“अगर बताऊं तो आप हंसेंगे!”

“नहीं! बताओ!” मैंने आग्रह किया है।

“चिड़िया फांसना सहज है।” कह कर मुक्तिबोध तनिक लजा गया है।

मैं अट्टहास की हंसी हंस गया हूँ। लगा है मुक्तिबोध मेरे सामने ऊंचाइयों से गिर कर फर्श पर आ पड़ा है।

“आम हिन्दुस्तानी युवक की हॉबी है! एनीवे – कोई फंसी?” मैंने मजाक को लंबा किया है। मैं मुक्ति के ऊपर खुल कर हंस रहा हूँ – ये जान कर भी कि ये बुरी बात है। किसी अज्ञात कलुषित में मैं लिपटता जा रहा हूँ।

“सर! मैं असली चिड़ियाओं की बात कर रहा हूँ।” मुक्ति ने बड़ी ही कठिनाई से इस वाक्य को मेरी ओर ठेला है।

“मैं भी कौन नकली चिड़ियाओं की बात पूछ रहा हूँ!” मैं अभी भी हंसे जा रहा हूँ। “चलो बताओ! है तो कोई ..?”

“सर मेरा मतलब बर्ड वॉचिंग से था। अब तक मेरे पास कोई इक्कीस चिड़िया हैं। आप देखोगे तो ..”

मुक्ति ने जैसे औपचारिकता का सहारा लेकर मेरे मुंह पर तमाचा मारा हो। वह अब भी आहत लग रहा है। शायद अपनी बात की बेकदरी पर क्षुब्द है।

“ओ रियली ..?” इस बार मैं चौंक गया हूँ।

“यस सर! यहां के जंगल में अगर आप खोजें तो संसार की बहुत ही अद्भुत किस्में मिल जाती हैं।”

“लेकिन इससे ..?”

“में एक किताब लिख रहा हूँ। इसमें इन चिड़ियाओं के फोटो और उनके विवरण लिख कर ..”

“गुड! गुड!” कह कर मैंने जैसे बात पर पूर्ण विराम लगा दिया है। “शादी क्यों नहीं करते? यों समय नष्ट करना ..?”

“ये समय नष्ट करना नहीं है सर। इसमें स्वर्गीय आनंद आता है।”

“लेकिन शादी ..?”

“अभी नहीं सर। शादी के बाद ..”

“आनंद नहीं आएगा?” मैंने गहराई तक कुरेदने की कसम सी खा ली है।

“कह नहीं सकता पर इतना जानता हूँ कि अपनी मंजिल का बड़ा हिस्सा शादी से पहले तय कर लेना चाहता हूँ!”

“क्यों?”

“क्योंकि इससे बल मिलता रहता है। एक चाह जिंदा रह कर प्रेरणा देती रहती है जिससे जीवन ठहरता नहीं है।”

“और शादी के बाद?”

“शादी के बाद एक विश्राम बिंदु की आवृत्ति होती है जहां राही पल भर ठहरना बुरा नहीं मानता!” मुक्तिबोध तनिक हंस गया है।

“यानी कि अकर्मण्यता का ढलान शुरू हो जाता है?”

“मेरे विचार में – हां!” मुक्तिबोध ने बात पूरी कर दी है।

मुझे लगा है – मुक्तिबोध ने अपने जीवन का हर पल प्लान किया हुआ है। उसके पास निढाले के लिए कोई गुंजाइश नहीं है और न कोई गुल गफाड़ा ही वह झेल सकता है। उसे स्वर्गीय आनंद सांसारिक आनंद से ज्यादा प्यारा है और सबसे बढ़कर प्यारा है – काम! शादी को मुक्ति पैसे या आमदनी की तराजू पर न तोल कर एक दुनियादारी मानता है – जिसे निभाना अनिवार्य तो है पर आदमी कब उसे भोगे – ये चुना जा सकता है। लंबे जीवन के धरातल पर ये विश्राम बिंदु अंकित किए जा सकते हैं। जीवन, शादी, औरत, सेक्स और धन से उठ कर कुछ और भी है – मैं यही समझ पाया हूँ।

“तुम्हारे टेस्ट बहुत हाई हैं!” मैंने वास्तविकता उगली है। मैं अब भी मुक्ति से ईर्ष्या नहीं कर पा रहा हूँ।

“थैंक यू सर। आज कल वैसे ..”

“कदर नहीं ..?” मैंने वाक्य पूरा किया है।

“जी!” मुक्ति ने तनिक हंस कर हां भरी है।

“मुक्ति ..?” चाय की चुस्की लेते-लेते जैसे मैं किसी निर्णय पर पहुंच गया हूँ।

“सर!”

“मेरे लिए कल तक डांगरी बन जानी चाहिए!” कड़क आवाज में मैंने हुक्म दिया है।

“सर ..?” अब मुक्ति चौंका है।

“कल से अपनी भी ट्रेनिंग शुरू।” मैंने जैसे उपसंहार को पहले ही अध्याय में जोड़ दिया हो – बात समाप्त कर दी है।

“अमेरिका ..?”

“जाऊंगा यार! लेकिन कल तो नहीं जा रहा हूँ। शुभ काम में ..”

“ओके सर – ये शुभ काम हो जाएगा।” मुक्ति किसी विजय गर्व से भर गया है।

मुक्ति के जाने के बाद मैं दूर जंगल में देखता रहा हूँ। उछलती फुदकती चिड़ियाओं के क्रिया कलापों से एक स्वर्गीय आनंद चल कर मेरे मन में भरता जा रहा है। धरातल पर लंबी लंबी लकीरें खिंची हैं। लगा है ये हिन्दुस्तान का उज्ज्वल भविष्य है जो घट रहा है। बढ़ रहा है – तिल तिल! ज्यों ज्यों लकीरें लंबी हो रही हैं मुक्ति इन लकीरों को समेट रहा है और अन्य लकीरें साथ में जुड़ती जा रही हैं – भीड़ उमड़ती जा रही है। कितने ही सबल चारित्रिक ऊंचाइयों से आयुक्त पुरुष हैं – धन को ढूंढ रहे हैं, स्वार्थ पर थूक रहे हैं, अकर्मण्यता को दुत्कारते कार्य रत ये तिरंगा हाथ में उठाए इन लकीरों को रसातल तक गहरी दाग देंगे! एक नींव जमा कर विजय गर्व के गोले दागेंगे और मैं ..?

“इन सबसे आगे जुतूंगा। डांगरी पहन कर अपने कंधों पर मैं भी एक रगड़ को महसूसूंगा!” मैं दीवारों से कह रहा हूँ।

अतीत के दृश्य छपे हैं। लगा है – नादानी थी। मैं बुरा कभी नहीं था। मैंने बुराई कभी नहीं चाही। लेकिन ..! मन अतीत के मात्र चित्र देख कर बिदकने लगा है। मैं सामान्य तरह से उठ कर चला हूँ। मुक्तिबोध की चिड़िया देखने की जिज्ञासा बढ़ गई है। मैं मन ही मन तय कर गया हूँ कि शाम को मुक्ति के पास जाऊंगा!

“हैलो! नवीन ..?”

“क्या हो गया है?”

“कुछ सुनाओ, यार?”

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading