मैं बोलूँगा ही नहीं !
ये मुझे पहली बार ‘बेईमान’ के सेट पर मिली थी !
क्या अल्हड जवान थी ! इस के अंगों का सोष्ठव् बेजोड़ था . इस की मुस्कान पर जगत-जहान निछावर था . इस की हंसी जब रात रानी के फूलों की तरह झर-झर …..झरर-झरर …झरती थी तो सुनने वाले बेहोश हो जाते थे . इस की आवाज़ में जादू था . कंठ किसी भी कोयल से मीठा था . पुष्ट बदन …स्वेत वर्ण …लम्बा कद …और गहरे काले बादलों से फहराते -लहराते इस के गेसू …असंख्यों को अँधा कर देते थे . क्या मस्त हिरनी की-सी चाल-चलगत थी – इस की ….!! और कैसा रूप था …इतना विचित्र ….कि ….
“रूपाली हूँ ….!” इसी ने मुझे अपना परिचय दिया था . “‘बेईमान’ की इमानदार हिरोइन ….” यह हंसी थी . “और तुम ‘निहाल’ हो ….! बेईमान के बेईमान हीरो ….!!” फिर हंस पड़ी थी, ये . “सच ! लगता ही नहीं कि …हम दोनों की केमिस्ट्री कहीं भी मिलती हो ….?” इसी ने प्रश्न उठाया था . “लेकिन रजत का एलान है कि …हम दोनों की जोड़ी …..”
“अमर जोड़ी बनेगी ….” मैंने वाक्य पूरा किया था . क्यों कि रजत्त बार-बार यही कह रहा था कि …हमारी जोड़ी …और शाहूकार की घोड़ी ……
लेकिन काम कहाँ हो पा रहा था …! मैं उत्तर था ….तो रुपाली दक्षिण ! मैं हंस पड़ता था …तो ये रो पड़ती थी …! संवाद कहीं के कहीं जा भिड़ते . निगाहें कहीं बिछुड़ जातीं तो लौटती ही नहीं . मैं इसे देखता …तो देखता ही रह जाता …..संवाद क्या था – मुझे याद ही न रहता . और मैं …..! और ये …? सच मानिए कि …इसे तो शऊर-सलीके के नाम पर ….ठीक से बात-चीत करना तक न आता था ! अपने हुस्न के ठसके में गर्क ये ‘हिरोइन’ का खिताब पा गई …नक् चढ़ी ..लड़की किसी साले को गिदानती ही नहीं थी ! इसे तो कोई परवाह ही नहीं थी ! और न ही किसी से कोई सरोकार था , इसे !!
आज़ाद पंछी की तरह …खुले आसमान में ये …एक अंतहीन यात्रा पर उड़ जाना चाहती थी ! और एक मैं था – जो चाहता था कि …फिल्म बने …’बेईमान’ जल्दी से जल्दी तैयार हो कर पर्दे पर आए …रंग जामाए …और ज़माना जाने कि …मैं-‘निहाल’ …एक होनहार हीरो ….समाज को खुशियाँ बाँट-बाँट कर …निहाल कर दूंगा ..और इतनी हिट-पिक्चर दूंगा कि …..
“पागल हो ….दोनों ….! सर पीटा था , रजत ने ! “युगांत में भी फिल्म पूरी नहीं होगी …’ उस का कहना था . “एक-एक …संवाद के लिए …इतने टेक और रि – टेक ….और माथा-पच्ची ….? भाई ! ये तो नहीं चलेगा ….” उस ने हम दोनों को घूरा था . लगा था – अब कहेगा , “यू …आर ….फायर्ड …! गेट लॉस्ट …बोथ ऑफ़ …यू …!!” पर उस ने कुछ इस तरह कहा था , “बोथ ऑफ़ यू ….गो टू हैल ….!” वह तनिक मुस्कराया भी था . “जहाँ …चाहो …दोनों जाओ …!” उस का सुझाव था . “आई विल …पे …!!” उस ने घोषणा की थी . “पर …प्यास बुझा कर लौटना ….” उस का आदेश था .
ये तो बल्लियों कूदी थी . हंसती ही रही थी . विफर-विफर कर हंसी थी ! मुझसे लिपट कर ….मुझे झिंझोड़ कर हंसती ही चली गई थी ! लेकिन मैं था कि सकते में आ गया था . इस पागल के साथ …अगर मैं …किसी जहन्नुम मैं …चला भी जाऊं …तो क्या बनेगा ….क्या बिगड़ेगा …? मैं गहरे सोच में पड़ गया था ! रजत का पैसा डूबा तो ….?
