by Major Krapal Verma | Nov 13, 2022 | स्नेह यात्रा
“आप से कुछ लोग मिलना चाहते हैं साब!” ऑफिस के बाहर खड़े पहरुआ ने आ कर मुझे सूचना दी है। कुछ लोग? कौन लोग? समय तो कीमती है। फालतू में खप जाएगा और परिणाम होगा – चंदा वसूली या किसी भगवान के नाम पर किसी कुंठित व्यक्ति या संस्था के नाम पर या फिर किसी...
by Major Krapal Verma | Nov 10, 2022 | स्नेह यात्रा
मन का पूरा विषाद और कुढ़न भर कर मैं शीतल को जलील करने पर उतर आया हूँ। मन में उठा ज्वार भाटा शांत हो गया है और अब सुबुद्धि वापस लौट आई है। कोने में खड़ी प्रतिमाएं अब सामने वस्त्र ओढ़े लजा सी रही हैं। लाज, शरम, आचरण और न जाने क्या क्या अजीब शब्द हैं जो मौके पर नहीं...
by Major Krapal Verma | Nov 8, 2022 | स्नेह यात्रा
मैंने नजर भर कर शीतल को देखा है। मोहक लगी है। नीले रंग की साड़ी, गले में पड़ा सफेद मोतियों का हार, कानों में लाल मोतियों से जुड़े झुमके, हाथ में पड़ा एक अज्ञात किस्म का कड़ा कुछ इस तरह जान पड़े हैं जिस तरह पेड़ के तने पर छिटके फूल, पत्ते और फल! “क्या देख रहे...
by Major Krapal Verma | Nov 6, 2022 | स्नेह यात्रा
एक थकान से चूर हुआ मैं अपने कमरे में दाखिल हुआ हूँ। मेरे कपड़ों और शरीर पर लगी कीचड़ की आकृतियां अब भी ज्यों की त्यों बनी हैं। मैं तनिक ठिठका हूँ। कोई सोफे पर सजा बैठा लगा है। जब मैंने जानना चाहा है तो लाइट का बटन दबा दिया है ताकि प्रकाश तेज हो जाए। वो परछाईं भी उठ...
by Major Krapal Verma | Oct 31, 2022 | स्नेह यात्रा
श्याम ने हाथ मिलाया है। फिर एक चुप्पी छा गई है। कुछ हिम्मत कर के उसने कहा है। “बे! तुम से वो मिलना चाहती है!” “शादी की बात पक्की करनी है क्या?” मैंने मजाक किया है। “खैर! वो भी तू ही करेगा। लेकिन वो ..” “और पैसा चाहिए? दे दे।...
by Verma Ashish | Oct 26, 2022 | स्नेह यात्रा
मुक्तिबोध ने हम सब को एक चुनौती सी दी है। उसे अपने पैंतरे याद हैं। वह उन पर मनन और अभ्यास कर चुका है। मैंने भी मन ही मन मुक्तिबोध को स्वीकार कर लिया है। “ओके! आप का मांगा हम ने दिया!” कह कर बोर्ड के सभी मेंबर हंस पड़े हैं। हम सब के साथ मुक्तिबोध भी हंसा...