“भइया ये तो कहते हैं कि मुझे भी ..” अनु ने मेरे पास बैठते हुए प्रस्ताव रक्खा है।

मैं जानता हूँ कि अनु और उसके बच्चे बहनोई साहब के साथ चले जाने को आतुर हैं। उनका गहरा संबंध उन्हीं के साथ बनता है और मैं एक भिन्न संज्ञा हूँ जिसकी अब परिभाषा बदल गई है।

“तो जाओ!” मैंने निर्लिप्त भाव से और बे रोक टोक के अनुमति दे दी है।

शायद मां होतीं तो नाटक होता – अभी तो आई थी। इतनी क्या जल्दी है? मेरे भी तो मरने के दिन हैं आदि आदि! पर अब वैसा सब कहां संभव है। मैं तो अनु का भाई हूँ और बाबा तथा मां की भूमिका निभाने में अपने को असमर्थ पा रहा हूँ। अनु का घर ही उसका ठिकाना है। उसके बच्चे और पति ही उसके लिए सार्थक उद्देश्य हैं जिनके पीछे उसे चला जाना चाहिए। फिर मैं हीलो हुज्जत करूं तो बेईमानी होगी।

“सॉरी दलीप! वैसे तुम्हें इस तरह .. लेकिन मजबूरी है और ..” कुमार साहब ने अपनी बेबसी जाहिर की है।

एक भावना हीन प्रवंचना लगी है मुझे जो कुमार और अनु मुझे भरमाने के उद्देश्य से एक पात्र विशेष की भूमिकाएं निभाते रहे हैं। मैंने आंखें पसार कर अनु के दोनों मुलमुल्लों को देखा है और एक मूक याचना की है कि कहीं ये ही मेरे उत्तप्त मानस पटल पर भोले पन के शीतल वाक्यों से कोई लेप कर दें ताकि बहती संवेदना रुक जाए। लेकिन वैसा भी नहीं हुआ है।

एक चुप्पी में बंधा मैं अनु और उसके परिवार को छोड़ने एयरपोर्ट तक गया हूँ। श्याम वहां मिल गया है क्योंकि शीतल के पीछे वह आजकल यहां आता जाता है। देखते ही देखते जहाज चला गया है। अनभोर में बेजान हाथ बे मन उठ कर हवा में हिलता रहा है – बाय बाय ..!

बाकी के वाक्यों को मैं सटक गया हूँ। अवसन्न अवस्था में मैं जमीन पर रीती सड़क को देख रहा हूँ और एक स्वप्निल संसार छिन्न भिन्न होता रहा है। लगा है मेरे जीवन में से बचा कुचा सम्मोहन भी अनु के साथ उड़ गया है और जहाज के पीछे द्रुत गति से पता नहीं कब तक व्योम में पछाड़ें खाता रहा है।

लौट कर घर जाने का मन नहीं हुआ है। मैं सीधा फैक्टरी जाना चाहता हूँ। भूख प्यास सूख सी गई है और मन की चपलता एक स्थाई स्टॉप सा पा गई है।

“काम में रम जाओ दलीप!” एक मात्र विकल्प मुझे बुला रहा है। अब मेरे जीवन का लक्ष्य मुझे निखरा निखरा नजर आने लगा है। मैं अब अबाध गति से आगे बढ़ सकूंगा। एक नया इरादा है जो बनता जा रहा है ..

क्यों अपने आप को अनु से बांधूं और क्यों कहीं ओर मोह फंसाऊं! अच्छा है वो लोग चले गए। अब मैं अपनी सर्वतोमुखी शक्तियों को लगा कर अपने जीवन के लक्ष्य को पा लूंगा। फिर मैं अकेला नहीं रहूंगा!

मैंने अपने ऑफिस को इस तरह बनाया है कि जरूरत पड़ने पर वहां मुझे हर तरह की सुविधाएं प्राप्त हो जाएं। साथ में एक बैड रूम है तथा एक बैठक है जहां मैं आगंतुकों से मिल लेता हूँ। एक मोहक बार है जिसमें मैंने अपनी ब्रांड वाली विस्कियों को चुन चुन कर रक्खा है। मुझे बार की जरूरत पड़ती है जब मैं अपने अकेले पन को विस्की में घोल कर धीरे धीरे पीता रहता हूँ और पचाता रहता हूँ।

घर पर आम तौर पर मैं कम जाता हूँ और नौकर चाकर मेरे इंतजार में सूखते रहते हैं। वहां भी मैंने बाबा वाले कमरों को बंद कर दिया है और एक बहुत ही अद्वितीय ढंग का बार बनाया है। दरअसल ये सब कहीं मेरे मानस पटल पर सदियों से छपा था और अब तक बाबा के सामने यह सब न कर पा रहा था। मैं उनसे डरा कभी नहीं पर जो सम्मान उन्हें मुझसे चाहिए था – मैंने उन्हें दिया! मैं उन्हें कभी निराश नहीं करना चाहता था।

अब मेरी संकल्पित योजना फलीभूत होती लग रही है। मैं अब एक स्वतंत्र चेता और व्यक्तित्व वादी बन गया हूँ। कोई भी काम करना हो तो खुद निर्णय कर लेता हूँ ओर कोई भी काट छांट या बदली तबदीली करनी हो हिचकता नहीं हूँ। मुझे लगता है कि अब एक अथाह शक्ति का पारा वार मुझमें संचित होता जा रहा है। मैं चौबीस घंटों में से अठारह घंटे तक काम कर चुका हूँ। श्याम अब पीछे छूटता जा रहा है। मेरी उद्देश्यों की ओर अग्रसर होने की गति तीव्र होती जा रही है।

“अब सिर्फ मैनेजर का चुनाव रह गया है।” श्याम ने मुझे बताया है।

“हां तो जो नाम आए हैं उनकी लिस्ट लाना!” मैंने मांग की है।

श्याम ने बड़ी तत्परता से मेरे सामने लिस्ट रख दी है। मैं एक ही निगाह में सारे सातों नाम पढ़ गया हूँ।

“क्या इनकी शर्तें पूरी हैं?” मैंने प्रश्न पूछा है।

“जी हां!” श्याम ने बड़े ही शिष्ट भाव से उत्तर दिया है।

श्याम अब मुझसे फासले बढ़ाता चला जा रहा है। अचानक वो खुला ओर सपाट व्यवहार लुप्त प्रायः लगने लगा है। शायद हम दोनों ही बदल रहे हैं।

“इन लोगों के बारे में आम राय क्या है?”

“सब ठीक हैं सिर्फ एक को छोड़ कर!”

“किस को?”

“ये मिस्टर मुक्ति बोध!”

“शिकायत क्या है?”

“लोग कहते हैं – व्यक्ति वादी, अड़ियल और निहायत ही घटिया किस्म का आदमी है। वैसे उम्र में भी पका नहीं है जबकि हमें चाहिए बहुत ही घुटा पिटा आदमी!” श्याम ने सारी कथा एक सांस में कह दी है।

आज पहली बार मुझे श्याम की बात में खोट नजर आया है। इसे मैं अज्ञानता नहीं कह सकता क्योंकि मुक्ति बोध के बारे में मैं सब कुछ जानता हूँ!

मेजर कृपाल वर्मा

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