महान पुरुषों के पूर्वापर की चर्चा !

भोर का तारा -नरेन्द्र मोदी .

उपन्यास अंश:-

“लोमड़ी बहुत परेशान है,भाई जी !” अमित कह रहा था . हम भविष्य के लिए मुहीम बनाने बैठे थे . मैंने दिल्ली जाने की तैयारियां आरम्भ कर दीं थीं .

“क्यों …?” मैंने भी यों ही के अंदाज़ में अमित से पूछा था . “शायद शेर से ….? उस की दहाड़ सुन कर ….???”

“नहीं,भाई जी !” अमित हंसा था . “वह एक मच्छर से तंग आ गई है !” अमित ने नया सगूफा छोड़ा था .

“मच्छर से …? एक मच्छर से ….लोमड़ी ….?”

“हाँ,हाँ ! मच्छर उसे हर बार काट लेता है ! उस के कान पर आ कर शोर मचाता है ! डंका बजाता है ….युद्ध के लिए ललकारता है ! और जब वो मारने दौड़ती है …तो भाग जाता है ?” अमित जैसे कोई कहानी कह रहा था . मुझे भी रंग लेने की सूझी थी .

“कहाँ भाग जाता है …?” मैंने प्रश्न किया था .

“गुजरात !” अमित ने हाथ फैला कर कहा था . “गुजरात भाग जाता है ….हर बार जीत जाता है …..और हर बार …..”हंस रहा था ,अमित .

मेरी भी हंसी छूट गई थी . हम दोनों खूब हँसे थे ! बात अमित की भी सही थी . अब की बार हमारा चौथा वार था -और हम २००२ से ही गुजरात में शाशन चला रहे थे ! ‘गोधरा’ काण्ड को हमने शिव की तरह …गरल मान कर पी लिया था ….और पचा भी लिया था ! हिन्दू-मुसलमान का समीकरण भी हमने बिठा लिया था ! हमने लोगों के साथ सीधे सम्बन्ध बना लिए थे ! हमने ‘विकास’ की बांह पकड़ी थी और हम एक लम्बे रास्ते पर चल पड़े थे !

हमें महत्वपूर्ण सफलताएं मिलीं थीं ! हमें जनता का प्यार और दुलार मिला था ! हमें …सहयोग …और हर सहारा मिला था ! गुजरात सच्चे माईनों में हमारा घर था ….हमारा गढ़ था ….और अगले संग्राम के लिए …हमारा बेस था !! गुजरात का ये २०१२ का चुनाव …हमारे लिए ‘डू ओर डाई ‘ का पैगाम था ! ये हमारा …’मरना …जीना’ था …और हमें ये चुनाव हर कीमत पर जीत लेना था …!!

“शक्ति पर जूते वरसे हैं,भाई जी !” अमित ने एक और भी सूचना दी थी .

“क्यों ….?”

“उसे कहा गया है कि …जो भी वो करे ….पर चुनाव में मोदी हारना ही चाहिए ? और दिल्ली …माने कि सेंटर ..शक्ति सिंह गुहेल को …मूं-माँगा – देने पर तुला है ! हर कीमत चुकाने के लिए तैयार है , दिल्ली की सरकार ? उन्हें मोदी की हार चाहिए …..! उन्हें …मोदी …..

“लेकिन क्यों ….?” मैंने ये प्रश्न जान -बूझ कर पूछा था .

“इसलिए कि …उन्हें डर है …कि ..मोदी …..?” अमित ने मुझे घूरा था .

“मोदी – क्या ….?”

“मोदी ….दिल्ली आ रहा है …..!!” वह फिर हंसा था . “हौसले पस्त हुए लग रहे हैं – दिल्ली के …मात्र मोदी के नाम से …? ‘मोदी’ के स्वप्न आने लगे हैं – लोगों को ! और ……”

“लेकिन,आमिर …..?”

