“कुत्ते! तेरी ये औकात!” पठान पहलवान के सीने पर लात मार कर उसे ललकारता है। ये फिल्म पठान और पहलवान का संवाद दर्शकों से सहा नहीं जाता है। दर्शक महसूसते हैं कि ये मुसलमानों ने जान मान कर हिन्दुओं को अपमानित किया है और ललकारा है कि वो अपनी औकात न भूलें। “सजा दूंगा तुझे!” पठान पहलवान को फिर से ललकारता है। “तेरे गुनाह की वो सजा जिसे लोग याद रक्खें।”

अब सिनेमा हॉलों पर पोस्टर फाड़े जा रहे हैं। स्क्रीनों पर पत्थर बरस रहे हैं। फिल्म को रोक दिया गया है। शिकायतें हैं, शिकवे हैं और फरियादें हैं। पुलिस एक दौड़ भाग में लगी है लेकिन मामला थमता नजर नहीं आ रहा।

रविकांत के कानों पर लगातार नगाड़े बज रहे हैं।

“नहीं रुक रहा है बाबू जी!” मंगल रविकांत को बता रहा है। “हम खूब बताए लोगन को कि ये फिलम आपकी है। हम बताए कि हम लोग तो हिन्दू हैं और रवि बाबू तो यू पी के ब्राह्मण हैं! लेकिन ..”

“पुलिस ..?” रविकांत कठिनाई से बोल पाए हैं।

“एफ आई आर आप के नाम से दर्ज कराई है लोगों ने!” मंगल बता रहा है। “बहुत नाराज हैं लोग!” उसने कहा है।

“बुरा फसा दिया सालों ने ..!” माथे पर दोनों हाथ रख कर रविकांत ने उन सब को गाली दी है जिन्होंने पठान और पहलवान बनाने की सलाह दी, सहयोग दिया और ..

“छोड़ो विक्रांत को पंडित जी!” नदीम ने ही सलाह दी थी। “के साहूकार को लेकर बनाओ फिल्म! रहमान कुरेशी से मैं कह दूंगा। टॉप का डायरेक्टर है। अभी तक जो भी फिल्म बनाई है, टॉप पर गई है!”

“लेकिन नदीम तुम तो जानते हो कि विक्रांत की दो फिल्में बना कर ही मैं बड़ा हो गया हूं!” हंस कर कहा था रविकांत ने।

“लेकिन के साहूकार आपको साहूकार बना देगा, पंडित जी। अरब पति होगे एक ही फिल्म में। कहानी है फरियाद के पास। आप मेरी बात मानें, मैं सब कुछ तय करा दूंगा। और फिर दत्त साहब नहीं चाहतें कि आप विक्रांत को ..”

“पागल था मैं!” स्वयं को बैठे बैठे रविकांत कोस रहे थे। “अपने हाथों ही अपनी नाव डुबो ली!” उन्होंने गर्दन हिलाई थी। “वॉट ए फूल आई एम?” वह अफसोस जाहिर कर रहे थे। “बाबू जी भी क्या सोचेंगे?” बड़बड़ाए थे रविकांत। “घर बेच कर पैसे दिये थे बाबू जी ने और अब तो बेचने के लिए उनके पास भी कुछ नहीं बचा था।” रविकांत को याद आ रहा था।

पत्रकारों ने आ कर घेर लिया था रविकांत को।

“आप तो हिन्दू हैं फिर आपने ये फिल्म क्यों बनाई?” पत्रकार पूछ रहे थे।

“बकवास है ये हिन्दू मुसलमान का एंगल।” चीख पड़े थे रविकांत। “देश सबका है। सैक्यूलर सोसाइटी में रहते हैं हम। मैं नहीं मानता इन छोटी और ओछी बातों को।”

“फिर ये फिल्म क्यों बनाई?”

“क्या खराबी है फिल्म में? मनोरंजन के लिए फिल्म बनाते हैं! उसमें ये राजनीति कहां से घुस आई?” रो पड़ना चाहते हैं रविकांत। “ये चाल है – हिन्दू मुसलमान का दंगा कराने की। कुछ लोग नहीं चाहते कि ..”

“आपने विक्रांत को क्यों निकाला सात फिल्मों से ..?” सीधा प्रश्न आता है।

चुप हैं रविकांत। बोलना ही नहीं चाहते वह और नहीं बताना चाहते कि उन्होंने विक्रांत को सात फिल्मों में से क्यों निकाला था। वह नहीं बताना चाहते कि किन लोगों के कहने पर उन्होंने विक्रांत को निकाल दिया था और के साहूकार को साइन कर लिया था। अब कैसे बताएं पंडित रविकांत कि ..

“हिन्दू होकर आप भी हिन्दुओं की बेइज्जती क्यों करते हैं? इन मुल्लों से ..” इन प्रश्नों ने पंडित रविकांत के कानों के पर्दे फाड़ दिये हैं!

अब रोष चढ़ आया है पंडित जी को!

