अपने जीवन में मैंने अनायास ही काम के क्षण बढ़ा देने का निर्णय कर लिया है। एक दिन जब मैं मिल के मध्य में स्थित प्रयोगशाला में पहुंचा हूँ तो डॉक्टर पुनीत ने मुझे बताया है – हमने नए फॉरमूले तलाश करने की खोज में कदम उठाए हैं।

“सबूत ..?” मैंने जैसे डॉक्टर पुनीत को निरुत्तर करना चाहा है।

“देखिए! ये है नए जमाने की चहेती लिपस्टिक!”

“इसके गुण धर्म?”

“सबसे पहला गुण है – नैचुरल शेड। लगाने के बाद पता नहीं चलेगा कि आपने होंठों को रचाया है!”

“और कुछ?”

“होंठ काले नहीं पड़ते तथा लगाने के बाद पिपरमिंट जैसा सुखद आनंद भी मिलता है।”

“लाभ ..?”

“सर! देश को छोड़ कर इसकी विदेश में भी खपत शुरू हो गई है।”

“इसका श्रेय किसको है?”

“सर! डॉक्टर मुखर्जी को!”

“आप आ कर मुझसे बात करें – हम एक अवार्ड घोषित करेंगे और हां डॉक्टर मुखर्जी से कह दो वो हमसे मिलें!”

“थैंक यू सर!”

मेरा सीना लगा है दो चार इंच यूं ही फूल गया हो। देश में टैलेंट की कमी नहीं है, काम करने वालों का अभाव नहीं है, अगर जरूरत है तो सिर्फ लोगों को उभारने की, मौका देने की और बाद में सफलता को जिंदा रख कर काम करने वालों के मुंह मीठे कराने की है।

“तुम्हें नए फॉरमूले के बारे में पता है?” मैंने मुक्ति से पूछा है।

“जी हां, सर! लेकिन हमारा वायदा था कि आपको ये शुभ समाचार डॉक्टर पुनीत देंगे। होनहार आदमी है सर।”

“और ये डॉक्टर मुखर्जी?”

“एक बहुत ही इंटैलीजेंट साइंटिस्ट है!”

“लगता है .. काम ..?”

“यस सर! अबकी बार हमें करोड़ों का मुनाफा हो रहा है!”

“दैट्स फाइन! मुझे गर्व है मुक्ति कि ..”

“थैंक यू सर! आपका एक कॉल था – मिस्टर प्रदीप बोल रहे थे!”

“ओ गॉड! मुझे तो जाना था? खैर अब चला! तुम संभालना मुक्ति- कोई बात हो तो! खैर मैं भी आ जाऊंगा!” कहकर मैंने अपने खोए सपने को टटोला है!

सोफी से कहूँगा, अपनी सफलता के बारे बताऊंगा! अचानक मम्मी का दिया आशीर्वाद और बाबा ..” मैं उलट पलट कर अपने आप पर जैसे प्यार करता रहा हूँ ताकि सोफी की बर्फानी तहें पार करके अंदर जा पहुंचूं!

मैंने एक-एक आइटम को संभाल कर रकसैक में पैक किया है। कुछ हिप्पियों जैसे वस्त्र और आचरण अनभोर में गांठ बांध लिए हैं। लगा है मैं एक चिड़िया हूँ जो मुक्तिबोध के पिंजरे से कुछ दिन की आजादी मोल खरीद कर भाग रहा हूँ। मन ही मन कसम खाई है कि ये दिन सोफी के साथ गुजारूंगा। तन से मन से और कर्म से सिर्फ सोफी का होकर जीऊंगा। क्या जीऊंगा .. ये सोफी पर छोड़ दूंगा – मेरी सोच है।

लंबी यात्रा के बाद मैं टीक के सघन जंगल पार कर, हींस के बिरों से गुजर कर और वन आच्छादित पहाड़ियों को चिढ़ाता गोरे गांव पहुंचा हूँ। मल्लप्रभा नदी के नीचे कगार और उस पर फैला कछार, सभी को देख कर मन में एक सिहरन सी जा बसी है। एक दम तपोवन सा स्थान है जो प्रकृति की अनुपम देन सा लगा है।

“कैसा लगा दलीप?” प्रदीप ने स्वागत कर पूछा है।

“कैसा चल रहा है?” मैंने यूं ही उपचार के तौर पर पूछा है।

“काफी जोश खरोश है। फैशन जो है!” प्रदीप हंसा है।

मेरी आंखें खोज में स्नेह यात्रा के खड़े दरवाजे से लेकर दूर तक जा चुकी हैं। हर किसी को निरख परख चुकी है और कई बार निराश हो कर भी वापस नहीं लौटी है। मैं तनिक हताश सा लगा हूँ। मेरी उमंग ठंडी सी पड़ने लगी है। उतरते ज्वार को प्रदीप ने देख लिया है।

“आप के लिए कैरिज है – आराम कीजिए!” प्रदीप ने कहा है।

एक अधेड़ उम्र वाला युवक जो मुझे खोज पूर्ण नजरों से खाता रहा है – मुझे कैरिज तक ले जाने को आतुर है। मैंने अपना रकसैक पहन लिया है और चल पड़ा हूँ।

“आप से हमें निरंतर प्रेरणा मिलती है। अखबार में, कॉलेज पत्रिकाओं में लेख और .. आप की मिलों की प्रगति ..” वह कहता रहा है।

“तुम कैसे जानते हो?” एक बेजान सा सवाल मैंने पूछा है ताकि मन को भावुकता की झंडी न भा जाए।

भावनाओं से खेलना, प्रेम प्रलाप में निराशा और आशा पर बैठ कर तार जोड़ देना गंवारू लगता है। है तो कोरा पागलपन लेकिन मैं इसे जी रहा हूँ। यों क्या-क्या करो। आ गई हो, कैरिज में हो या अज्ञात घर में। मन में बेसब्री है और चाह पाजी है। वही आक्रोश है जो अब मन में भरता जा रहा है।

“कैरिज हम लोगों ने आप के लिए स्पैश्यली तैयार किया है।” वह युवक बोला है।

“क्यों?”

“आप युवा पीढ़ी के अभिभावक हैं – सच्चे पथ प्रदर्शक हैं!” उस युवक की आंखों में अजीब से इस्फुलिंग भरते मैं देखता रहा हूँ।

लगता है – चिनगारी सुलग रही है, सच्चाई उभर रही है और एक चाह – अपने को कुछ बनाने की और देश को बचाने की बढ़ रही है।

“ज्यादा तारीफ मत करो भइया! वरना तो ..” मैंने सपाट से शब्दों में मन की पूरी निराशा भर कर कहा है।

“आप अनूठे हैं!” कह कर वह चला गया है।

ठंडे हुए मन में इतने प्रशंसक वाक्य और कोई गर्मी नहीं ला पाते हैं। काश! अगर वो आ जाती तो .. ये कैरिज ..?

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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