लेकिन हम अंत में रजत के बताए उस ‘हैल’ में जा ही रहे थे ….! इसी ने कहा था ,”वाइल्ड गेम ….सेंचुरी ….’ चलते हैं . वहां फन …एंड फ्रोलिक …दोनों ही मिलेंगे …! और तब हमें ये दोनों ही दरकार थे . मैंने इस की बात मान ली थी .
वाइल्ड गेम सेंचुरी हम दोनों के लिए एक अनुभव था ….बिलकुल नया अनुभव ! जंगल का अनूठा एकांत …था . अजब-गज़ब की खामोशी थी. लेकिन कहीं मनचली चहल-पहल भी थी . चिड़ियाओं की चहक ….मधुर संगीत-सी लगाती . और वो हिरणों की मूक निहारती आँखें हमें आमंत्रित करती लगतीं . लगता – गेंडाओ के झुण्ड का जीप पर चढ़कर पीछा करना कितना रोमांटिक था ….? और जब हमने शेर-सहाव के दर्शन किए थे ….तो परमात्मा को याद किया था …! सच था …सब सच था ….! परमात्मा का रचा-बसा वह संसार – सब का सब सच था…श्रेष्ठ था !!
चांदनी रात का वो मंजर …जब हमें अपनी गोद में बिठा कर …प्रेम का पाठ पढ़ा रहा था ….तो हम समझ रहे थे कि …प्रेमाकुल होने के बाद ही …एकात्म हुई आत्माएं …जुड़ती हैं ! मैंने इस का हाथ पकड़ा था तो बोली थी ,”स्टुपिड” ! और जब इस ने मुझे छुआ था …तो मैंने कहा था , “लुच्ची ” ! फिर हम दोनों हँसे थे . दोनों मिले थे . एकाकार हुए थे . और ……
“अब समझे जिंदगी को …..!” रजत ने विहंस कर कहा था . “क्या शाट दिया है ….?” वह प्रसन्न था . “बाई गॉड ….रुपाली ! नो जोक्स …! तुम्हारा ये ‘नयनाभिराम’ वास्तव में पागल करने वाला है . झूम उठेंगे – दर्शक !” वह कहता ही रहा था . और जब ‘बेईमान’ का क्लाइमेक्स शूट करने हम शिमला पहुंचे थे तो ….उस ने मुझे ख़ास तौर पर सचेत किया था, “निहाल भाई ! बिलीव मी …..! मैंने तुम्हारे ऊपर कहानी को केन्द्रित कर …उम्मीद लगाईं है कि …तुम इसे जी जाओगे ….!!” उस ने मुझे आँखों में देखा था . “इज्ज़त का सवाल है , व्वे !” उस ने मेरी कमर पर हाथ रखा था .
मैं तो चाहता भी यही था कि ‘बेइमान’ नाम और नामा दोनों ही कमाए . मैं तो मानता भी था कि …मेरी ये पहली फिल्म मेरा भविष्य है ! मैं काम से जाना जाऊँगा – नाम से नहीं !!
और सच मानिए कि जब ‘बेइमान’ ने सारे रिकार्ड तोड़े …थे तो मैं पागल होने को हो गया था ! मैं वापस ‘वाइल्ड गेम सेंचुरी’ भाग गया था . वहां एक माह तक पड़ा रहा था …..और मुझे ये ‘लुच्ची’ याद आती रही थी . लेकिन ये ….तो अब दूसरी उड़ान पर थी ! ये लोगों की जुबां पर थी ….सिनेमा घरों में कम …लोगों के ज़हनों में ज्यादा थी ! ये थी ….इस की हवा थी ….और वक्त इस के पंजे मैं बंद था !!
मैं चला – पर कछुए की चाल …और ये उड़ी …परिंदों की तरह ….!!
आज तेईस साल के बाद ….इस ने मुझे लांछित किया है . इस ने कहा है कि …’वाइल्ड गेम सेंचुरी ‘ के सहवास में ….मैंने ……
“लेट्स गेट मैरिड , लुच्ची ….?” तब बड़े ही प्यार से मैंने प्रस्ताव रखा था .
“स्टुपिड …!!” इस ने कहा था और चली गई थी .
आज सिनेमा -जगत में …’निहाल’ एक हस्ती है….और ‘रुपाली’ एक गई-बीती बात ! अब इसे बुरा लगा है . अब आ कर इस ने मुंह खोला है . ‘अशांत …आत्मा …, नहीं ,नहीं ….! मैं इसे कोई नाम न दूंगा ….! मैं बोलूँगा ही नहीं ….!!
……………..
श्रेष्ट साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य ….!!