“किस उपलक्ष में है ये पार्टी?” प्रदीप ने पूछा है।
“तुम्हारा बिहारी बबुआ – विक्रांत बॉलीवुड छोड़ कर भाग गया है।” नदीम ने बताया था। “वॉट ए रिलीफ़ यार!” उसने एक लम्बी उच्छवास छोड़ी है। “इस आदमी ने तो आतंक ही मचा दिया था।” नदीम बताने लगा था। “नामों को लेकर ही नामाकूल उलझ पड़ा।” नदीम की आंखों में आश्चर्य था। “अब तुम प्रदीप हो ओर मैं हूँ नदीम! तो क्या फर्क पड़ता है, भाई?” वह हंस गया था। “पार्टी में आना जरूर ये मेरी इल्तिजा है!” वह बड़े ही विनम्र भाव से आग्रह कर रहा था।
“अवश्य आऊंगा नदीम भाई!” प्रदीप ने सहज स्वीकार में कहा था। “मैं नहीं मानता ये सब बातें!” वह कह रहा था। “वी ऑल आर ए फिल्म फ्रेटरनिटी!” उसने बड़े ही दार्शनिक अंदाज में कहा था।
और समूचे बॉलीवुड के कलाकारों और कामगारों ने मान लिया था कि विक्रांत का यों बम्बई छोड़ कर भाग जाना एक ऐसा शुभ था जिसका जश्न तो उन्हें मनाना ही चाहिये था।
बम्बई से बहुत दूर खुली बीच पर पार्टी का आयोजन मनोज और मौलाना मिल कर कर रहे थे। पार्टी को रात भर चलना था – एक अत्याधुनिक बहती बयार की तरह जहां संसार का हर चाहा शौक मौजूद होना था। मेहमानों की हर चाहत का आदर होना था और मेल मुलाकातें एक टेंशन फ्री वातावरण में होनी थीं। स्वच्छंद और स्वेच्छा के साम्राज्य में प्रेम मिलन होना था ओर जश्न जुड़ना था अपनों के साथ!
“ये लो – ये तो आ गई?” मोहिनी ने रोमी को कोहनी मार कर इशारे से आती पुप्पुल रैकर को दिखाया था। पुप्पुल रैकर एक फायर फ्लाई की तरह सिजिलती, फिरकती आगे बढ़ रही थी। “अब फसाएगी किसी को।” मोहिनी ने धीमे से कहा था।
“चल, चलकर पकड़ते हैं दारी को!” रोमी ने शरारती स्वर में कहा था। “मन है आज यार खूब रंग लिया जाये।” रोमी कह रही थी। “बोर हो गये हैं यार! महीनों से कोई काम ही नहीं मिला।” उसका उलाहना था।
दोनों ने आगे बढ़ कर पुप्पुल रैकर को घेरा था। पुप्पुल ने उन दोनों का स्वागत स्माइल देकर किया था। उसे लगा था कि पतंगा स्वयं चलकर जान देने चला आ रहा था।
“यू आर लुकिंग ग्रेट आंटी!” रोमी ने चुन कर संवाद कहा था।
“आप को देख कर तो आंखें हरी हो जाती हैं!” मोहिनी ने भी वार किया था।
पुप्पुल रैकर ने उन दोनों को चालाक निगाहों से देखा था।
“अब क्या है रे!” तनिक आह भर कर कहा था रैकर ने। “जब हम जवान थे तब हम भी महान थे।” वह हंसी थी। “कसम ले लो मित्रों हमारे अनगिनत आशिक हमारे आस पास ..”
उमंग और उल्लास के उस आनंद भरे माहोल में हर कोई बतियाने लगा था। दो दो चार चार के समूहों में बंटे छंटे मेहमान मौज उड़ा रहे थे। खाना पीना सब का उन की इच्छा अनुसार चल रहा था और कोरा मंडी का वही बहुचर्चित गीत बज रहा था – हुर्रा हुर्रा हू हू! कुर्रा कुर्रा कू कू!
