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साधना के सप्तरथी

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“साधना के सप्तरथी” की कवितायेँ जन-कल्याण के मार्ग पर चलने के लिए कृतसंकल्प हैं.

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Description

कविता कलात्मक विचारों के तात्विक समन्वय का सात्विक सृजन है. यह आत्मिक सौन्दर्य की अभिव्यक्ति और रागात्मिका मनोवृति के प्रति अनन्य अनुरक्ति है. जिस व्यक्ति में इस अनुरक्ति के प्रति आस्था नहीं होती उसके जीवन में राग और अनुराग का आभाव होता है. वह अपने आत्मिक सौन्दर्य को अनुभूत नहीं कर पाता, आंतरिक आनंद का उपभोग नहीं कर पाता और ना मानव जीवन में सच्चे सुख का भागी ही बन पाता है, बल्कि जीवन भर भौतिकता के मायावी मोह में फंसा रहता है. कविता मनुष्य को इस मायावी मोह से बहार निकलने की न केवल एक कबीरी कोशिश है वरन सांस्कृतिक सौन्दर्यबोध की छानदस अभिव्यक्ति है जन कल्याण के प्रति आसक्ति और सहज जीवन बोध के प्रति अनुरक्ति है. इसलिए साम्प्रतिक काव्यान्दोलन में चाहे कविता हो या अकविता गीत हो या अगीत नवगीत हो या जनगीत दोहा हो या मुक्तक ग़ज़ल हो या रुबाई सबमे केन्द्रीय भाव मानव कल्याण से ही संबध रहता है. वास्तु सत्य तो यही है की जो साहित्य जनहित से जुड़ा नहीं होता उसकी उम्र बहुत छोटी होती है वह कभी भी शाश्वत नहीं हो सकता. मानव कल्याण साहित्य का अभीष्ट भी है और अभिप्रेय भी. इसलिए तुलसी, कबीर जैसे काव्य पुरुषों के कवितायेँ कालजयी बनी हुई हैं. यदि तुलसी की कृतियाँ हमे सांस्कृतिकता जीना सिखाती हैं तो कबीर की कवितायेँ हमारे अंदर सामाजिक कुरीतियों तथा विडम्बनाओं के विरुद्ध आवाज उठाने की ताकत पैदा करती हैं.

Additional information

ISBN

9788170546894

Author

Dr. Madhusudan Saha; Dr. Krishna Kumar Prajapati

Publisher

Classical Publishing Company

Binding

Hard Cover; Pages – 157

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