महान पुरुषों के पूर्वापर की चर्चा!
भोर का तारा- नरेन्द्र मोदी .
उपन्यास अंश:-
फिर एक बार मुझे अपने परम प्रिय -पूज्य दादा जी याद आ रहे थे !
“हैरानी की बात तो ये थी ,नरेन्द्र कि …हमारे कांग्रेसी न जाने क्यों लोगों के बीच सुभाष विरोधी माहौल पैदा करने मैं लगे थे ? ये लोग सुभाष को हिंदी -हिटलर बता रहे थे . त्रिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में सुभाष पर व्यंग करते हुए कहा गया था .”भारत के हिटलर की जय !” सुभाष के आज़ादी हासिल करने के मार्ग को सभी कांग्रेसी गलत बता रहे थे !”
“क्यों ….?” मैंने तड़क कर पूछा था . अब तक मैं सुभाष का हो चुका था .
“ब्रिटिश सरकार ने इस प्रोपेगंडा के लिए नेहरू को सराहा था . नेहरू का बोला वाक्य ,”द …वे …सुभाष हैज़ …चोज़न …इज ..नैचुरल्ली …रांग ….! आई कांट ….एक्सेप्ट ……बट ….मस्ट …ऑब्जेक्ट ….!!” उन के लिए ये बोला वाक्य बीज-मंत्र का काम कर रहा था . “
“तो क्या सुभाष बोस गलत थे …?” मैंने जिज्ञासा वश ही पूछा था . “क्या वो हिटलर थे …?”
“नहीं,रे …!” दादा जी ने मेरे शक को हवा में उडा दिया था . “सुभाष बाबू कच्ची गोलियों से न खलते थे !” दादा जी हँसे थे . “बहुत पक्का खिलाडी था , वो !” दादा जी ने मेरी आँखों में झाँका था . “सुभाष ने जर्मनी में रहते हुए जानते हो क्या कहा था ?” दादा जी हुमक आए थे .
“क्या कहा था …?” मैंने भी उत्सुकता से पूछा था .
“कहा था – हिटलर को मेरी ओर से स्वतंत्रता है …कि वो चाहे तो ब्रिटिश के बूट चाटे …? माने कि ….उन के तलुवे चाते ….”
“हिटलर के सामने ….जर्मनी में ऐसा …कहा था …सुभाष …ने …?” मैं भी हैरान था .
“हाँ,हाँ ! वहां के स्थानीय अखबारों में साफ़-साफ़ छपा था ! बाद में लोगों ने उस का रूपांतर कर स्थिति को संभाल लिया था ….! वरना तो ……”
“वरना …तो …?” मैंने फिर भी पूछा था .
“सुभाष किसी हिटलर से न डरता था …! बराबरी का व्यवहार रखता था , वह !” दादा जी हंस रहे थे .
मैं स्वप्न देखने लगा था . मैं सुभाष के साथ खड़ा हो ‘जयहिंद’ के नारे लगाने लगा था . मैं सोचने लगा था कि …कितना साहस होगा उस आदमी के पास …जो हिटलर जैसे तानाशाह के सामने भी झुका न था ….?
“सुभाष तो कहते थे – कांग्रेस में जीवन-शक्ति का अभाव है ! वह कोरी नैतिकता को अपना आधार बना कर …चलना चाहती है ! में तो कहता हूँ …कि बिना रक्त बहाए …हमारा आज़ादी का स्वप्न साकार नहीं हो सकता ….?”
“फिर उन का सपना ….अपना सपना साकार क्यों न हुआ ….?” मैंने तर्क किया था .
दादा जी अचानक चुप्पी साध गए थे . दादा जी का मौन तो बोल रहा था …पर उन की जुवान चुप थी ! उन की आँखों में एक दुःख आ बैठा था . विफल होने की सुभाष की पीड़ा का प्रेत …मैंने दादा जी की निस्तेज आँखों में बैठा देखा था !
“पराजय के प्रमाणों से कोई आँख नहीं मिला सकता …., नरेन्द्र !” दादा जी ने अपना मौन तोडा था . “हिटलर की हार ….! जर्मन …रूसियों का मुकाबला नहीं कर पाए …!! इसी तरह सुभाष बोस हारा ! बर्मा की भीषण वर्षा ऋतू का न तो जापानियों की फ़ौज मुकाबला कर पाई ….और न सुभाष की आज़ाद हिन्द फ़ौज ….? दोनों की भारी क्षति हुई . ५० प्रतिशत आक्रमणकारी सेना नष्ट हो गई ! स्थल मार्ग से राशन-रसद तक पहुंचाना असंभव था ! और चीन की सीमा पर भी खतरनाक स्थिति पैदा हो गई थी !” दादा जी ने कहीं दूर देखा था . वह जैसे हुए इस हादसे को याद ही न करना चाहते थे !
