महान पुरुषों के पूर्वापर की चर्चा .

भोर का तारा -नरेन्द्र मोदी .

उपन्यास -अंश :-

“तुम्हें आग में मूतने को किस ने कहा था …?” अमला गुजरात राज्य के गृह मंत्री -अमित शाह से पूछ रहा था . “किस ने राय दी तुम्हें …इस राजनीति की आफत को ओढ़ने के लिए ….? अच्छा घर-वार है ….व्यापार है ….नाम है …काम है …! राजनीती तो ……?”

“गुंडे करते हैं …..?” अमित शाह ने प्रश्नकर्ता से पूछ लिया था .

“हाँ ….!!” अमला गरजा था . उस की आवाज़ में तनिक सा क्षोभ था . वह सावरमती जेल का बहुत पुराना नम्बरदार था . “मैं तुम्हारे खान-दान को जानता हूँ, बेटे !” अमला की आवाज़ सहज हो आयी थी . “राजनीति का ये खेल …..?” उस ने अमित की आँखों में घूरा था . “बहुत घटिया है …..”

अमल का चेहरा एक तनाव से भरा था ! कोई गहरा दुःख था जो उस की आँखों में उभर आया था . कुछ था -जिसे अमला उसे बताना चाहता था . सच्चा शुभ चिन्तक लगा था अमला ,उसे !

“लेकिन मेरा मन तो करता है …कि मैं देश,समाज …और लोगों के लिए लडूं ! मैंने अपने मन को खूब ही समझा कर देख लिया है , अमला काका …! पर ये मानता ही नहीं ! कहता है – तू लड़ ,अमित ! हार-जीत की परवाह किए बिन …तू लड़ता ही जा ..झगड़ता ही चला जा ….”

“मेरा भी तो यही हाल था ,अमित बेटे ..? मेरे मन में जलती इस ज्वाला ने ही तो मुझ से लंका जलाने को कहा था ….! मैंने भी शपथ ली थी कि …भ्रष्टाचारियों …देश-द्रोहियों और बे-ईमानों …को मैं …मिटा कर रहूँगा …! मैं उस वक्त तक लडूंगा …..” अमला चुप हो गया था .

“हार गए थे …..?” अमित ने उपहास करना चाहा था .

“हाँ …! हार गया था ….!!” स्वीकार किया था , अमला ने . “मैं हार गया था , अमित ! उम्र कैद ले कर यहाँ आ बैठा ….! और देख लेना …यही हाल तुम्हारा भी होगा !” वह हंसा था . “बच्चे हो ! पुलिस और प्रशाशन के हथकंडे …तुम नहीं जानते ? कानूनी दाव-पेंच ….?”

“कानून तो हमारे साथ है !”

“कानून किसी के भी साथ नहीं है ! कानून अँधा …बहरा ….और बे-ईमान है ! कुर्सी पर बैठा जज अपनी आँखों से नहीं देखता ….केवल फाईल पढ़ता है ! उसे तो पता ही नहीं चलता कि …पुलिस ने क्या लिख दिया …? वह तो ….”

“पर मैं नहीं मानता ….:”

“मैं कौनसा मानता था ….? लेकिन जब मेरे ऊपर झूठा केस बना …मुझे जेल में डाला गया ….मुझे झूठे गवाह-सबूत बना कर सज़ा दी गई …तब जा कर मेरे होश ठिकाने आए ….! पर फिर क्या करता ….? आठ साल हो गए हैं , जेल की रोटी तोड़ते ….! सारी देश-भक्ति ……सारा समाज-सुधार ….और समूचा देश-प्रेम अब पच लिया है ….! केवल एक पश्चाताप ही है , अमित जो अब मेरा साथ देता है …? काश मैंने भी अकल से काम लिया होता ….? काश …मैं …भी ….” अमला की आँखों में आंसू थे .

“मैं होश में रह कर लडूंगा , काका !” अमित अमला को धीरज दे रहा था . आप की सीख को यहाँ से गांठ बाँध कर ले जाऊंगा ….! पर मैं लडूंगा तो ज़रूर , काका ….!”

“भगवान् तुम्हारी रक्षा करें …..प्रार्थना करूंगा , बेटे ….!!” अमला ने आशीर्वाद दिया था .

अमित और अमला ‘आज’ और ‘कल’ की तरह गले मिले थे ….और फिर बिछुड़ गए थे ! कहीं अमला के मन में अमित जा बैठा था …! और अमित के मन में भी अमला आ बैठा था ! झूठ और सच – दोनों ने संधि कर ली थी ….दोनों ने मिल कर आगे का मार्ग चुनने की बात गांठ बाँध ली थी !

