‌मौसम बदलता रहता है, कभी सर्दी आ जाती है, तो कभी गर्मी आ जाती है।पर हर मौसम का अपना  ही मज़ा और आनंद होता है,हाँ!यह बात अलग है कि बदलते मौसम में बीमारियों का आगमन हो जाता है। ऐसा कुछ वाक्या हमारे घर में भी हुआ,इस बदलते मौसम की वजह से क़ानू-मानू का एक नया रूप देखने को मिला। हुआ यूँ कि शरद ऋतु शुरू होने से पहले जो मौसम ने अंगड़ाई ली,वो हमारी बिटिया पर  सीधा असर कर गयी। क्लाइमेट के चेंज होने के कारण बच्ची को बुखार आ गया था, हमने सोचा था,कि सीजनल फीवर है एक आध दिन में ठीक हो जायेगा पर ऐसा नहीं हुआ..बीमारी ने बिटिया रानी
‌को  पूरी तरह से घेर लिया था, और बच्ची ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही थी। हारकर हम अपनी गुड़िया को  specailist के पास ले गए। भोपाल के सबसे बेहतरीन बच्चों की डॉक्टर हैं वो…खैर!उन्होंने दवाईयां वगरैह लिखीं और बताया कि इन्फेक्शन हो गया है, ठीक होने में महीने का समय लग सकता है। दवाईयां वगरैह लेकर हम बच्ची सहित घर आ गए थे।
‌जैसे हम गेट पर पहुँचे क़ानू को हमारे आने का आभास हो गया था। कार के गेट खुलते ही हमने भी अपनी गर्दन ऊपर की तरफ घुमाई थी, क्योंकि हम जानते थे कि काना-माना दीवार पर मुहँ रखकर हमारा इंतेज़ार कर रहीं हैं। ऊपर की ओर देखने पर वही प्यारी गुलाब जामुन जैसी नाक और पेपर-कटिंग जैसे मुड़े हुए  नन्हें कान दिखाई पड़ रहे थे। हमनें नीचे से ही हाथ हिलाया था और कहा था,”आ लहैं हैं, काचू”। अपनी बीमार बिटिया को  धीरे-धीरे  सीढ़ियों पर से ऊपर की तरफ कमरे की ओर लेकर आ गए थे। जैसे ही क़ानू ने दीदी की तरफ देखा, तो काना को यह  अहसास हो गया था,कि दीदी की  तबियत ठीक न है, बस!फिर क्या था…अपनी पूँछ हिला-हिलाकर दीदी के चारों तरफ घूमने लगी थी,हमें क़ानू से कहना पड़ा था,”रुको,सुनो क़ानू…दीदी को पहले आराम से बिस्तर पर तो बैठने दो..फिर आराम से दीदी पास बैठेंगे”। पर क़ानू थी कि मानने का नाम ही नहीं ले रही थी,बहुत मुश्किल से हमने क़ानू को कंट्रोल किया था, और गार्गी को ले जाकर बिस्तर पर बिठाया था। बच्ची बीमारी में ज़्यादा देर तक बैठ न पाने के कारण लेट गई थी, क़ानू को दीदी बीमार है यह बिल्कुल भी अच्छा न लग रहा था। क़ानू भी उछल कर अपनी दीदी के साथ बिस्तर पर ही बैठ गयी थी। दीदी को बीमार देखकर क़ानू अपनी सारी शैतानियाँ भूल चुकी थी। अपना प्यारा सा मुहँ बिल्कुल दीदी के पास ले जाकर रखा हुआ था, और मासूम सा चेहरा बनाकर टकटकी लगाकर देख रही थी। अब तो क़ानू ने दीदी के पास ही बिस्तर पर अपना परमानेंट ठिकाना बना रखा था। बिस्तर पर ही अपने छोटे-मोटे खिलौने रख लिया करती थी, और बस दीदी की देख-रेख भी करती रहती थी हमारे साथ और अपना खेल-कूद भी।
