distributionसुंदर – स्वप्न 

“हाँ,हाँ …! बिलकुल सही  है  !! न्याय- संगत है …सच है ….धर्मानुकूल है …! जन-मानस को इसी प्रकार का अनुशाशन चाहिए . मैं कब से कह रहा था …कि …व्यवस्था ही भ्रष्ट हो तो ….”

“लोग भ्रष्ट होंगे तो ….व्यवस्था भी भ्रष्ट होगी ! राजा – प्रजा का ही तो प्रतिनिधि होता है . मैं कहीं और से तो नहीं उगा ….? स्वच्छ समाज की एक …साधारण सी …”

“नहीं,नहीं ….! आप तो श्रेष्ट हैं …आप असामान्य हैं …! आप तो ….”

“मत बिगाड़ो मुझे , शास्त्री जी …! साधारण मनुष्य ही मान कर चलो , मुझे ….!”

सत्य वचन थे – उन के ! सत्य संभाषण था ….!! कितना हल्का- हल्का …सुगन्धित-सा ….कर्णप्रिय लग रहा था – उन का ये कथन !

“हर हाथ को आठ घंटे का काम मिला है ….! कर्मठ जीवन जीने के लिए ….एक दिशा है …एक कौशल है …..! संस्कार मिले है ….समाज का निर्माण करने के लिए …..शिक्षा मिली है …..स्वयं एक रास्ता चुनने के लिए …..आत्मोत्थान के लिए ….आदर्श हैं ….आगे बढ़ने के लिए …मह्त्वाकान्छाएँ मुंह-बाएँ खड़ी  हैं ….! सब को सब मिला है ….”

हमारी  ये पुरुष-पीढ़ी …देश-भक्तों की तरह काम को अंजाम देती है …!

स्वच्छ नहीं ….अब आप सुगन्धित भारत के दर्शन कीजिए ..! ये है सौहार्द की सुगंध ….! उस वैमनष्य की सडांध ने तो ….लोगों का जीना दूभर कर दिया था ….! आए दिन की चक-चकें  ….और चैन का नाम नहीं …!! तनाव ग्रस्त जिंदगी से …कौनसे सुखों की उम्मीद रखते हो ….?

अब देखो ! कैसे-कैसे फूल खिले हैं …..हमारे इन संस्थानों के उपवनों में  …? वैज्ञानिक हैं ….विचारक है ….प्रशाशक हैं ….और …

“उठ , ब्ब्बे …! पुलिस …..!!”

भागते हैं …हम सब ….लेकिन साम्राज्य के इस सुंदर -स्वप्न के साथ …..

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