“भाई जी ने कहा है , आप की बेल लगानी है ….?” भीमा सन्देश लाया था . “वकील से बात हो गई है . बेल होने की संभावना है !” भीमा ने बताया था .

“नहीं ….!” अमित एक छोटे सोच के बाद बोला था . “कहना – अभी बेल न लगाएं ! कच्चा काम है !” उस ने सलाह दी थी .

जेल में आ कर अमित के अंदर एक अलग अंतर द्रष्टि पैदा होने लगी थी !

कानून …अपराध ….सज़ा और न्याय प्रक्रिया ….उसे अलग-अलग समझ आने लगे थे ! जो एक प्रान्त के राज्य गृह मंत्री की समझ में न आया था …अब एक अभियुक्त की समझ में समाने लगा था ! हर बुराई का उत्तर अच्छाई नहीं होती -अमित सीख रहा था ! बुराई का ज़हर अगर बुराई के अमृत से ही धो दिया जाए तो ….परिणाम अच्छे निकल सकते हैं – वो सोचने लगा था !

“ये साजिशों का अंत नहीं …….आरंभ है , अमित !” उस की समझ कह रही थी . ” अमला काका इस का उदहारण है ! गवाह-सबूत पर टिकी है – पूरी न्याय प्रक्रिया ! जो लोग जेल भिजवा रहे हैं ….वही गवाह-सबूत भी खड़े कर देंगे ! उन का उद्देश्य सज़ा दिलवाना होगा ….और उन का उद्देश्य होगा ……” परिणाम सोच कर चुप हो गई थी , उस की समझ .

लेकिन बात अमित के कानों तक पहुँच गई थी !!

“अब उन का उद्देश्य होगा ….नरेन्द्र मोदी को भी जेल में बंद कराना ….!” अमित अपने आप से कह रहा था . “उन का उद्देश्य है , मोदी को मिटाना ! उन का उद्देश्य है ….उन के रास्ते में आने वाले उन तमाम रोड़ों को हटा देना ….जो ….?”

सहसा अमित की फटी-फटी आँखें तरह-तरह के बीभत्स द्रश्य देखने लगीं थीं !

वह देख रहा था कि नरेन्द्र भाई पर लगे इलज़ाम सच साबित होते जा रहे थे . देश का मीडिया सबूत लिए खड़ा था …गवाहों की एक कतार चिल्ला-चिल्ला कर कह रही थी -….गुनाहगार है , मोदी ……हत्यारा है ….जहर की खेती करता है ….और मुसलामानों की हत्या का पाप इसी के सर पर है ! हिन्दूओं को भी इसी ने भड़काया है ! ये सत्ता का भूखा है . ये अपराधी है . इसे कुर्सी से हटाओ ! इसे जेल भेजो !! ये समूचा नर-संहार इसी की कारिस्तानी है !

“ये झूठ है ….!” अमित की अकेली आवाज गूंजी थी . “ये गलत है …!!” वह कह रहा था . “एक देश भक्त …..?”

“काहेका देश-भक्त ….?” रोष में बोली थी, भीड़ . “घमंडी है ! जनता को गुमराह करता …संघी है ! स्वयं सेवक संघ का प्रचारक है ….! दलाल है ……”

“मैं नहीं मानता कि ….”

“तुम होते कौन हो ….? हो किस खेत की मूली ….? अभी तो जंग जुडी है ! देख लेना ……जेल से बाहर नहीं निकल पाओगे ….! तीस्ता के तर्कश में बड़े जुटीले बान हैं ! मीडिया ने अखबारों के पन्नों पर नफरत बो दी है …! जज के सामने बोल कर तो देखना ,बच्चू …?”

“म…म..मैं जज के सामने …..”

“किस-किस का सामना करोगे ….? तुमने जो हत्याएं कराई हैं ….तुम्हारे नाम पर लिखी हैं ! जब कोर्ट में मृतकों के सगे-सौहार्द …सुबक-सुबक कर …न्याय की दुहाई देंगे …तो तुम्हारी तो आवाज़ …स्वयं ही उस आर्तनाद में डूब जाएगी …? ‘नो बेल’ कहेगा …और जज फाईल फ़ेंक देगा , बेटे !”

दुस्वप्न -सा कुछ अमित के आस-पास आ बैठा था ….!!

जेल में बंद लोगों को देख कर अमित की समझ में आने लगा था कि …भीतर -बाहर में कुछ गड़बड़ है तो ज़रूर ….!

