चलो आज तुम्हें एक ‘रीत’ सुनाते है
धक -२ धड़कनों की ‘प्रीत’ सुनाते है,
क़लम से स्याही का क्या है रिश्ता
शब्दों से बुना सुंदर ‘गीत‘ सुनाते हैं,
जो अब तक हुआ तेरे-मेरे बीच में
वो बीते कल का ‘अतीत‘ सुनाते हैंं,
खास नहीं जोड़ा मैंने उन लम्हों से
जो जोड़ा है वो ‘व्यतीत‘ सुनाते हैं,
बहुत ही छुपाया जहां से तुमको
पर छिप ना सके वो ‘मीत‘ सुनाते हैं,
मालूम नहीं तू दिल में या जहन में
मगर हार को बदल दे ‘जीत‘ सुनाते हैं,
तुम समझो या न समझो हमको
कैसे बस गयी वो ‘मनमीत‘ सुनाते हैं,
सूरज की चाँद से क्या है चुप्पी
उस ‘मजबूर’ की वो ‘बातचीत‘ सुनाते हैं
-© Sanjeet Kushwaha