सबसे बड़ा गम तो इस बात का था कि अगर पठान और पहलवान पिट गई तो उनका तो दिवाला निकल जाएगा। गांठ की सारी पूंजी लगा बैठे थे ओर बाद में भाई से भी पैसे उधार मांग लिए थे। कमीनों ने खुल कर खर्च कराया और अब फजीहत होने लग रही थी।

“भाई तो पैसा नहीं छोड़ता पंडित जी!” मूनींद्र बता रहा था। “बहुत बड़ा काइयां है। उसके गुर्गे छाती पर चढ़कर पैसा वसूलते हैं।”

“मेरी क्या खाल खींच लेगा?” रुआंसे हो आये हैं पंडित रविकांत।

“सर गोली मार देते हैं ये जाहिल लोग!” सुमेर ने उन्हें समझाया था। “इनका पैसा नहीं रुकता!” उसने राय दी थी।

लगा था – पंडित रविकांत को जैसे उन्हें बुखार चढ़ने लगा था।

“हिन्दू मुसलमान की जंग हुई तो हिन्दू भाग कर जायेगा कहां?” लोग गपिया रहे थे। “हम हिन्दुओं का तो इस जहां में कोई है ही नहीं! इन मुसलमानों के तो घने ही मुल्क हैं! इनका अच्छा खासा गठजोड़ है। पैसे से भी धनी देश हैं।” चर्चा चालू थी।

पंडित रविकांत के सामने अचानक आग्रह करता विक्रांत उजागर हो गया था।

“देश भक्ति पर फिल्म बनाते हैं पंडित जी – काल खंड!” उसने अनुरोध किया था। “देखना आप फिल्म को परवान चढ़ते!” वह बता रहा था। “काल खंड को देश और समाज को जानने की जरूरत है।” उसने बताया था। “हम अभी भी स्वतंत्र नहीं हुए हैं बाबू जी। हम अभी भी अंग्रेजों और मुसलमानों के गुलाम हैं।” उसने कहा था।

“मैं इन पचड़ों में नहीं पड़ता विक्रांत भाई!” दो टूक उत्तर था रविकांत का और ठीक तीन दिन बाद ही रमेश दत्त के इशारे पर विक्रांत को अपनी सात फिल्मों में से निकाल बाहर किया था।

“साजिश तो है – मुसलमानों की!” आज रविकांत का मन मान रहा था। “लेकिन भाई का पैसा?” वह इसका कोई इलाज खोज नहीं पा रहे थे। “मुसलमान तो अपने ही लोगों की मदद करते हैं!” अब आ कर उन्हें होश लौटा था। “के साहूकार दो कौड़ी भी न देगा – मदद के नाम पर!”

“विक्रांत की तरह तुम भी बंबई से भाग लो, रविकांत!” किसी ने चुपके से कान में कहा था। “और आजमगढ़ तो भूल कर भी मत जाना!” एक बेबाक राय आई थी।

आजमगढ़ भी अब हिन्दुओं का नहीं रहा था – पंडित रविकांत ये जानते थे।

जीवन में आज पहली बार था जब पंडित रविकांत का मन पैसे कमाने के लालच को थूक और नंगा होकर उनके कृश काय चोले से बाहर आया था! अब वो डरपोक हिन्दू नहीं बल्कि एक सशक्त क्रांतिकारी थे। उनका अब मन नहीं था कि वो बंबई से विक्रांत की तरह भागें! उनका तो मन था कि वो अब संग्राम छेड़ दें! अब अपनी आवाज बुलंद करें उन लोगों के विरुद्ध जो हिन्दू समाज को समाप्त कर देना चाहते थे।

सदियों से हिन्दुओं को हिन्दुओं के खिलाफ करने की रची साजिश पंडित रविकांत को एक छन में दिखाई दे गई थी।

“मैं अब लड़ूंगा इन सालों से!” पंडित रविकांत ने स्वयं से कहा था। “विक्रांत के साथ मिल कर मैं ऐसा संग्राम छेड़ूंगा जो जन मानस को जगाये! हिन्दू फिल्म देखते हैं तो ये कमाते हैं! हिन्दुओं ने ही इन्हें सुपर स्टार बनाया है। और ये हैं कि हिन्दुओं ही लगातार ..”

अचानक ही पंडित रविकांत के चेहरे पर खुशी की एक लहर दौड़ गई थी। उन्हें बहुत अच्छा लगा था कि उनकी फिल्म पठान और पहलवान बॉक्स ऑफिस पर पिट गई थी। अच्छा हुआ था कि के साहूकार पर पत्थर पड़ रहे थे। ठीक था लोगों का कहना कि हर बार हिन्दू पहलवान ही क्यों हार जाता था? उन्हें अच्छा लग रहा था कि हिन्दुओं की आवाजें उठ रही थीं और हिन्दू सड़कों पर उतर आये थे।

पंडित रविकांत ने आंखें उठा कर देखा था।

सवेरा होने को था शायद! शायद इस बार हिन्दुओं ने पूर्ण रूपेण स्वतंत्र होने की ठान ली थी। उन्हें अब बिना किसी पूर्व ग्रह के इस नवोदित क्रांति में शामिल होना था और हिन्दू राष्ट्र की रचना में पूर्ण सहयोग देना था।

हिन्दू अब नहीं हारेगा – पंडित रविकांत आती आवाजों को साफ साफ सुन पा रहे थे!

मेजर कृपाल वर्मा

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