मानवता

वसंत का आरंभ था।। कनेर की एक मोटी,मजबूत डालदेख कर, मधुछत्र डाल दिया गया।। मधुमक्खियां दूने उत्साह से काम कर रही थीं।। छोटे-बड़े असंख्य फूलों से मकरंद चूसा गया।। दिन रात एक हो गए।। लंबे समय से चली आ रही मेहनत-मशक्कत ने मूर्त रूप लिया और छत्ता बनके तैयार हुआ।। भारी भरकम...