Description
इसका शीर्षक ‘कोल्हू का पीला बैल’ मैने क्यों रखा इस पर में अपने ठीक और सटीक विचार नहीं बतला सकता और धारणाएं ना ही किसी टिकी धारणाओं को दिखला सकता. बस मन से यह शीर्षक निकला और मैने किसी तर्क वितर्क के इसे मान लिया.
इस पुस्तक के माध्यम से मैने यह प्रयास किया है की पाठकों तक सच को पहुंचाऊं उसे यथास्थिथि की परिस्थिथि से वस्तुस्थिथी की स्थिथि तक ले जाऊं जिससे वो अपनी बंद आँखों को खोल सकें, खुली आँखों को सच देखने का विश्वास दिला सकें. मस्तिष्क अगर कुंद हो तो उसे सार्थक विचारों के साथ धारदार बना दें ताकि वैचारिक संग्राम कोई नए युद्ध की घोषणा का बिगुल बजा सके. यह विचार यथावत बना रहे इसका प्रयास सदैव जीवित रहा.
Reviews
There are no reviews yet.