केवल हिन्दी का हथियार हाथ में पकड़े वह भारत चली आई थी।
“सोफी!” एक अति आत्मीय आवाज फोन पर गूंजी थी। “आ जाओ मेरे साथ। मैं दक्षिण भारत के टूर पर हूँ। बाई गॉड सोफी यू वुंट बिलीव इट ..!” रॉबर्ट बोल रहा था।
“नहीं!” सोफी का दो टूक उत्तर था। “मेरा प्रो्ग्राम फिक्स है।” सोफी ने कहा था।
“यू मीन – जा-सू-स?”
“शट अप!” कह कर सोफी ने फोन काट दिया था।
कितना खतरनाक साबित हो सकता था – यह रॉबर्ट – सोफी ने आज पहली बार महसूसा था।
“कोई गाइड मिलेगा?” सोफी ने फोन पर रिसॉर्ट के मैनेजर से पूछा था। “और कितने लोग हैं हमारे साथ?” उसका दूसरा प्रश्न था।
“गाइड तो हर साइट पर मिल जाते हैं, मैडम।” मैनेजर की आवाज आई थी। “लेकिन हां इनसे तनिक सावधान रहने की जरूरत है।” उसने चेतावनी दी थी। “लेकिन आपके साथ कुछ पुराने सैलानी भी हैं। उनसे परामर्श लेती रहें तो ठीक रहेगा।” उसने सुझाव दिया था।
“ओके।” सोफी ने फोन काट दिया था।
ताज महल पहला दर्शनीय स्थान था जो उनके प्रोग्राम पर था।
आदतन सोफी ने ताजमहल का पूरा इतिहास जान लिया था। उसे अच्छा लगा था एक प्रेम कहानी जैसा ही कुछ – ताज महल का किरदार। यह सोफी के मन प्राण में समा गया था। उसे भारत में आ कर एक अलग से बहती बयार के दर्शन हुए थे। एक बिलकुल अलग सा ही माहौल था यहां। अमेरिका जैसी मारा-मारी, दौड़ भाग या कि रुटीन का कुछ यहां तो नजर ही न आया था उसे। हर आदमी एक आराम में था, चैन में था और सुख में गर्क था। उसे चिंता फिकर कुछ न थी। वह जैसे जीने की कला से कोसों दूर था। वह तो बस जी रहा था – स्वेच्छा से और प्रेम पूर्वक।
उनकी ट्यूरिस्ट बस सैलानियों से खचाखच भरी थी। सभी सैलानी विदेशी ही थे। सोफी का परिचय उनके साथ बड़ा ही दिलचस्प रहा था। न जाने क्यों हर किसी ने सोफी को पसंद किया था। एक अलग ही पहचान बन गई थी उसकी। कुछ लोग तो सोफी से चिपक ही गए थे।
ताज महल की भव्यता को देख दंग हुई सोफी न जाने कितने पलों तक खड़ी ही रही थी। अब वह आपा भूल इतिहास के पन्नों में डोलती रही थी। वह उन किरदारों से बतियाने चली गई थी जिनका जिक्र आज भी लोगों की जुबानों पर चढ़-चढ़ कर बोलता था। “कैसे रहे होंगे वो लोग?” सोफी सोचे जा रही थी।
“इफ यू लाइक मैडम!” सोफी का एक विनम्र आवाज ने ध्यान तोड़ा था। “आई कैन गाइड यू!” वह व्यक्ति सामने खड़ा-खड़ा मुसकुरा रहा था।
“मुझे हिन्दी आती है।” सोफी ने अपने पहले हथियार का इस्तैमाल किया था।
“ओह ग्रेट!” वह व्यक्ति उछल सा पड़ा था। “यू आर रियली ग्रेट!” उसने फिर अंग्रेजी में ही कहा था। “यह तो हिन्दी का सौभाग्य है!”
“और आपका ..?”
“मेरा नाम राहुल सिंह है।” उसने तपाक से बताया था। “और आप ..?”
“सोफी!”
“सो स्वीट!” राहुल सिंह ने उसका स्वागत किया था।
सोफी उस युवक को अपांग देखती रही थी। एक साथ न जाने क्यों और कैसे राहुल सिंह और रॉबर्ट उसके सामने साथ-साथ आ खड़े हुए थे। न जाने क्यों वह दोनों ही सोफी के ठीक सामने खड़े हो अपने-अपने आकार खोलते ही चले जा रहे थे और आश्चर्य की बात ये थी कि राहुल सिंह जीत गया था।
“सिंह का मतलब ..?” सोफी ने शरारत से पूछा था। “टाइगर! है न?” उसने स्वयं उत्तर दिया था और पूछा था।
“यू कैन कॉल मी ए रैट।” राहुल सिंह का चेहरा लाल हो गया था।
“हिन्दी क्यों नहीं बोलते?” सोफी ने उसे फिर टोका था।
“ओ हां! आप को तो हिन्दी आती है।” राहुल सिंह ने अपने आप को संभाला था। “क्या है कि मैडम ..” वह सफाई देना चाहता था।
“ताज महल के पीछे क्या है?” सोफी ने प्रश्न पूछा था।
“पहले मैं आपको ताज महल का इतिहास ..”