‌हुआ यूँ की बीमारी के कारण हमने अपनी बिटिया
‌के स्कूल से छुट्टी तो ले ही रखी थी, पर हमने अभी तक बस वाले भइया को इस विषय में नहीं बताया था। सो अगले दिन हमारे घर के गेट पर सुबह-सुबह ही  बिटिया रानी की बस  हॉर्न बजाने लगी थी,हॉर्न की आवाज़ सुनकर हम तेज़ी से सीढ़ियों से नीचे की तरफ भागे थे, बताना तो था न ड्राइवर को, कि,”भईया बच्ची बीमार है ,एक महीने तक बस मत लाना,छुट्टी पर है”। हमारा नीचे दौड़ना हुआ था, कि क़ानू भी हमारे साथ-साथ भौंकते हुए फुल स्पीड में  दौड़ी थी। अक़्सर ऐसे ही करती है। हमारे साथ -साथ ही दौड़ लेती है। गेट के बाहर हमारे साथ ही निकल आयी थी, और हम जल्दी में चैन और पट्टा बाँधना तो भूल ही गये थे। पर हमें यह था कि बस दो मिनट का काम ही तो है, फटाक से क़ानू को गेट के अन्दर ले लेंगें। पर भई क्या बतायें कमाल ही हो गया था, जैसे ही हम ड्राइवर  भईया को सारी बात बता कर पीछे मुड़े तो क्या देखते हैं कि क़ानू रानी फुर्ती से हमारे पीछे से होकर बस के अन्दर कूद कर जा  घुसीं थीं, हमें थोड़ा सा भी रिएक्शन टाइम नहीं मिला था…स्कूल बस के अंदर ज़ोर-ज़ोर से हाहाकार मच गया था,”कुत्ता!कुत्ता! आंटी प्लीज् पकड़ो काट लेगा,भईया! निकालो बाहर इसे”। शोर-गुल होते ही हम भी बस के अन्दर फटाक से पहुँचे थे,और हमने सब लड़कियों से कहा था, “पहली बात तो बेटा, काट लेगा नहीं, काट लेगी है,दूसरा इसका नाम क़ानू है। डरोगे तो ही डराएगी चुप-चाप अपनी-अपनी सीटों पर बैठ जाओ कुछ नहीं बोलेगी ,और हम धीरे से उतार लेंगे,अब चैन और पट्टा लाना हम भूल ही गये है, पर कोई बात नहीं प्यारी काना को हम गोद में ही उतारकर ले जाएँगे”
‌मुश्किल से हमनें क़ानू को बस में कंट्रोल किया था, क्योंकि भौंकना बन्द ही नहीं कर रही थी, लड़कियों को देखकर डरा-डरा कर भोंकी रही थी, खैर!जैसे -तैसे हमने अपनी स्टफ टॉय क़ानू को गोद में उठाया था, और मुश्किल से क़ानू को लेकर बस से नीचे उतरे थे, क्योंकि थोड़ा वज़न तो है ,ही गोल-मटोल क़ानू में। हम बस से नीचे उतर चुके थे,स्कूल बस जा चुकी थी। क़ानू को हमनें अपनी गोद से नीचे सड़क पर उतार दिया था,ज़ोर-ज़ोर से हाँफ रही थी…हमनें  कहा था,”और करो हल्ला “और काना के छोटे-छोटे गाल पर धीरे से  थप्पड लगाए थे। तेज़ी से भागते हुए हम गेट के अन्दर आ गए थे, क़ानू भी हमेशा की तरह भागते हुए हमारे पीछे-पीछे गेट के अन्दर आ गयी थी। और हमने कान पकड़े थे,कि आइन्दा कभी चैन और पट्टे के बगैर क़ानू को बाहर न लाएँगे, कहीं किसी को काट लिया तो लेने का देना
‌पड़ जायेगा।