“पता नहीं,भाई जी …? ये खबर हवा पर उड़ने क्यों लगी है ….कोई नहीं जानता ! हमने तो अभी तक किसी से जिक्र तक नहीं किया ….?” वह हंस रहा था .

मैंने भी अभी तक अपनी जुबान पर दिल्ली को बैठने नहीं दिया था ! जो था – सब दिमाग में ही था …!!

“और अपनों को क्या-क्या पता है ….?” मैंने अपनी पार्टी की खबर भी पूछी थी .

“सब को ….सब पता है , भाई जी !” अमित ने स्पष्ट कहा था . “हमीं हैं ….जिन्हें कुछ पता नहीं …..!!” वह फिर मुस्कराया था . “हमारे बारे …लोग हम से ज्यादा जानते हैं -मुझे भी यह जान कर विश्वास नहीं हुआ था …? पर , भाई जी …….”

“हम पर जासूसी हो रही है ….?” मैंने सीधा प्रश्न पूछा था .

“क्यों नहीं होगी ….?” अमित का प्रति प्रश्न था . “आप अब कोई साधारण वस्तु नहीं रहे, भाई जी …?” उस ने अपने लहजे में कहा था . “आप …अब ..एक ‘राष्ट्रीय’ मुद्दा बन चुके हैं ! दिल्ली अब आप को …साफ़-साफ़ ..एक खतरे के रूप में ..देख रही है ! और पल-पल की खबर …उन तक पहुँच रही है !” बे-बाक बात थी,अमित की .

“कौन सी ख़बरें जा रही हैं,अमित …?” मैंने पूछ लिया था . मैं भी जानना चाहता था कि वो कौन-कौन कमियां हैं …हमारी जो हमें दगा दे सकतीं थीं ! या कि जो हमें परास्त कर सकतीं थीं …?

अब अमित ने मुझे अपांग देखा था . कुछ सोचा था …कुछ याद किया था ! और कुछ अनुमान भी लगाया था ? अमित की अक्ल की मैं दाद देता हूँ . उड़ती चिड़िया के पर यही गिनता है ! ना जाने कैसे इसे सब पता होता है ….और …

“लोग रात-दिन गुजरात आ रहे हैं,भाई जी !” अमित बताने लगा था . “खबरें लेने आते हैं ! गुजरात में डोल-डोल कर …कहीं कोई सडांध खोज लेना चाहते हैं …! चाहते हैं कि …अखबारों के लिए …कोई ऐसी सौगात ले जाएं …गुजरात से …जो जाते ही सुर्खियीं में आ जाए और टी वी तथा मीडिया पर आतंक की तरह छा जाए …? और …और मोदी उस हादसे में मारा जाए …?” उस ने फिर से मुझे देखा था .

“पर ले कर क्या जा रहे हैं …?” मैं अधीर हो गया था -जानने के लिए .

“बैग भर-भर कर ‘विकास’ ले जा रहे हैं ! सडांध की जगह सुगंध ले जाते हैं ! मोदी के नाम की सुगंध …एक भाईचारे की सुगंध ….और एक ऐसी सुगंध जो ….अन्यत्र दुर्लभ है ! प्रदेश में ना तो कोई झगडा होता है ….और ना ही कोई झंझट है …? लोगों तक हर सुविधा पहुँच रही है . प्रदेश- पूरे देश में एक अलग की उदाहरण बन गया है ! ‘देखो! गुजरात जा कर’ लोग कहते सुने जाते हैं ! हर प्रदेश अब गुजरात की नक़ल करना चाहता है ! लेकिन …..”

“लेकिन …..?”

“लेकिन ‘मोदी’ कहाँ से आए ….?” हंसा था ,अमित . “कुर्सी पर बैठा हरआदमी ….अपने भले की सोच रहा है …! प्रदेश तो ….?”