फिर एक चिंता सवार होने लगी थी ! एक शक पैदा होने लगा था .

“क्या सच्ची देश-प्रेम की भावनाओं का कोई …मोल नहीं होता …?”अब अमित स्वयं से ही प्रश्न पूछ रहा था . “क्या ‘मोदी-मंत्र’ आगे के अन्धकार को नहीं काट पाएगा ….? क्या भारत को एक महान राष्ट्र बनाने का देखा सपना ….जेल में ही बंद हो कर रह जाएगा …?”

“जेल तो तपोवन है, पगले …!”एक अद्रश्य की आवाज़ थी . “अरे,पागल ! हम सभी तो ….इन्ही जेलों में बंद रहे थे ….? तुम तो किस्मत वाले हो, अमित ! अच्छी सुविधाएं हैं अब तो जेलों में ? हमारे ज़माने में तो मित्र …..हमें मच्छर ही खा जाते थे ….? बदबू मारती थी ….और अंग्रेजों की दी यातनाएं तो ….जग-जाहिर थीं ! हमारे साथ तो जुल्म ढाए जाते थे !”

“मैं क्या करू….?”

“तपस्या करो …! साधना करो !! साहस के साथ हर स्थिति-परिस्थिति का सामना करो ! परवर्तन तो आएगा ….! तुम नहीं तो कोई और लाएगा …..?”

“हाँ ! ये क़ानून ….ये झूठ …और ये सब…गवाह-सबूत ….सज़ा ….?”

“अन्धकार है , बेटे ! छट जाएगा ! सफलता का सूरज जब उदय होता है ….तब ये अन्धकार …में पैदा हुए प्रेत …भाग जाते हैं ! सबेरे को लाने का प्रबंध करो ! भारत की पुकार जो तुम सुन चुके हो ….वो सही है, बेटे ! हाथ में आई बागडोर को ….अब किसी बह्काबे में आ कर …छोड़ मत देना ….?”

“जी,जनाव !”अमित ने प्रफुल्लित मन से स्वीकार था . “परिणाम जो भी हो …..जंग ज़ारी रहेगी …..! मेरा मन ठीक कहता है ….लड़ते रहो …लड़ते ही जाओ ….! फतह होगी ….और अवश्य होगी ….”

“आप से कोई मिलने आया है !” अमित को सूचना मिली थी .

“आने दो …!” अमित सजग हुआ लगा था .

एक नहीं कई सारे लोग अमित से मिलने चले आए थे !!

“कमीशन की रिपोर्ट कमाल की है ! आप सही हैं ! आप सच्चे हैं …!!”मिलने आए लोग बताने लगे थे . “अब आप की बेल हो सकती है . बाहर आ कर बातें होंगी ….” उन का आग्रह था. “आप के साथ पूरा देश है …समाज है ! अब आप अकेले नहीं हैं , अमित भाई जी !”

अमित की आँखें नम थीं . अमित का मन लोगों के प्रति आभार से भरा था ! देश के लोगों से उसे कोई शिकायत न थी . बईमान तो मीडिया था …प्रेस था ….और वो लोग थे …जो सत्ता के भूखे थे …धन के लोभी थे ….देश-द्रोही थे !

“अब आसान होगा लड़ना ….!” अमित ने आँखें पोछते हुए कहा था . “आप लोगों का …आभार …..?”

“आभारी तो हम हैं,मित्र !”जाते-जाते वो लोग कह रहे थे . “तुम जैसे दो-चार भी पैदा हो गए ….तो …भारत ….?”

जेल में बैठा अमित बेल पर न आने की जिद कर रहा था !

लेकिन मुझे चिंता थी . चिंता थी क्यों कि बिना अमित के मैं अब अधूरा-सा महसूस कर रहा था . पहली बार अपने जीवन में मैने महसूस किया था कि …अमित मेरा अभिन्न बन चुका था ! प्रान्त का प्रशाशन चलाने में मुझे उस की …पहुँच की अत्यधिक आवश्यकता थी . उस के नए-नूतन प्रयोग प्रान्त के लिए ही नहीं देश के लिए भी हितकारी थे ! अमित का सोच एक युगद्रष्टा का सोच था !!

अब अकेले में मुझे न जाने कैसे फिर से दादा जी याद आने लगे थे ?

