बॉलीवुड में मातम मन रहा था।

जो आग विक्रांत ने सुलगाई थी उसमें दम था। पहली बार ही था जब किसी ने रचनाकारों के कमजोर पक्ष को उजागर किया था और उनके लिए आवाज उठाई थी। पहली बार ही था जब किसी ने फिल्म जगत में फैली डिस्पैरिटी पर प्रहार किया था। कमाल ही था – फिल्म बनाने वाले अरब पति थे तो काम करने वाले खाक पति। और सबसे बड़ी विडंबना तो यह थी कि कोई किसी के सुख दुख में भी शामिल नहीं था। अगर कोई भूखा मर रहा है तो मरे, लोगों को कोई सर्दी गरमी नहीं थी।

और नेहा को ब्लेकमेल करता रमेश दत्त भी खूब खुश था।

वह जानता था कि अब वो नेहा को पा कर ही रहेगा। उसे यह भी विश्वास था कि काल खंड अब कभी डब्बे से बाहर न आएगी। उसे केवल और केवल सही सा वक्त आने का इंतजार था।

“मुझे छूना मत!” अनायास ही रमेश दत्त को नेहा की ललकार याद हो आई थी।

लेकिन नहीं! रमेश दत्त का मन तो अभी तक न माना था। अब तो उसके इरादे बुलंद थे। उसका मन नेहा को लेकर आजमगढ़ भागने का था। वह चाहता था कि अब नेहा से पहले निकाह करेगा, फिर हनीमून मनाएगा और उसके बाद ही बनाएगा कोरा मंडी!

“नेहा मिलेगी लेकिन तू जिंदा बचेगा तभी न ..?” विक्रांत की दांती भिच आई थी। “तेरा कर्जा बिन चुकाए मैं न मरूंगा, कासिम बेग!” विक्रांत अपने सबल इरादों को बैठा बैठा नाप रहा था।

और रमेश दत्त भी विक्रांत के खतरनाक इरादों से बेखबर न था।

“मैं कहे देता हूँ रंजन भाई!” रमेश दत्त का स्वर चिंतित था। “ये अभिनेता से नेता बना विक्रांत हम सब की नइया डुबो देगा।” वह बता रहा था। “अगर हम सब ने मिल कर इस बीमारी का इलाज न खोजा तो ..”

“आप ही कुछ कीजिए सर!” रंजन का स्वर विनम्र था। “हम आपके साथ हैं।”

“पांच को गृह मंत्री के ऑफिस पहुँचो!” रमेश दत्त ने अगले आदेश दिए थे। “विक्रांत को बुलाया है। हम सभी को उसकी खिलाफत में वहां पहुँचना होगा।”

भाई का फोन बड़ी देर से आ रहा था। रमेश दत्त के प्राण सूख रहे थे। वह जानता तो था कि मुद्दा क्या होगा! लेकिन उत्तर तो कोई था ही नहीं।

“बन गई तेरी कूड़ा मंडी – तूड़ा मंडी ..?” भाई की आवाज बुलंद थी। “अब तुम सब भूखे मरोगे हरामजादों!” कोसने लगा था भाई। “ओर मैंने भी मेरा तिनका तिनका नीलाम करा देना है कासिम बेग!”

“लेकिन भाई!” कासिम बेग की आवाज डूबने लगी थी। “मैंने तो आपकी बहुत सेवा की है।”

“मेवा भी तो खूब खाई है!” हंस गया था भाई। “लेना देना अपनी जगह होता है कासिम बेग!” भाई ने फोन काट दिया था।

रमेश दत्त के पसीने छूट गए थे।

“ये सरासर अन्याय है श्रीमान!” विक्रांत गृह मंत्री के ऑफिस में बादलों सा गरज रहा था। “काल खंड को बैन कर दिया। ये फिल्म तो ..”

“कोर्ट का मामला है विक्रांत बाबू! इस में हम दखल नहीं देंगे!” गृह मंत्री नूरुल हसन कह रहे थे। “बाकी आपकी सारी समस्याएं सुलझ जाएंगी। आप काम मत रोकिए। इसमें सभी का अहित है।” उनका सुझाव था।

बॉलीवुड के सभी डायरेक्टर प्रोड्यूसर ऑफिस में जमा थे। एक विशाल भीड़ ऑफिस में इकट्ठी हो गई थी।

“हिन्दू लड़कियां ..” विक्रांत को कासिम बेग का चालाक चेहरा याद हो आया था। “और ..”

“ये हिन्दू मुसलमान मत करिए विक्रांत बाबू!” हंस कर कहा था नूरुल हसन ने। “सब प्रेम से साथ साथ रहते सहते हैं – मैं जानता हूँ।” उसने आंख उठा कर जमा भीड़ को देखा था। “खूब भाई चारा है।” उसकी राय थी। “मेरी मां भी तो राजपूत हैं! हाहाहाह ..” वह खुल कर हंसा था।

विक्रांत की निगाहों के सामने फिर से इतिहास ने वही पन्ने खोल दिए थे जहां हिन्दू अपनी अच्छाई सच्चई के जुर्म में आज भी अनउत्तरित हुआ खड़ा पाया गया था।

निरुद्देश्य कुर्सी पर बैठा विक्रांत सूने सूने आकाश पर अपने प्रेम प्रसंगों को तलाश रहा था।