“फिर ….?” मैंने पूछ लिया था …तो वह लौटे .
“फिर क्या था , नरेन्द्र ….? आज़ाद हिन्द फ़ौज इस भयावह स्थिति का सामना न कर पाई ! उन के पास अब न तो युद्ध-सामिग्री थी …और न ही खाने-पीने को कुछ शेष बचा था ! इरावदी के तट तक उन्हें जैसे-कैसे लाया गया …”
“और फिर …..?” मैं अब रो पड़ना चाहता था . मेरा समूचा उत्साह ठंडा पड़ गया था .
“और फिर तो वह …ह्रदयविदारक घटना हुई ….” दादा जी बहुत दुखी थे .
“कौन सी घटना ….?”
“६ अगस्त सन १९४५ के दिन …अमेरिका ने …जापान के खुशहाल नगर …हिरोशिमा पर एटम बम से वार किया ….!! देखते ही देखते ….पूरा शहर …जल कर राख हो गया …..! उफ़ …! कैसी तबाही थी ….? कैसा बीभत्स द्रश्य था ….? कैसा धुआँ उठा था … और वो उस अमानवीय हमले का दानव …सब सटक गया ,नरेन्द्र !!” दादा जी रोने लगे थे . “पहली बार …मानव इतिहास में इस तरह का नर-संहार हुआ था ….? पहली बार पूरे विश्व ने इस …जघन्य अपराध को होते देखा था ! पहली बार किसी राष्ट्र के साथ इतना अन्याय हुआ था ! हे,ईस्वर ….! हे,परमात्मा ….!” दादा जी हाथ जोड़े सुबक रहे थे . “पूरा विश्व …भयभीत था …अमेरिका के किए इस …अमानुषिक आक्रमण से …..”
और मैं भी तो सुन्न पड़ गया था ….मात्र उस घटना को सुन कर …जिस ने मानवता को दहला दिया था ….!!
“१३ अगस्त १९४५ को जापान ने आत्मसमर्पण करने का निर्णय लिया था !” दादा जी बता रहे थे . “लेकिन आज़ाद हिन्द सरकार ….सुभाष की सरकार …जिसे नौ देशों से मान्यता प्राप्त थी …अपने में पूर्ण थी …सम्पूर्ण थी ! देश-वासियों को तो सुभाष चाहिए था ? उन की सरकार का भी स्वागत था ….और उन की मान्यताओं का भी महत्त्व था ! गाँधी जी ने भी स्पष्ट कह दिया था कि …जापान भारत का शत्रु नहीं था ! ब्रिटेन और अमरीका का शत्रु था ! अगर अंग्रेज भारत छोड़ते तो …जापानियों के कदम कभी …भारत की भूमि पर न पड़ते ! उन्हें …विश्वास था …..” दादा जी न जाने क्यों फिर से उदास होने लगे थे . “गज़ब की बात …ये थी ….कि ….” वो कहीं गुम थे .
मुझे भी एक उदासी घेरने लगी थी . मैं भी महसूसने लगा था कि …मेरा चहेता -सुभाष …अचानक ही …आज़ादी की कहानी से बाहर कूद कर …कहीं और ही भाग गया था !
“सुभाष बोस …..?” मैंने फिर से दादा जी को कुरेदा था .
“इस के बाद आज तक …सुभाष बाबू का अत-पता किसी ने नहीं दिया ……” दादा जी की आवाज़ में एक लाचारी थी . “सच मानो,नरेन्द्र कि …मैंने इतने प्रयास किए …..कि कोई …सुभाष बाबू का कोई सूत्र …सुराग ……?”
अंधी आँखों के उस पार बैठे -सुभाष ….मुझे हँसते-खेलते दिखाई दे रहे थे ! उन की आवाज़ मुझ तक पहुँच रही थी ,”तुम मुझे खून दो ….मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा !”
“आज़ादी मिलाना तो अब और भी कठिन हो गया था , नरेन्द्र !”
“क्यों …..?”
“अंग्रेज युद्ध जीत गए थे ! महासमर समाप्त हो गया था . अमेरिका,फ़्रांस ….और ब्रिटेन की जीत …हुई ! लेकिन भारत ….की स्वतंत्रता की घोषणा नहीं हुई …?” दादा जी ने बताया था .