‌ऊपर आते ही हम बिटिया की दवाई वगरैह में बिज़ी हो गए थे। और क़ानू भी अपनी प्यारी सी पिंक कलर की जीभ से दीदी के गाल पर प्यार कर अपने ढँग से बिस्तर पर खेल -कूद कर दीदी की सेवा में बिजी हो गयी थी। क़ानू जानती थी कि उसकी दीदी बीमार चल रही है, इसलिये क़ानू हमेशा ही दीदी के पास बिस्तर पर ही खेल-कूद करती रहती और अब क़ानू ने बाहर की ड्यूटी कम कर दी थी। अब तेज़ी से भौंकते हुए अपनी दीदी को छोड़कर बाहर न जाती थी। अंदर कमरे में ही दीदी के एंटरटेनमेंट का इंतेज़ाम कर रखा था क़ानू ने।
‌अब बच्चों के हाफ-इयरली एग्जाम शुरू होने को थे, पर हमारी गुड़िया की तबियत में कोई ख़ास सुधार न था, टीचरों से बात तो कर ली थी, पर उनका कहना यह था,की कुछ भी हो आप कैसे भी करके अपनी बिटिया को एग्जाम ज़रूर दिलवाने लाएँ। जैसे तैसे हमने अपनी बिटिया की टूटी-फूटी एग्जाम की तैयारी करवाई, यह कहकर कि,”बेटा कोशिश करके थोड़ा-बहुत पढ़ लो, पास तो होना ही है, अब टीचर्स नहीं मान रहीं तो हम क्या कर सकते हैँ”। हमारी गुड़िया तो हर मामले में बचपन से ही बहादुर है, सो बेचारी ने हमारी बात मान हिम्मत कर के दवाई वगरैह ले कर एग्जाम की तैयारी शुरू कर दी थी। एक दिन गुड़िया की सहेली ने हमारे घर आकर एग्जाम की डेट-शीट थमा दी थी। बस!अब अगले दिन ही पहला इम्तिहान था।
‌आप तो जानते ही हैं, कि बच्चे तो बच्चे ही होते है, बस फालतू की ज़िद्द कर बैठी,”हम अपने पहले पेपर के दिन क़ानू को अपने साथ स्कूल लेकर ही जाएँगे”। हमने कहा था,”पागल हो गयी हो क्या,यह कैसी अजीब सी ज़िद्द है, स्कूल में कुत्ते नहीं जाते”। बुरा तो हमें बहुत लगता है, जब कभी हमारे मुहँ से कुत्ता निकल जाता है, पर करें क्या यह तो स्वाभाविक है। खैर!लाख मनाने पर भी हमारी बिटिया नहीं मान रही थी,अब तो पक्की ज़िद्द पकड़ ली थी,कि”एग्जाम तभी देंगे जब क़ानू हमारे साथ स्कूल जाएगी”। चलो!हमनें भी कह दिया था,”तुम एग्जाम देकर चली आना,तब तक हम क़ानू को लेकर तुम्हारा कार में इंतेज़ार करेंगे”। “नहीं”कहा था, हमारी गुड़िया ने। “हम तो स्कूल के अन्दर ही लेकर जाएँगे, कुछ न होगा।”क्या करते एक तो पहले से ही बीमार चल रही थी, हमनें भी कह दिया था, ले जाना भई स्कूल के अन्दर,”पर ज़िम्मेदारी तुम्हारी रहेगी, टीचरों से खुद ही निपटना हम बीच में बिल्कुल न बोलेंगे,सारी डाँट टीचर्स की तुम्हें ही खानी पड़ेगी”। “एग्री” और गार्गी ने भी कहा था”हाँ!भई एग्री”।
