मंत्रोच्चारण से,अजान से, लोगों के सभ्य समाज से, नहीं मिलता है सकूं,जो सुन कर मिलता है तेरी आवाज़ से। यार से, संसार से, लोगों के जय जयकार से, नहीं मिलता है सकूं,जो मिलता है तेरे दीदार से। दोलत से,शोहरत से, लोगों के शोहबत से, नहीं मिलता है सकूं,जो मिलता है तेरी मोहब्बत से। खुद से,खुदा से, लोगों के व़फा से,नहीं मिलता है सकूं,जो मिलता है तेरी स़फा से।