“क्यों….?” अब की बार मैंने तुनक कर पूछा था .
“अंग्रेजी सरकार ने एक नया शगूफा शुरू किया था !”
“कौन सा ….?”
“आजादहिंद फ़ौज के तीन अघिकारियों – शाहनवाज़, सहगल और लेफ्टिनेंट जनरल ढिल्लों पर …सम्राट – माने कि … इंग्लेंड के सम्राट के विरुद्ध …विद्रोह ,अपहरण …तथा हत्याओं में …भाग लेने का अभियोग …लगा कर …कोर्ट मार्शल ….माने कि मुकद्दमा चलाया जा रहा था !” दादा जी ने नए तथ्य उजागर किए थे !
“बईमानी थी ….अन्याय था …बदनीयती थी ….!” मैं भड़का था .
“हाँ! पूरा देश भी इस होते कोर्ट मार्शल को अंग्रेजों की चली नई चाल के ही रूप में देख रहा था ! लोग इस होती कार्यवाही को देश का अपमान …और बदले की भावना से प्रेरित …अंग्रेजों की कूटनीति मान रहा था ! उन की नीयत में खोट था !” दादा जी ने भी इस्पष्ट ही कहा था . “अंग्रेज फिर से बईमानी पर उतारू थे ! वह चाहते ही नहीं थे कि ….भारत आज़ाद हो …..!!”
“और लोग क्या चाहते थे …?”
“पूरा हिन्दुस्तान एक मत हो कर आज़ादहिन्द सरकार के साथ था . ” दादा जी ने कहा था . उन के आँखों की चमक लौट आई थी . “ऐसा एका मैंने देखा नहीं था ,नरेन्द्र ! पूरा देश चिल्ला उठा था …कि आज़ाद हिन्द के सैनिकों पर …अंग्रेजी राज के खिलाफ युद्ध करने के कारण ही …जबरदस्ती मिथ्यारोप लगा कर …अपमान व् प्रताड़ना की द्रष्टि से मुकद्दमे चलाए जा रहे …थे !”
“और फिर ….?”
“भूला भाई देसाई ने इस मुकद्दमे में …अपने दिए बयान से ये सिद्ध कर दिया था …कि आज़ाद हिन्द फ़ौज ने न तो विश्व के विरिद्ध युद्ध किया था …और न ही भागने वाले सैनिकों की हत्या की थी ! ‘यह कहना सरासर गलत है कि ..जमी हुई ब्रिटिश सरकार के खिलाफ …यदि कुछ लोग – जो उन के गुलाम हैं , विद्रोह का झंडा उठा लें …तो वे गद्दार कहलाएंगे …? गुलाम ही तो अपनी आज़ादी के लिए युद्ध कैगा …? दूसरा कौन करेगा …? हर गुलाम मौजूदा सरकार के लिए यदि …अपनी आज़ादी की घोषणा कर रहा हो …तो वह भी गद्दार नहीं है ! तो फिर लाखों लोगों की जिन के पीछे शक्ति हो …और जिसे नौ राष्ट्रों का ..स्वतंत्र सरकार के रूप में मान्यता मिल चुकी हो …और वह बराबरी की हैसियत से युद्ध की घोषणा कर रहा हो …तब उसे मात्र विद्रोही कैसे माना जा सकता है ….? ये तो एक सरकार से दूसरी सरकार का खुल्लम-खुल्ला युद्ध था !!”
“और फिर ….?” अब मैंने उल्लासित हो कर प्रश्न पूछा था .
“और फिर ,बेटे ! देश में आई आज़ादी की उत्तुंग लहर ने …अंग्रेजों के पैर उखाड़ दिए …!” दादा जी हँसे थे . “क्या लोग ….क्या सेना ….क्या पुलिस …..और क्या देश-परदेश ….सब कुछ अंग्रेजों के विरुद्ध था ! उन्हें जाना ही पड़ा …!!” अब दादा जी ने भी हाथ झाड दिए थे .
मुझे लगा था …कि मैं अभी-अभी एक युद्ध जीत कर चुका था ! और उस हुए महासमर का मैं ही तो हीरो था …? मैं अब सुभाष को नहीं ढूंढ रहा था …मैं तो अब स्वयं को तलाश रहा था …भविष्य में होने वाले संग्रामों के लिए …तयारी कर रहा था …!!
………………………………………….
श्रेष्ठ साहित्य के लिए -मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!