Description
“मुझे मत रोको … अन्दर जाने दो …!” कृष्णा अस्पताल के फाटक पर तैनात संतरी से झगड़ा कर रही थी. “लाल साहब से शिकायत कर दी तो … तेरी नौकरी चली जाएगी ..!!” उस ने संतरी को धमकाया. “तेरे जैसे बहुतों के दिमाग झाडे हैं, मैने …” वह संतरी के गरेबान को पकड़ झूल सी गई. “हरामी …! तुझे अभी सबक सिखाती हूँ …!!” वह हांफने-काँपने लगी थी.
संतरी को लगा … वह बूढी जर्जर जिस्म वाली स्त्री स्वयं से लड़ रही थी. उस के बिखरे बाल, रोगी शरीर, मैले-कुचेले कपडे और कांपते कंठ स्वर किसी आंतरिक पीड़ा के गवाह थे. उसे उस स्त्री की अधमता किसी तिरस्कार और ये गलियां सुनकर भी उस पर क्रोध नहीं आया. वह अचंभित सा उसे देखता ही रहा.
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