नेहरू जी की मृत्यु के बाद लावारिस हुआ भारत – यू कैन टेक इट की मुद्रा में पूरे विश्व के सामने आ खड़ा हुआ था।

1962 के युद्ध में परास्त हुआ भारत एक ऐसा साम्राज्य था जिस पर हर किसी की आंख लगी थी। ऐसा ही नहीं था कि विदेशियों के मुंह में पानी आ गया था, यहां देसी सत्ता के भूखे गीदड़ कुर्सी पाने के लिए हाऊ हाऊ की पुकारें लगा रहे थे। साम्राज्यवादी और समाजवादी गुट अब फिराक में थे कि किसी तरह से भारत को अपने गुट में ले लें।

कौन बनेगा देश का प्रधानमंत्री एक ऐसा अहम प्रश्न था जिसने महत्वाकांक्षी कांग्रेसी नेताओं की रातों की नींद उड़ा दी थी। गोष्ठियां हो रही थीं, मशविरे बन रहे थे, षड्यंत्र उठ खड़े हुए थे और अपने तेरे की कृपाण बेरहमी से गले चाक कर रही थी।

के कामराज के हाथों में सत्ता की डोर थी। मुरारजी देसाई का नाम नेताओं की लिस्ट पर सबसे ऊपर था। लेकिन नेताओं के गुट थे, कांग्रेस की विचारधारा थी और थे निजी स्वार्थ जो घर के बर्तनों की तरह आपस में टकरा रहे थे। और कलह पैदा कर रहे थे।

“कुर्सी तो तुम्हें ही मिलनी चाहिए इंदु!” शिखा ने जोर देकर कहा था। “नेहरू जी के बाद तुम्हीं उनकी उत्तराधिकारी हो!” दलील दी थी शिखा ने।

और इंदु की मित्र मंडली ने गुट बना कर इंदु के नाम को हवा में उछाल दिया था।

“तुम्हें अभी अनुभव नहीं है इंदु!” मिसिज पंडित का फोन था। “भइया तो मुझे ही चाहते थे।” वह बताने लगी थीं। “और फिर मेरे बाद तो तुम्हारा ही नम्बर होगा।” वो हंस पड़ी थीं। “मैं तो तुम्हारी मदद ही कर पाऊंगी बेटी।” वह बड़े लाढ़ के साथ बोल रही थीं विजय लक्ष्मी पंडित।

“बिल्ली है! ये छींका जरूर तोड़ेगी इंदु!” साफ शब्दों में कहा था रवीना ने। “बुरा मत मानना पर ये तुम्हारी सगी – किसी की भी सगी नहीं है।”

इंदु चुप थी। उसकी समझ में के कामराज का खेल न आ रहा था।

“चाहे जो हो श्रीमान – हमें मुरारजी भाई नहीं चाहिए!” दत्तात्रेय बोले थे। “कांग्रेस को डुबो देगा ये आदमी!” उनका कहना था।

और लगभग सभी कांग्रेसी मुरारजी देसाई के हक में नहीं थे। वो जानते थे कि उनका धंधा मुरारजी के कुर्सी पाने के बाद चलेगा नहीं। बहुत सारे नेता तो पार्टी ही छोड़ जाएंगे। अब वक्त कमाने का आ गया था इसलिए हर कोई चाहता था कि कोई ऐसा नेता कुर्सी पर बैठ जाए जो ..

“मत लाओ इंदिरा को श्रीमान!” नारी शक्ति की प्रवर्तक नीरा ने विरोध किया था। “वो बेचारी तो गमजदा है। उसे तो तन की सुध नहीं है।” उनका कहना था।

“शास्त्री जी को बना दो न!” विपिन बाबू बोले थे। विपिन बाबू नेहरू जी और शास्त्री जी के बहुत करीब थे। दोनों के साथ हर राय मशविरे में शामिल रहते थे। एक जाने माने ब्यूरोक्रेट थे और उनकी बात में सभी को वजन लगा था। “भले आदमी हैं बेचारे! बुरा तो किसी का करेंगे ही नहीं।” विपिन बाबू ने हंस कर कहा था।

एक बूटी की तरह उन सब ने शास्त्री जी को पा लिया था और पल छिन में उनके नाम पर सहमति बन गई थी। मुरारजी देसाई को लगा था कि सारे कांग्रेसियों ने मिल कर उन्हें जूता मारा था।