“अचानक कलकत्ता के ऊपर काले बादल घिर आए थे ! युद्ध के काले …बादल !” दादा जी ने मुझे एक रहस्य और बतलाया था . “देश का चहेता ….देश की नाक ….और देश का मन-प्राण …सुभाष एक बारगी फिजा पर छा गया था !” दादा जी की आँखें अब मशालों-सी जल उठीं थीं . “सच कहता हूँ, नरेन्द्र ! वो घटना ….वो खबर ….और वो हवा पूरे देश को जीवंत कर गई थी ! और हमारा बैरी बना अंग्रेज …दहला गया था …! छक्के छूट गए थे ….अंग्रेजों के ….”

“पर क्यों,दादा जी ….?” में अब उत्सुक था .,,,उल्लसित था …और जानना चाहता था कि ..आखिर हो क्या गया था ?

“दशों दिशाएं बोल पड़ीं थीं ….पडौस में …कलकत्ता के ही पडौस में …गोला-बारी हो रही थी ! तोपें दन्ना रही थीं …. ! अंग्रेजों के दुश्मन …देश के दरवाज़े खटखटा रहे थे !”

“कौन थे ….?”

“जापानी थे ! और उन के साथ में थी हमारी आज़ाद हिन्द फौज ! सुभाष बाबू की बनाई फौज …हमारे देश की बनी प्रथम सेना …जो अब देश को स्वतंत्र कराने के लिए आ पहुंची थी ….?”

“पर कहाँ से ….?” मैं भी अब प्रश्न पूछता ही जा रहा था .

“बर्मा के रास्ते …कोहिमा को हासिल कर …कौक्श बाज़ार ….और अब कलकत्ता ही था ….जो उन के हाथों आना था ! सुभाष बाबू की आज़ाद हिन्द सेना सब से आगे थी . और उन्होंने ही सब से पहले कलकत्ता में प्रवेश करना था !”

“अचानक …ये सब कैसे हुआ , दादा जी ….?” मैं पूछ रहा था . मुझे यह कहानी हुछ असत्य-सी लगी थी . अब तक अंग्रेज मेरे ज़हन में एक महान शक्ति के रूप में उभर आए थे . अचानक ही उन का यों काँप उठाना मुझे जम नहीं रहा था ! “सुभाष बाबू …..?”

“सुभाष बाबू हिटलर से जर्मनी जा कर मिले थे ! उन्होंने भारत को आज़ाद कराने के लिए …हिटलर से मदद की मांग की थी . हिटलर ने नेता जी को जापान भेज कर …अपने मित्र जापान को उन की मदद करने के लिए कह दिया था ! जापान में सुभाष बाबू को सब तैयार मिला था ! पुराने लोग – रासबिहारी बोस …रजा महेंद्र प्रताप सिंह …और वो सैनिक जिन्हें जापान ने कैदी बनाया था …उन की मदद के लिए तैयार थे ! यहाँ तक कि अन्य देश …और पूरा का पूरा हिन्द-चीन नेता जी के आगमन पर प्रसन्न थे और नेता जी की मदद के लिए …तैयार थे . यहाँ आ कर नेता जी को सम्मान मिला …सहारा मिला …और धन-जन सब मिला ! उन्होंने यहाँ आ कर स्वतंत्र भारत के संविधान की संरचना की ! संगठन को खड़ा किया …बड़ा किया …और अब …अपने देश के दरवाज़े पर …आज़ादी की मशाल लिए …खड़े थे ….दरवाज़ा खटखटा रहे थे ….!!”

“आप का मतलब कि …हमारी गोला-बारी हो रही थी …?”

“हाँ,भई ! गोले दनादन …बरस रहे थे …….! अंग्रेजों के कलेजे काँप रहे थे …! उन की समझ में ही न आ रहा था कि करें …तो …क्या करें ….?”

“उन की फ़ौज …..?”

“थी तो ! पर थी -बे-मामूल ! सारी सेना तो विदेशी मोर्चों पर लड़ रही थी …? कलकत्ता पर कभी हमला भो होगा ….ये तो अंग्रेजों ने कभी स्वप्न में भी न सोचा था ….?”

“और लोग ….?”

“कलकत्ता के लोग आतंकित थे ! कलकत्ता खाली होने लगा था ! लोग शहर छोड़ कर चले जा रहे थे ! एक खलबली-सी कलकत्ता में मची हुई थी !”

“और …आप कहाँ थे ….?” मैंने हंस कर पूछा था . “भागने की सोच रहे होंगे ….?” मैंने दादा जी को कुरेदा था . “मौत से डर किसे नहीं लगता ….?” मैंने चुटकी ली थी !

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श्रेष्ठ साहित्य के लिए -मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !

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