एक से बड़ी एक हस्ती का आगमन हो चुका था। अब एक दूसरे को पाने खोने का क्रम चल पड़ा था। हर कोई अपने मन मीत को पाने के लिए बे करार था। किसी ने कुछ पा लिया था तो कोई अभी भी तलाश में भटक रहा था। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जो भटकने के खिलाफ थे और खड़े थे।
“अब ज्यादा वक्त नहीं लगेगा नबी साहब!” युसुफ खान चुपके से बता रहा था। “गजवा ए हिन्द अब होकर रहेगा!” उसने आश्वासन दिया था। “इस बार हिन्दुस्तान हमारा होगा!” वह हंस पड़ा था।
“हम शासक हैं सर!” रहीम ने छाती ठोक कर कहा था। “हम तो राज करने के हकदार हैं।” वह बता रहा था। “हमारे पुरखों ने सियासतें चलाई थीं। ये हिन्दू भाई तो पैदाइशी गुलाम हैं! इन्हें आप आज राजा बना दो तो ये कल तुरंत जूते उतार कर जमीन पर बैठ जाएंगे!” उसने कहा था।
एक जोर का ठहाका लगा था। सुलेमान भी हंसे थे जमा लोगों के साथ। उनका गिरोह और भी बड़ा हो गया था। सभी ने जैसे सूंघ लिया था कि वहां सियासत दानों का टोल हिन्दुस्तान का सौदा कर रहा था।
“कहां खोए हो कासिम भाई?” अकेले भटकते रमेश दत्त को नूरी ने पकड़ लिया था।
रमेश दत्त ने मुड़ कर देखा था। जाल साज नूरी सामने खड़ा था। बहुत ही चालू पुर्जा था ये नूरी। दत्त साहब जानते थे।
“लड़की है कासिम भाई!” नूरी सीधा मुद्दे पर आ गया था। “हिन्दू है ओर नेहा से भी इक्कीस है!” वह मुसकुराया था। “कोरा मंडी में काम दे दो – कोई भी काम और जो चाहे सो ..”
“काम नहीं है कोरा मंडी में!” बेबाक से बोले थे दत्त साहब और नूरी को अकेला छोड़ चले गये थे। उन्हें अभी अभी नेहा याद हो आई थी और उन्हें अपनी नाराजगी का सबब भी समझ आ गया था। उनके मन मयूर ने आज फिर इसी पार्टी में खो गई नेहा को पुकारा था ओर ..
एक ओर खुशनुमा हुआ माहोल उन्हें पुकार रहा था तो दूसरी ओर उनका खिन्न हुआ मन विरह गाने लगा था।
मेहमानों का एक बड़ा हुजूम के साहूकार के इर्द गिर्द आकर सिमिट गया था।
के साहूकार – माने करीम साहूकार बॉलीवुड का आज का चमकता सितारा था। लगातार तीन फिल्मों में प्रेम गीत गाता के साहूकार सफलता के पहले सोपान पर था। रमेश दत्त को याद हो आया था जब इसी साहूकार को उन्होंने सड़क पर जूतियां चटकाते पकड़ा था। जब धो मांज कर इसे खड़ा किया था तो ये तीन बार गिरा था – उन्हें आज भी याद था। लेकिन आज एक से एक बड़ा फिल्म निर्माता मिन्नतें करता था साहूकार की! पब्लिक भी पागलों की तरह टूट कर पड़ती थी साहूकार की फिल्म देखने। आज बेशुमार दौलत का मालिक था ये साहूकार और .. आज ..
“तुम्हारा रोहित कुमार तो बेकार हो गया प्रदीप भाई!” नदीम खुश खुश बताने लगा था। “के साहूकार को देखो! कल की ही तो बात है .. जब ये ..”