सारे के सारे गीदड़ एक सुर में हाऊ हाऊ कर बोल पड़े थे। सब प्रसन्न थे। सब जानते थे कि उनके हिस्से का मांस अब वो अपनी इच्छानुसार खाएंगे ओर सत्ता में रहते हुए कहीं न कहीं अपना दखल जमा लेंगे।

“तुम्हें शास्त्री जी के साथ मिनिस्टर बना रहे हैं बेटी!” के कामराज ने इंदिरा को समझाया था। “सियासत सीख लो, फिर तो सब तुम्हारा है।” उनका वायदा था।

“इनके इरादे नेक नहीं हैं।” शिखा ने चेताया था इंदु को। “तुम .. तुम मेरा मतलब है कि ..”

“मैं इंग्लैंड जा रही हूँ, शिखा!” इंदु का ऐलान था। “कुछ दिन यहां हूँ। फिर तो ..!” इंदु ने ठहर कर शिखा को देखा था। “बेटों के एडमीशन हो जाएं इंग्लैंड में! बस – उसके बाद हम चल पड़ेंगे!”

“हम का मतलब ..?”

“चलो न तुम भी मेरे साथ?” इंदु ने शिखा को निमंत्रण दिया था। “लौट आएंगे जब अपना राज होगा!” इंदु हंस पड़ी थी। “ये चांडाल चौकड़ी ..” रोष था इंदु की आंखों में। “मुझे तो पता था कि यही होगा।” वह कहती रही थी।

“इंदु के इंग्लैंड जाने का मतलब क्या है, शिखर?” शिखा ने आते ही पूछा था। “अपना राज होगा – इसका अर्थ बताओगे?” उसका दूसरा प्रश्न भी था।

“मतलब कि अब की बार पाकिस्तान का हमला होगा!” शिखर ने हंस कर कहा था। “हमें भारत को अब बचाना होगा, शिखा!” शिखर का ऐलान था। “आज से – अभी से कमर कस लो माई डियर!” वह कहता ही रहा था।

शिखा चकित थी। भ्रमित थी और समझ न पा रही थी कि शिखर कौन सी तैयारी की बात कर रहा था।

हॉलीडे ग्रांड में इंदु ने अपनी सहेलियों के साथ अपने मिनिस्टर बनने का जश्न बनाया था। ये पांच सितारा होटल इंदु की एक अलग चॉइस थी। जब भी वो ज्यादा प्रसन्न होती थी तो यहीं चली आती थी। आज वह अन्य तरह से प्रफुल्लित थी।

“शास्त्री जी तो देव तुल्य हैं।” शिखा ने इंदु का मूड भांपना चाहा था। “एक दम गांधी जी की ट्रू कॉपी हैं!” शिखा मुसकुरा रही थी।

अन्य सहेलियां भी शिखा की राय से सहमत हुई लगी थीं। शास्त्री जी का पी एम बनना देश वासियों को भला लगा था। शास्त्री जी के व्यक्तित्व में कोई खोट न था। वो एक सच्चे देश भक्त और भले हिन्दुस्तानी पुरुष थे।

“ही इज ए क्लासिकल जोकर!” इंदु अचानक ही बोल पड़ी थी। वो बहुत जोरों से हंसी थी और कई पलों तक हंसती रही थी। “मैं गई थी समस्या लेकर पी एम के पास!” इंदु बताने लगी थी। “मैंने पूछा क्या संदेश दें लोगों को महंगाई के बारे? देश भूखा मर रहा है .. और ..” मैंने ठहर कर उनका मुख मंडल पढ़ा था।

“आप ही बताइये न!” विनम्रता पूर्वक बोले थे पी एम। “आप मंत्री हैं। आप सुझाएं कोई विकल्प!” उनका आग्रह था। “सोचो यार!” इंदु फिर से हंस पड़ी थी।

सच था। शास्त्री जी के पैर उखड़ रहे थे। उन्हें कोई भी सहारा न दे रहा था। उनका उपहास किया जा रहा था। उनकी कमजोरियों का गुण गान हो रहा था। मजाक बनाया जा रहा था उनकी शिष्टता और शिष्टाचार का।

पाकिस्तान ने रण ऑफ कच्छ में हमला बोल दिया था।

“विपिन जी!” शास्त्री जी की आवाज भारी थी। उनका गला भर आया था। “मैं कल ही इस्तीफा दे दूंगा।” उन्होंने कहा था। “क्या फायदा! यहां मेरी कोई बात सुनकर राजी नहीं है। जिसे देखो वही ..” शास्त्री जी एक अजीब वेदना से भर आए थे।