“वो मैं पढ़ चुकी हूँ टाइगर!” विहंस कर कहा था सोफी ने। “कुछ ऐसी जानकारी दो जो मेरे काम की हो।” सोफी की मांग थी।
राहुल सिंह सकते में आ गया था। उसका चेहरा तनिक विद्रूप हो आया था। उसकी आंखों में एक आश्चर्य तैरने लगा था। उसे सोफी अन्य सैलानियों से हट कर लगी थी – कुछ और लगी थी। वह कहीं प्रसन्न था – बहुत प्रसन्न।
सोफी मौन थी। वह सोच रही थी कि क्यों न इस राहुल से वह सवाल करे जो वह अमेरिका से साथ ले कर आई थी। क्यों न पूछ ले उसे कि जालिम कहां था, कहां छुपा था वह जालिम? कौन-कौन से जुल्म ढा रहा था वह और ..
“जालिम की तो कहीं चर्चा ही नहीं करनी है।” सोफी को सर रॉजर्स के आदेश याद हो आए थे। “गो एंड इंजॉय योरसैल्फ।” उनका कहना था।
“ठग तो नहीं रहे मुझे डैडी?” सोफी एक बार सोचने लगी थी। “रॉबर्ट का अचानक फोन आना ..?” वह तनिक खबरदार हुई थी। “हो सकता है कि उनका इरादा ..” सोफी का दिमाग भन्ना गया था।
“मैं चाहता हूँ मैडम कि आप का इस पूरे टूर का मैं गाइड रहूँ।” राहुल सिंह की आवाज ने सोफी का सोच तोड़ा था।
“लेकिन क्यों?” सोफी ने तड़क कर पूछा था।
“पैसा मैडम! मुझे अच्छी आमदनी हो जाएगी!” वह हंसा था। “यू नो आई एम पूअर, वैरी-वैरी पूअर!”
“हर हिन्दुस्तानी अपने आप को गरीब ही क्यों बताता है?” सोफी ने पूछा था। “जबकि है तो वह अमीर!” सोफी ने सीधा राहुल सिंह की आंखों में देखा था। “टाइगर! तुम ..?” सोफी उस पर झपट पड़ी थी।
राहुल सिंह खबरदार हो गया था। वह समझ गया था कि सोफी कोई भोली भाली ट्यूरिस्ट नहीं थी। वह जान गया था कि सोफी भारत के बारे में बहुत कुछ जानती थी।
“खैर!” सोफी तनिक सहज हो आई थी। “मैं तुम्हें इस पूरे टूर के लिए साइन कर लेती हूँ।” उसने सहज होते हुए कहा था। “लेकिन मिस्टर मुझे कुछ ऐसी जानकारी चाहिए जो ..”
“मैं कोशिश करूंगा।” राहुल ने वायदा किया था।
राहुल और सोफी मिल कर पूरे दृश्य पर छा से गए थे। अब हर किसी की आंख उन दोनों की ओर उठती तो गिरने का नाम ही न लेती। गोरी चिट्टी सोफी के शरीर के साथ न जाने कैसे राहुल का सांवला सलोना स्वरूप मेल खा गया था। न जाने कैसे वह दोनों एक ही नजर आने लगे थे। राहुल ने सोफी को हर जानकारी लाकर दी थी। राहुल कहीं जरूरत से ज्यादा उपयोगी सिद्ध हुआ था। सोफी को भी अपने मनोरथ पूरे हुए लगे थे।
“इतना कुछ यहां जानने के लिए होगा मैं सोच ही न पाती अगर ..” सोफी चलती जा रही थी।
“अभी आप ने देखा ही क्या है मैडम!” राहुल सिंह कह रहा था। “अबकी बार आइए तो राजस्थान का टूर ..”
“नहीं! साउथ इंडिया देखेंगे।” सोफी बोली थी। “फिर पूरा भारत – मेरी एक खोज ..”
“फिर मैं कहां रहा मैडम?” राहुल सिंह हंसा था। “मैं तो कूंए का मैढक हूँ। बस यहीं आस पास टर्राता रहता हूँ।” वह मुसकुराया था। “फिर भी कोशिश करूंगा!” उसने वायदा किया था। “और हां ..”
“तुम अमेरिका कब आ रहे हो?” सोफी अनायास ही पूछ बैठी थी।
“जब भी आप बुलाएं सर के बल चलकर आऊंगा।” उसने विनम्रता पूर्वक कहा था।
“तब तो मैं तुम्हें नहीं बुलाउंगी।” सोफी ने मजाक मारा था।
वह दोनों खूब हंसे थे।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड