कल तक थे जो पीट रहे लोकतंत्र की ढोल,
देखो भइया आज ही खुल गयी उनकी पोल
खुल गयी उनकी पोल डूब गयी उनकी लुटिया
हुए बुद्घिजीवी मौन कुकृत्ये लिबरल दिदिया
कह पंक्षी कविराय ढोल पीटो तुम धिनतक
भूलो सारी बात जो करते थे तुम कल तक
~कुमार गौरव
कल तक थे जो पीट रहे लोकतंत्र की ढोल,
देखो भइया आज ही खुल गयी उनकी पोल
खुल गयी उनकी पोल डूब गयी उनकी लुटिया
हुए बुद्घिजीवी मौन कुकृत्ये लिबरल दिदिया
कह पंक्षी कविराय ढोल पीटो तुम धिनतक
भूलो सारी बात जो करते थे तुम कल तक
~कुमार गौरव