हाँ ! अमित का कहना सच था …अक्षर सह सत्य था ! कुर्सी पर बैठते ही आदमी को अपने ही नजर आने लगते हैं ! अपने लोग …अपना स्वार्थ …अपना भविष्य और अपनी ही छवि ….तथा अपना ही हानि-लाभ वह सब से पहले देखता है ! और जनता …प्रदेश ….और देश ….जैसे कुछ होता ही नहीं …? गुजरात का भी तो यही हाल था …? कुर्सी पाने तक के लिए टक्कर होती है ….? और फिर चाहे शेरा हो …या ..बघेरा ….अपना ही स्वार्थ आगे होता है …?

और अब देश का भी तो यही हाल था …..?

जम कर लूट हो रही थी – मैं जानता था ! मैं मानता था कि देश में एक विदेशी सरकार …पुनह स्थापित हो चुकी थी ! अपने देश में अपनों के लिए कुछ नहीं ….हो रहा था ? जो हो रहा था वो उन के लिए था जिन्हें भविष्य में देश को निगलना था …पकड़ लेना था …बाँट लेना था …? और आश्चर्य ये था कि …पूरा तंत्र उन के लिए ही काम कर रहा था …? चाहे सिद्ध थे …विचारक थे ….मनीषी थे …या कि राजनेता थे …सब एक अद्रश्य मालिक का पानी भर रहे थे …? कुल मिला कर उन्हें अपने इनाम-इकरार चाहिए थे …फिर चाहे देश लुटे …टूटे …गुलाम बने – उन की बला से ….?

“मुकाबला जंगी होगा,भाई जी …?” अमित ने मेरा सोच तोडा था . “गुजरात के चुनाव ..दिल्ली के लिए …बहुत ही महत्वपूर्ण हो गए हैं …?”

“क्या -क्या तैयारियां चल रही हैं …?” मैंने पूछा था .

“बस एक ही उद्देश्य है -उन का ! मोदी और अमित को …इतना नीचे …ज़मीन में गाढ़ दिया जाए …ताकि किसी को ढूंढें भी न मिलें ….! और फिर गुजरात को ………”

“क्या करेंगे ,गुजरात का …?” मैंने सीधा प्रश्न पूछा था . मैं नहीं चाहता था कि गुजरात किसी भी हाल में उन के हाथ लग जाए !

“आनंदी …को पकड़ा देंगे ….?” अमित ने तुरंत उत्तर दिया था . “बहुर सही रहेगा …,भाई जी !” अमित ने मेरी आँखों में देखा था . “दिल्ली में ज़मने तक का समय ….तो हमें …गुजरात से ही मिलेगा …?” अमित का तर्क था .

“ठीक…! बहुत ठीक …!!” मैंने स्वीकार में सर हिलाया था . “आनंदी ही अपनी है …?” मैं मान गया था . “किसी के दबाब में आनेवाली हैसीयत नहीं है !” मैं कहता रहा था .

“दिल्ली में यह खबर भी पहुंची हुई है ….?” अमित कह कर हंस रहा था .

“ओह,नो ….?” मैं आश्चर्य से उछल पड़ा था . “तब तो …फतह …हमारी ही होगी , अमित … ?” मेरा अनुमान था .

एक बारगी मेरी निगाह गुजरात के पूरे प्रदेशको चूम कर लौटी थी . मैं देखना चाहता था कि चुनाव की होती तैयारिओं में कोई कमीं तो नहीं थी …? कोई ऐसा नुकता – जो हम नज़रन्दाज़ कर जाएं …और कल को नासूर बन जाए …? जनता का मन बड़ा ही कोमल होता है ! तनिक-सी भी चोट लग जाए …तो आहात हो जाता है ! ख़ास कर अपने कर्णधारों से जनता को वही आशाएं होती हैं ….जो परमात्मा से होती हैं ? और परमात्मा भी …उन्ही का दास है …सेवक है ! जन-मानस का एक अलग ही महत्व है – मैं यह मान कर चलता हूँ !

