सोच लो समझ लो
परख लो
कौन दुश्मन, कौन दोस्त
ये सियासत है
कोई भरोसा नहीं परछाई का भी
पीठ में छुरा भोंकना
आम है
भाई-भाई का नहीं
बाप-बेटे का नहीं
चाचा-भतीजे का नहीं
यहाँ बस मतलब का है नाता
डरोगे तो मरोगे
नहीं डरोगे तो भी मरोगे
बड़ा ही अजीब खेल है ये
ठेकेदारी है
बड़े बड़े ठेके हैं
लाखों-करोड़ों का हेर-फेर है
सियासत में जल्दीबाज़ी अच्छी नहीं
- आशीष वर्मा