“रमेश दत्त ने उठा दिया इसे!” प्रदीप बताने लगा था।
“यूं तो विक्रांत को भी उठाया था!” नदीम ने तुरंत कहा था। “लेकिन निकला निरा नमक हराम ये नामाकूल!” कोसा था नदीम ने। “बुरा न मानना प्रदीप भाई! जितने भी तुम्हारे ये यूपीआइट और बिहारी बबुए हैं – सब के सब हरामखोर हैं! बदनाम कर दिया है इन्होंने पेशे को! क्यों देगा कोई काम ..”
“रोहित कुमार को तो काम मिलता है!” प्रदीप ने पक्ष संभाला था।
“तभी तो गेस्ट हाऊस में पड़ा रहता है। और इस साहूकार को भी देखो! ग्यारह मंजिला मकान बनाया है और खंडाला में इसका फार्म हाऊस देख लोगे तो बेहोश हो जाओगे भाई जान!” हंस रहा था नदीम।
“मुसलमान है इसलिए ..!” प्रदीप का मन हुआ था कि सच्चाई बता दे नदीम को। लेकिन वो डर गया था। “अपनी अपनी किस्मत है भाई जी!” उसने बड़े ही विनम्र भाव से उत्तर में कह दिया था।
निर्माता निर्देशक रविकांत को लोगों ने देखा था तो भीड़ जमा हो गई थी!
“आप ने भगा दिया विक्रांत को – लेकिन उसका नाम तो ऑस्कर के लिए चला गया?” गुंजन श्रीवास्तव ने सीधा वार किया था रविकांत पर। “गलती की है आपने सर!” गुंजन बताने लगा था।
“हमारे पास तो वह काम मांगने आया ही नहीं!” रविकांत ने सफेद झूठ बोला था। “हम तो कलाकारों की कद्र करते हैं गुंजन भाई!” रविकांत हंस पड़ा था। “रोहित कुमार को हमने ..”
“गधे पर झूल आप ही डालते हो!” नदीम ने व्यंग किया था।
जोरों का ठहाका लगा था। रविकांत नर्वस हो गया था।
“दत्त साहब आये हैं!” किसी ने भीड़ में से के साहूकार को खबरदार किया था।
भीड़ दाएं बाएं हुई थी तो रमेश दत्त साहूकार सामने एक बारगी उजागर हुए थे। उदास लगे थे दत्त साहब। उनकी आंखों में घोर निराशा भरी थी। के साहूकार को याद हो आया था कि मांगने के बाद भी रमेश दत्त ने उसे कोरा मंडी में नेहा के साथ साइन नहीं किया था। कितना मन था उसका कि उन तीनों रोमांटिक गानों पर वह नेहा के साथ झूमे, गाये और रिझाए सारे संसार को! लेकिन दत्त का वो नामुराद साहबज़ादा सलीम करीम साहूकार से भी ज्यादा ..
खट्टी खट्टी एक वितृष्णा साहूकार के मुंह में भर आई थी।
सामना होने पर आज साहूकार ने पब्लिक के सामने रमेश दत्त के पैरों को हाथ नहीं लगाया था। रमेश दत्त को भी एहसास था कि साहूकार उससे कटा हुआ था और वह इसका कारण भी जानता था।
“सुना है दत्त साहब कि विक्रांत नेहा को नसा कर ले भागा?” साहूकार ने सीधा प्रश्न पूछा था। उसके चेहरे पर एक चुहल धरी थी। जमा लोग भी खुन खुन कर हंसे थे।
रमेश दत्त बुरी तरह से सुलग उठा था।
“सड़ाक!” रमेश दत्त ने के साहूकार के मुंह पर थप्पड़ दे मारा था। जमा लोगों ने आश्चर्य से इस घटना को देखा था लेकिन बोला कोई नहीं था!
“गधा कहीं का!” रमेश दत्त ने जोरों से कहा था।
रमेश दत्त पार्टी छोड़कर चले गये थे।
सुबह होने से पहले ही बॉलीवुड में शोर मच गया था कि रमेश दत्त ने ..
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