.. देखो इसे साला चोर .. देखो इसे साला रंडी का भड़ुआ और देखो इसे ये अकर्मण्य और समाज का घाती है। निकालो इसे बाहर .. मारो इसे जूतों से .. ठूंस दो जेल में .. भेजो काला पानी .. निकालो इसे गधे पर बिठा कर! इनकी सवारी ..!” एक लंबी कतार है जिसमें काला मुंह किए गधों पर सवार सारे समाज के कलंकित अंग मुंह काला किए भागते जा रहे हैं। शहर की खलकत इकट्ठी हो कर पत्थर फेंक रही है, इनपर थूक रही है और इन्हें दुत्कार रही है।

“तभी तो आएगा सुराज – जब ये असुर चले जाएंगे!” मैंने गहरी निश्वास छोड़ कर अपने आप से कहा है।

अचानक एक और असुर मुझे याद हो आया है। कार स्टार्ट कर मैं उसी के बंगले पर चल पड़ा हूँ। मन में एक बात जमी है – एक बार पत्थर तले दबी उंगली निकाल लो। फिर तो देख लूंगा।

“रात गए तकलीफ देने की माफी चाहता हूँ, अंकल। पर ..”

“मैं जानता हूँ बेटे कि तुम मुसीबत में हो! खैर, बैठो!”

मैं वरिष्ठ पुलिस अफसर के बंगले में हूँ। लगा है यहां शायद कानून का पहरा है और पल छिन में मैं बंदी बनने से बचा रहूँगा!

“अंकल! अबकी बार निकाल लो, बस!”

“पर दलीप बेटे ..”

“ये लो ब्लेंक चेक अंकल! साइन कर दिया है। एमाउंट आप भर लेना!”

“इसकी जरूरत नहीं बेटे! तुम्हारे बाबा से गहरे ताल्लुक होने के बाद मैं खुद शर्मिंदा हूँ कि ..”

“लेकिन क्यों अंकल?”

“दवाब ऊपर से है बेटे!”

“किसका?”

“नवीन और उसके बाबूजी का!”

“ओह! फिर तो जेल जाना ही पड़ेगा!” मैंने जैसे सारांश जान कर घोषणा कर दी है।

“वकील और शायद कानून बचा लें तो ..?”

“वकील ..? कानून ..? हाहाहा! अंकल, अब मैं खुद बच निकलूंगा!” कह कर मैं उठ खड़ा हुआ हूँ।

लाचार वृद्ध ने मुझे अति लज्जित आंखों से घूरा है। लगता है जरूर बाबा के लिए उसके मन में प्यार रहा होगा! अचानक बाबा ही कहीं से खड़े-खड़े मुझे निर्देश दे रहे हैं – घबराओ मत बेटे! ये तो मामूली घटाटोप है! आया है तो जाएगा जरूर। पूरी रात गंवा कर मैं विफल हुआ वापस लौटा हूँ। पर लग रहा है मेरा आत्मविश्वास एक घर और ऊपर हो गया है। डर और भय एक बात में बंध गए हैं – जेल ही तो जाना है! बस तो कितनी महान आत्माओं ने उस मंदिर को नहीं देखा?

मेरा मन और आत्मा किसी अनिश्चित से भविष्य से लड़ भिड़ कर परास्त लौटे हैं। मैं किसी त्रासद नाटक के पात्र जैसा अति दुखांत अनिर्णय करके लौटा लग रहा हूँ। अंतर में एक अपार संतोष छाता जा रहा है और लग रहा है कि हर इंसान खुशियों में भी गम तलाशता रहता है और कुछ जूझने झपटने के लिए ढूंढता रहता है ताकि वो अपनी सामर्थ्य तौल ले, अपने आप को परख कर देख ले और एक संपूर्णता जैसे भाव पिला कर अंदर के अधकचरे इंसान को जिला ले!

मस्तिष्क अवसन्न हुआ जा रहा है और हर कामना और काम मुझसे दूर हटता जा रहा है। मैं अपने आप से समझौता कर पाया हूं!

“द हैल विद इट!” कह कर मैंने अपने अस्त्र शस्त्र खोल कर सीज फायर के चिन्हों में परिवर्तित कर दिए हैं और मैं घोड़े बेच कर सो गया हूँ।

“हैलो! मुक्ति ..?” मैंने पता नहीं कब से बजते टेलीफोन को उठाया है।

“सर! वी के! हां यस-यस आ रहे हैं!” कह कर फोन कट गया है।

गहरी निद्रा देवी की गोद ने मुझे मां से तनिक ही घटिया प्यार दिया है पर जो भी दिया है मुझे स्वस्थ करके छोड़ दिया है। सर का भारी पन और आंखों की थकान सभी गायब लगे हैं। अंदर से उठ कर आया दलीप कह रहा है – हंस बे! तू मर्द है हंसता ही अच्छा लगता है, रोता नहीं!

“हैलो वी के साहब, आइए!” मैंने उच्च स्वरों में शुभ आगमन जैसी कुछ बेतुकी घोषणा की है जिसका संदर्भ ढूंढ निकालना वी के के लिए दूभर हो गया है।

एक लम्हे के लिए हतप्रभ हुआ मुक्ति मुझे घूरता रह गया है। उसकी आंखों में भरे प्रश्न वाचक चिन्ह पढ़ मैं खिलखिला कर हंस पड़ा हूँ।

“पागल नहीं हुआ हूँ यार! यों मत घूर मुझे!” मैंने मजाक जैसा ही किया है।

“दर असल मिस्टर दलीप आप से ..”

“गलत स्टेटमेंट दिया है, सबूत चाहिए, कानून अंधा है और हम सब बहरे और गूंगे हैं – यही सब न? बैठ-बैठ! वी के, ये सब पुराना है। बोल, क्या पिएगा?” मैंने बिस्तर में पड़े-पड़े ही पूछा है।

“सर .. आप ..” वी के झेंप सा गया है।

“ओके! मुक्ति, तीन कॉफी मंगवाओ!” मैंने ही हुक्म दिया है जो अब तक मेरी आदत बन चुका है।

“अब बोल! केस कहां तक संगीन हो गया है?” मैंने बड़े ही हल्के मन से पूछा है।

मुक्ति अभी भी किसी दूसरे विकल्प से जूझ रहा है। मेरे चेहरे पर उदासी या चिंता न पा कर वो असमंजस में पड़ गया है। मैं जानता हूँ कि वो सोच रहा है कि देहली जा कर मैं मोर्चा जीत कर लौटा हूँ।

“जीत की बेवा और गोपाल की बीबी आप के खिलाफ गवाही देंगी!” वी के ने बताया है।

“और ..?” मैंने इस तरह पूछा है जैसे कुछ हुआ ही न हो।

“आप का नौकर मान सिंह पुलिस को बता चुका है कि उसने अपनी आंखों से ..”

“मुझे खून करते देखा है? हाहाहा! क्या बदतमीजी है वी के?”

मैं इस तरह हंसा हूँ जिस तरह कोई खून और पानी शब्दों के अर्थ न समझ कर हंस पड़े।

Major krapal verma

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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