“आप एल के झा को बुलाएं और अलग से एक ऑफिस बना कर बिठा दें!” विपिन बाबू बताने लगे थे। “पी एम ओ का ये दफ्तर सारा काम काज संभालेगा! जो आए इनसे मिले। आप मत मिलिए किसी से भी। झा साहब इन सब की नस नस पहचानते हैं! आपसे नहीं होगा पर झा साहब ..” तनिक हंसे थे विपिन बाबू। “यों छोड़कर भागना कोई अच्छा लगेगा क्या?” उनका उलाहना था।

“कश्मीर में आतंकवादी घुस आए हैं झा साहब!” नई समस्या थी। भ्रामक सूचनाएं थीं। सब डरे हुए थे। कश्मीर में उपद्रव होना तय था। शेख अब्दुल्ला भी मौका न छोड़ना चाहता था। “बुलाओ चीफ साहब को! पी एम से आकर मिलें!” झा साहब ने निर्देश दिए थे।

और जब पूरा जमावड़ा इकट्ठा हुआ था तो झा साहब पी एम से मिलने अकेले गए थे। लौट कर उन्होंने पी एम के आदेश कह सुनाए थे।

“अब्दुल्ला को जेल में डाल दो!” झा साहब ने सीधे सीधे कहा था। “आप अपने हिसाब से कंट्रोल करें जे एंड के!” चीफ के लिए आदेश थे। “और अगर ..” और झा साहब ने बात अधूरी छोड़ दी थी। “बहुत नाराज हैं पी एम साहब!” उन्होंने अंत में कहा था।

बात पटरी पर आ गई थी। शास्त्री जी को बड़ी राहत मिली थी। अब वो अकेले में सोच समझ सकते थे।

“आर एस एस और विद्यार्थी परिषद दोनों को चेताएं शिखा कि इम्तहान की घड़ी आने वाली है!” शिखर बता रहा था। “शास्त्री जी का हाथ पकड़ना होगा। वो हिन्दुओं के पहले पी एम हैं। ये हमारे लिए सुनहरा अवसर है – जान लड़ा कर लड़ेंगे हम!” शिखर भावुक था। “हारने न देंगे हिन्दुस्तान को!” उसने नारा जैसा दिया था।

“लेकिन हुआ क्या है शिखर?” शिखा ने आश्चर्य से पूछा था।

“हमला! आक्रमण!” शिखर बताने लगा था। “पाकिस्तान का आक्रमण आ रहा है शिखा। कश्मीर में पहले से ही तैयारियां हैं। अमेरिका और ब्रिटेन दोनों शामिल हैं षड्यंत्र में। कमजोर भारत को अब सबल पाकिस्तान हथिया लेगा और ..”

“क्या ..?” चौंक पड़ी थी शिखा।

“ये उनका मानना है मेरा नहीं!” शिखर कहने लगा था। “लेकिन शास्त्री जी का हाथ अगर हम न पकड़ेंगे तो .. हम हार जाएंगे।”

और जब शास्त्री जी ने जय जवान और जय किसान का नारा दिया था तो देश उठ खड़ा हुआ था। जनरल जे एन चौधरी ने भी पाकिस्तान को अपनी भाषा में उत्तर दिया था और उनके सारे मंसूबे ढा दिए थे। अमेरिका और ब्रिटेन दोनों सकते में आ गए थे। शास्त्री से उन्हें इतनी उम्मीद न थी।

लेकिन इंदु अब इंग्लैंड न जा रही थी।

“क्यों शिखर? अब ये इंग्लैंड क्यों नहीं जा रही? बेटे तो गए लेकिन ये ..”

“आई एम स्मैलिंग दि रैट!” साफ कहा था शिखर ने। “कोई अनहोनी न हो जाए! लैट्स कीप अवर फिंगर्स क्रास्ड!”

लेकिन हुआ वही था जो नियति को मंजूर था।

ताशकंद में शास्त्री जी की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी – समझौते के फौरन बाद।

“षड्यंत्र है! इट्स ए प्लान्ड मर्डर!” शिखर ने कहा था।

शिखा तो कुछ बोल ही न पाई थी।

मेजर कृपाल वर्मा

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