बेहद आकुल व्याकुल बैठे उन,
बेबस शान्त नितान्त अनेक मन |
मन ही मन विस्मित हो हो कर ,
वह रह जाते मन मसोसकर ||
हे ! इन्द्रदेव हे ! वरुणदयामय,
करो दया इन आर्त जनों पर |
असमय बारिस और हवा से,
दुस्प्रभाव पड़ता फसलों पर ||
~ कुमार गौरव