“अमित ….?” अचानक मेरे दिमाग में एक विचार कौंधा था . “अब की बार महिलाओं को कितनी सीट सौंप रहे हैं …?” मैंने पूछा था .

“भाई जी ! आप प्रसन्न हो जाएंगे …ये जान कर कि ..मैं २५ सीटें महिलाओं के नाम लिख चुका हूँ ! १८५ में से २५ ज्यादा तो नहीं ….पर कम भी नहीं हैं …? अगर २० तक भी जीत कर आती हैं ….तो ..हमारा अनुपात सही बना रहेगा …!”

“गुड,वैरी गुड …!!” मैं प्रसन्न था . मुझे अमित से इस प्रकार की उम्मीदें रहती हैं ?

“मैं अब की बार एक नया प्रयोग करना चाहता हूँ, भाई जी …?” अमित का आग्रह आया था .

“क्या,भला ….?” मैंने पूछा था .

“‘मोदी’ ….’मोदी’ ….’मोदी’ ……और …’मोदी’ ….!!” अमित कहता ही जा रहा था . “मतलब कि …मोदी ही मोदी ….? हवा में ‘मोदी’ …..आकाश में ..’मोदी’ …अखबार में ..’मोदी’ ….मीडिया में …’मोदी’ …और जनता की जुबान पर ‘मोदी’ ….एक मंत्र की तरह ‘मोदी’ …और ‘मोदी’ ….?” अमित ने एक नया पासा फेंका था !

मैंने अब अमित को चौंक कर देखा था . मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि …आखिर अमित कहना क्या चाहता था …? मेरा दिमाग तो अब तरह-तरह के अनुमाओं से भर गया था …और डर गया था …? कहीं हम …’मोदी’ का ये मंत्र फैला कर जनता को डरा तो नहीं देंगे …? कहीं लोग समझ बैठेंगे कि ..मैं …’मोदी’ …सत्ता पाने के लिए …दीवाना हो गया था …और मैं ……?

“आप घबरा क्यों गए ….?” हंसा था , अमित . “मेरा प्रयोग है , ये ….? मेरा प्रयास है ….आप का तो नहीं ….?” अमित रुका था . उस ने मुझे असहज होते देख लिया था . “मैं आप से ‘मोदी’ नाम उधार ले रहा हूँ …भाई जी …? ये मेरा जिम्मा है कि मैं …इस का सदुपयोग कैसे करू…?”

“कैसे करोगे ….? क्यों करोगे ….? और अगर …..?”

“डराने की बात नहीं है …?” अमित सहज था . “अब देखिए …! ‘गांधी’ ….नाम ही तो है ? है भी गुजरात का …हमारा …लेकिन अब ये हमारा नहीं है …? इस को उन लोगों ने हम से छीन लिया …जिन का न तो इस नाम से कोई सरोकार है …और न ही गुजरात से …? ‘गाँधी’ ….इंदिरा गाँधी ….संजय गांधी …राजीव गाँधी …सोनिया गांधी ….प्रियंका गाँधी ….राहुल गाँधी ….ये सब गाँधी हैं कब ….? ये कब थे – गाँधी …? लेकिन नाम चुरा लिया …चालाकी से गाँधी बन गए …और उन हमारे परम पूज्य गाँधी जी को …लूट लिया …? उन का तो नाम तक ले लिया ….और अब काम करते हैं …..?” अमित मुझे घूर रहा था . “आप समझें,भाई जी ….कि हमें …इस ‘गाँधी’ का तोड़ खोजना है …?”

“पर कैसे ….?”

“डायमंड कट्स द डायमंड ….!!” हंस गया था , अमित . “गुजराती ‘गाँधी’ को ….गुजराती …’मोदी’ काटेगा …!!” अमित ने बात का तोड़ कर दिया था .

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श्रेष्ठ साहित्य के लिए -मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!