‌अगले दिन बीमार होने के कारण हमने अपनी बिटिया को हाथ-पाँव मुहँ धोकर तैयार कर दिया था। क़ानू भी बहुत excited हो रही थी, आखिर दीदी ने कान में जो कह दिया था, क़ानू के”तझे भी लेकर चल रही हूँ, खूब मज़े कर के आयेंगे, अपनी फ्रेंड्स से भी  मिलवाऊंगी”। अब तो क़ानू हमारे साथ ठुमक-ठुमक कर नीचे उतरी थी, वैसे भी जब कहीं हम क़ानू को कार में अपने साथ घुमाने ले जाते हैं, तो काना-माना बहुत ही excited हो जाती है। खैर!अब हम सब कार में बैठ चुके थे, और गाड़ी स्कूल की तरफ़ चल दी थी, पतिदेव ने तो क़ानू को साथ लेकर चलने पर एतराज़ भी किया था, और कहा था,”इस मुसीबत को साथ लेकर चलना ज़रूरी है, क्या”। हमने कहा था,”रहने दो बच्ची की ज़िद्द है, बीमार है”। पूरे रास्ते खिड़की के पास  बैठकर मस्ती मारती चल रही थी क़ानू।खिड़की से बाहर मुहँ निकालकर ताज़ी हवा अपने सुन्दर कानों में भरकर रास्ते का पूरा एन्जॉयमेंट करती चल रही थी।
‌”चलो, भई स्कूल आ गया, ध्यान से उतरो बेटा,” हमने  बच्ची से कहा था, “तुम  पेपर देकर आ  जाओ हम यहीं पर तुम्हारा  वेट करेंगे”। बेटी ने कहा था,”मम्मी क़ानू को भी अन्दर प्लीज”, और हमारा कहना था, “अरे!पहले हिम्मत कर के पास होने लायक एग्जाम तो, दे दो”। और हम अपनी बिटिया को धीरे-धीरे कर उसकी क्लास में बैठाकर आ गए थे। पेपर खत्म होने के बाद हमारी गुड़िया अपनी सारी फ्रेंड्स को क़ानू से मिलवाने बाहर ले आयी थी, क्योंकि स्कूल के अन्दर जानवरों को ले जाने की परमिशन नहीं होती। इस बार हम चैन और पट्टा साथ ही लेकर गए थे। हमने क़ानू को कार से बाहर  निकालकर पास वाले पेड़ से बाँध दिया था, और हम खुद भी क़ानू के पास ही ख़ड़े हो गए थे। अनजाने लोगों को देखकर क़ानू ने ज़ोर-ज़ोर से भौंकना शुरू कर दिया था। और  चैन  और पट्टा छुड़ाने की कोशिश करने लगी थी। धीरे-धीरे बच्चों ने प्यार से क़ानू से दोस्ती कर ली थी। लड़कियों ने हमसे परमिशन मांगी थी,”आंटी हम इसे स्कूल के आस-पास,घुमा कर ले आयें, थोड़ी सी देर प्लीज”। हमने भी कह दिया था,”ठीक है ,चलो!,जल्दी कर लो घर वापिस जाना है, हमें”। लड़कियों और अपनी दीदी के साथ क़ानू मस्त हो गयी थी। सबसे दोस्ती कर ली थी क़ानू ने। और अब क़ानू अपनी प्यारी सी पिंक कलर की जीभ साइड में लटकाकर बच्चों के साथ दौड़-दौड़ कर खेल रही थी। जब भी क़ानू अपनी प्यारी सी बबल-गम के कलर की जीभ साइड में लटका लेती है, इसका मतलब होता है, क़ानू आज बहुत हैप्पी है। क़ानू स्कूल जाकर बहुत हैप्पी हो गयी थी, लड़कियाँ भी खुश होकर खेल रहीं थीं, क़ानू के साथ, हमनें भी ज़्यादा एतराज़ न किया था, क्योंकि बच्ची तो पहले से ही बीमार थी। सोच रहे थे, चलो इस बहाने बिटिया का और सा मन हो गया।
‌दीदी के साथ स्कूल जाना और सहेलियों में हिल -मिल कर खेलना एक नया सा लेकिन बेहद प्यारा एक्सपेरिएंस था, हमारी क़ानू के लिए….और ज़िन्दगी फिर से चल पड़ थी इन्हीं रंगीनियों को लिए क़ानू के साथ।