परास्त करने के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया था। हाथियों की सूंड़ों से बंधे भाले बरछे और कटार कृपाण सेना के संहार के लिए एक नई खोज थी। हाथियों पर बैठे धनुर्धर और घोड़ों पर सवार रिसाले के जुझारू सैनिक चारों ओर से घेरा डालकर आगे बढ़ रहे थे। और सम्राट का ये नया प्रयोग सफल होने को था।
अब तक के इतिहास में इस तरह का आक्रमण पहली बार ही हुआ था। चहुं ओर काली घटाओ की तरह उमड़ आई सम्राट की सेना ने हाहाकार मचा दिया था। अकबर की सेना के पैर उखड़ने लगे थे। हताहत हुए सैनिकों की लाशों को पैरों तले रोंदते सम्राट के हाथियों ने कमाल कर दिखाए थे। तीरों की मार के नीचे आए मुगल सैनिक मुफ्त में जान गंवा रहे थे।
और .. और तभी न जाने कैसे बाबर की रूह जिंदा होकर मुगल सैनिकों के होंसले बुलंद करने लगी थी। मरने या जीने की बात उनके लिए महत्व की थी और वो जानते थे कि हार के बाद तो हिन्दुस्तान गया था मुगलों के हाथ से।
दोनों सेनाएं जान हथेली पर रख लड़ रही थीं।
“उधर .. उधर! बिलकुल सम्राट के पीछे!” मौका मुफीद जानकर कादिर अपने गुप्तवास से बाहर आया था। उसने देख लिया था कि हेमू का हाथी पीछे था और उसके पीछे एक और हाथी सुरक्षा में तैनात था। “रोको रोको!” कादिर ने उचित दूरी पर अपना हाथी रोक दिया था। वह अब अपने अभीष्ट के पास आ खड़ा हुआ था।
“पहला शिकार!” कादिर ने दांत पीस कर पहला तीर भगवान दास पर दागा था। तीर लगते ही भगवान दास तिलमिलाया था और पीलवान ने हाथी को हटाया था। तभी सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य ने पलटकर भगवान दास को तड़पते देखा था। “दूसरा शिकार!” कहकर कादिर ने मौका पाते ही सम्राट पर तीर दाग दिया था। तीर निशाने पर बैठा था – कादिर जान गया था।
“कादिर ..!” उठी पीड़ा ने सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य को दहला दिया था। वह जान गये थे कि लगा तीर कादिर का छोड़ा मृत्यु संदेश था। एक कादिर ही तो था जो ये कृत्य कर सकता था। और .. और कादिर ही था इस सारे षड्यंत्र के पीछे जो .. जो “कायर निकले तुम कादिर!” सम्राट कह रहे थे। “अगर सामने आ जाते तो मुझे मलाल न रहता।” होश संभालते हुए वह बोले थे।
फिर उन्हें क्रोध चढ़ आया था इसलिए कि क्यों .. क्यों नहीं कत्ल किया कादिर को? वो .. वो कैसा वचन दे बैठे थे बुआ को जिसने आज उनकी जान ले ली!
दोनों हाथों में पूरी सामर्थ्य संचित कर सम्राट ने लगे तीर को जो उनके सर के आर पार हो गया था बाहर खींच कर निकाल दिया था। लेकिन तभी ..
कादिर अपने हाथी से नीचे कूदा था और घोड़े पर सवार हो अपने घुड़सवारों की टुकड़ी को लेकर दिल्ली की ओर भाग लिया था।
अचानक ही युद्ध के मैदान में ढोल-ढमाके बज उठे थे। एक शोर उठ बैठा था। कहा जा रहा था कि सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य मारे गए!
शाह कुली खान ने इशारा पाते ही सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के हाथी हवाई को चारों ओर से घेर लिया था। भगवान दास मर चुके थे और महावत के सर पर नंगी तलवार ताने खड़ा मुगल सैनिक उसे शाह कुली खाल के आदेश मानने के लिए बाध्य कर रहा था।
“वही हुआ – जो इब्राहिम लोधी के साथ हुआ था।” सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य टीस आए थे। “बाबर अभी मरा नहीं है!” सम्राट ने अपना मत कहा था। “उसकी रूह यहीं पानीपत में रह रही है। वह नहीं मरेगा जब तक कि ..!” एक अफसोस सम्राट के दिमाग पर तारी होने लगा था। “हे ईश्वर! उन्होंने वेदना के बीच से परमात्मा को याद किया था। “ये क्या कर दिखाया?” उनका प्रश्न था। “मैं तो .. मैं तो ..” उनकी जबान लड़खड़ाने लगी थी। मुंह सूख गया था। मर्मांतक पीड़ा ने उन्हें बेहोश कर दिया था।
दिल्ली की ओर घोड़े को सरपट दौड़ाता कादिर अतिरिक्त रूप से आह्लादित था। आज उसे अपनी अभिलाषा पूरी हो गई लगी थी। ठीक किया मैंने – अब्बा का कत्ल कर दिया – हंस रहा था कादिर। ठीक किया मैंने – अशरफ बेगम को भी भगा दिया। और .. और अब मेरे और केसर के बीच ही रहेगा दिल्ली का साम्राज्य!
“केसर ..!” जोरों से पुकारा था कादिर ने। “मेरी मलिका केसर .. मैं आ रहा हूँ!” वह पागलों की तरह चिल्ला रहा था। घोड़ा पूरी सामर्थ्य लगा कर दौड़ रहा था लेकिन कादिर फिर भी उसे पीटे जा रहा था। “मैं आ गया केसर!” कादिर हंसा था। “हेमू तो मर गया!” उसने ऐलान किया था। “अब मैं हूँ दिल्ली का बादशाह और तुम हो मेरी मलिका आलिया – अब मैं हुआ हिन्दुस्तान का सम्राट कादिर खान!”