“नेहा थी – तो सब कुछ था।” विक्रांत ने स्वयं को सुना कर कहा था। वह चाहता था कि उसका सूना हो गया अंतर फिर से उठ खड़ा हो। “वो थी तो – चाह थी, राह थी, उद्देश्य था और इरादे भी थे।” वह यह सब तो जानता था। “लेकिन नेहा के साथ ही सब चला जाएगा – यह तो एक नया आश्चर्य है।” वह तनिक सा मुसकुराया था। “क्या नेहा लौटेगी?” उसने अहम प्रश्न भी पूछ लिया था।

और जब उत्तर में केवल खामोशी ही लौटी थी तो विक्रांत बेदम हो गया था।

“नेहा न जाती तो कुछ भी न जाता!” विक्रांत फिर से महसूसने लगा था। “काल खंड यहां बैन थी तो हमने यूरोप में रिलीज कर देनी थी। और एक बार यूरोप में छा जाने के बाद तो काल खंड ..”

विक्रांत की उंगलियों के बीच कैली की अपनी फिल्म – त्रिकाल आकर डोलने लगी थी। कितना मोहक सपना था। विक्रांत और नेहा उसमें शिव और पार्वती के रोल में थे। मार्मिक पटकथा थी। काश ये सपना पूरा हो जाता! काश कि नेहा यों रूठ कर न चली जाती।

“पुकारोगे नहीं नेहा को?” विक्रांत ने विक्रांत से ही पूछा था।

“नहीं!” उत्तर जिद्दी विक्रांत ने दिया था और रीते रीते आकाश की ओर से आंखें फेर ली थीं।

समीर आज एक अतिरिक्त उल्लास से भरा था और पूरे घर में भागा डोल रहा था।

“आप को रंगीला की शूटिंग पर अवश्य चलना है जिज्जी!” समीर जिद पकड़ गया था। “कब तक घर पर बैठोगी?” उसका उलाहना था। “अब तो हम ही ने अपना काम करना है।” वह नेहा को बताने लग रहा था।

“बात को समझा करो समीर!” नेहा का स्वर कातर था। “मेरा मन ..”

“काम से बदलेगा मन जिज्जी!” समीर ने बात काटी थी। “और हां! मैंने आपको बताया नहीं कि रंगीला में हमने एक नया ट्विस्ट डाला है।” समीर ने नेहा की सूनी सूनी आंखों को तलाशा था। “एक गजल है!” समीर बताने लगा था। “दत्त साहब ने अश्क मीताली से आप के लिए लिखवाई है।” वह तनिक हंसा था। “क्या बोल हैं जिज्जी!”

“तू तो पागल है समीर!” नेहा ने दो टूक कहा था। “फिल्में इस तरह नहीं बनती – वीरन!” नेहा ने लाढ़ से कहा था। “एक मकसद को लेकर बनती हैं – फिल्में ..”

“अरे जिज्जी!” अपना सर पीटा था समीर ने। “वो दादू की फिल्म – मम्मी मम्मी, हिट हो गई। जानती हो कितना पैसा बटोरा है?” समीर पूछ रहा था। “ये मकसद वाली फिल्में पैसा नहीं कमाती जिज्जी! तुम्हारी एक गजल .. बाई गॉड हमारी नइया पार कर देगी।” वह हंस रहा था।

“रमेश दत्त ने अगला पत्ता चल दिया है।” नेहा के कान में कोई कह रहा था। “अब कैसे बचोगी?” वह पूछ रहा था।

रंगीला के सेट पर नेहा के पहुँचने के अलग से अर्थ थे।

रौनक तो अचानक ही चल कर आ गई थी। कलाकारों में एक नई फुर्ती लौट आई थी। रंगीला का डायरेक्टर एक अलग ही दौड़ भाग से भरा था। हर बार वो नेहा के पास आता और प्रश्न पूछता। नेहा को भी भला लगा था। यह पहली बार ही तो था जब वह दोनों भाई बहन रंगीला के प्रोड्यूसर थे ओर उन्हीं की निगरानी में फिल्म बनने जा रही थी। प्रेस में भी खूब चर्चा थी।

“हैलो नेहा!” एक बेहद धीमी आवाज में रमेश दत्त ने पीछे से नेहा को पुकारा था। नेहा ने आवाज सुनी थी। पहचान भी ली थी। लेकिन रमेश दत्त न दिखा था। “देर आए – दुरुस्त आए!” जुमला कसता हुआ रमेश दत्त उजागर हुआ था तो नेहा के होश उड़ गए थे। “अपना काम अपना ही होता है।” वह कहता ही रहा था। “खूब जम रही हो!” वह इस बार हंस गया था। “मैं तो दुआएं मांगूंगा कि बहन भाई की मुराद – रंगीला ..”

नेहा कुछ न सुन रही थी।

“सर! गजल के वो बोल भी तो जिज्जी को बताओ ..” समीर बीच में टपक पड़ा था। “वो वाली लाइन सर – कजरारे नयना .. ले उड़े मेरा चैना ..”

“हां नेहा!” रमेश दत्त फिर से बोला था। “अगर ये गजल तुमने पर्दे पर उतार दी तो न जाने कितनों के चेन चले जाएंगे।” जोरों से हंसा था रमेश दत्त।

अचानक ही नेहा का शूटिंग छोड़ कर स्टूडियो से चला जाना सभी को दहला गया था।

समीर और रमेश दत्त एक दूसरे का मुंह ताकते रह गए थे।

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मेजर कृपाल वर्मा

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