महान पुरुषों के पूर्वापर की चर्चा !

भोर का तारा -नरेन्द्र मोदी .

उपन्यास अंश :-

चुनाव लड़ने की कला को आत्मसात करने के बाद ही वह भाई जी का दाहिना हाथ बन गया था ! वो भी जांन गए थे कि अमित अब अचूक निशाने मारने लगा था ! अब तक के लडे अट्ठाईस चुनावों में से वह एक भी चुनाव न हारा था ….?

“इस सब का श्रेय भाई जी को जाता है !” अमित ने स्वीकारा था . “और अगर अमला की अभिलाषा कभी पूरी हुई …तो वो भी भाई जी के हाथों ही होगी ! कांग्रेस का बस्ता भी भाई जी ही बाधेंगे !” वह प्रसन्न था . “बघेला …और केशू भाई भी तो दो दिग्गज ही थे …? दोनों उच्च कोटि के नेता थे …!! लेकिन भाई जी के साथ भिड़ते ही ….जौंक की तरह …पानी हो गए थे …? उन के व्यक्तिगत स्वार्थ उन्हें खा गए …!” अमित ने असली बीमारी पर उंगली धरी थी . “भाई जी …जो भी करते हैं – निस्वार्थ करते हैं ! सब के हित में और सब के लिए करते हैं !” उस ने निचोड़ निकाला था . “मैं भी बाहर निकल कर …फिर से ..बढ़-चढ़ कर वही करूंगा … जो भाई जी चाहते हैं ! हिन्दू राष्ट्र के विचार को अब हम छोटा न होने देंगे !” उस ने स्वयं से कहा था .

अमित की आँख अचानक ही दिल्ली की ओर मुड गई थी !

अमित की बेल को ले कर एक भीषण बबाल खड़ा हो गया था !

“केंद्र के तेवर तीखे हैं !” मुझे मेरे नियुक्त अधिवक्ता बता रहे थे . “केंद्र नहीं चाहता कि …अमित को बेल मिले ….?”

“क्यों ….?”

“इस लिए कि …अमित को एक …घोर साम्प्रदायिक तत्व के रूप में देखा जा रहा है !” मुझे बताया जा रहा था . “देश के गण-मान्य लोग , विचारक …विधिवेत्ता …और राज-नेता ये मानने लगे हैं कि …ये आदमी – सो कॉल्ड ‘अमित शाह’ ..पूरे देश को साम्प्रदायिकता की आग में …अकेले हाथों झोंक देगा ! अगर इसे जेल से रिहा कर दिया तो …..”

मेरा दिमाग घूमने लगा था ! घोर निराशा ने आ कर मुझे अँधा बना दिया था ! क्रोध था ….जी हाँ ! क्रोध था -जो मुझे सब कुछ जला कर राख करने की सलाह दे रहा था ! अमित के प्रति मेरा लगाव और प्यार मुझे बहुत तंग कर रहा था …! और जो मेरी राजनीतिक मज़बूरियाँ थीं …वो तो मुझ से भी बडी थीं ? मैं मात्र एक राज्य का मुख्य मंत्री ही तो था ….?

“लेकिन मुझे हर कीमत पर अमित की बेल चाहिए ….!” मैंने अपना मंसूबा कह सुनाया था .

चुप्पी छा गई थी ! सब उपस्थित लोगों को सांप सूंघ गया था ! मेरे मुख्य सलाहकार साल्वे का चेहरा पीला पड़ गया था !

“आप …समझ नहीं रहे हैं ….सर …कि …” साल्वे ने मुझे समझाना चाहा था . “आज पूरा देश दो गुटों में बंटा खड़ा है ! हिन्दू-मुसलमान की विभाजन रेखा …को अमित शाह ने रेखांकित कर दिया है ! साम्प्रदायिक सोच …नफ़रत …वैमनष्य और विग्रह …उस मोड़ पर आ कर खड़े हैं ….जहाँ देश खंड-खंड हो कर बिखर सकता है ….? और …..”

“नोंनसेन्स ….!!” मैं गरजा था . “ये सब मन-गढ़ंत कहानियां हैं , वकील साहब ! अमित शाह वैसा कोई ऐरा-गैरा , नत्थू खैरा …नहीं है ! वह मिनिस्टर है , मेरा ? वह एक जिम्मेदार नागरिक है …इस देश का …? इन आती …उड़ती …अफवाहों …के चक्कर में न आएं आप ….! पत्रकार ….मीडिया …और पार्टियाँ …सब मिले हुए हैं ! सब को ….”

“लेकिन ….क्यों ….?” साल्वे ने जोर दे कर पूछा था . उन्हें मुझ पर भी शक था .

“इसलिए कि ….चोरों को …मोदी नहीं चाहिए …!” मैंने भी दो टूक उत्तर दिया था . “आज जो साजिश चल रही है ….आप उसे समझ नहीं पा रहे हैं ….? लेकिन मैं साफ़-साफ़ देख रहा हूँ …कि …देश ….”

“जन-मत ….?”

“जुटाऊंगा ….जन-मत भी …..!!” मैंने टीस कर कहा था . “फिलहाल तो मुझे अमित की बेल चाहिए ….! एट ….एनी …कौस्ट …आई …वांट हिम …आऊट ….!!” अब मैंने आदेश दिए थे .

मैं अकेला था . निपट अकेला था – मैं ! लेकिन अनंत की आवाजें मुझे कभी भी इस तरह …निराश-उदास देख कर …चली आतीं थीं ! और तब मैं अकेला न रह जाता था !

“हिन्दू -मुसलमान का मसला बड़े-बड़े पेच खा गया है !” मैं अपने गुरु जी श्री अवधूत जी महाराज की आवाजें अचानक ही सुनने लगा था . बड़ी ही मनहूस घडी थी वो ….जब ये इस्लाम भारत आया था ….और हमने इस का आगत-स्वागत किया था ….?” उन की आवाज़ में दर्द था . “हमारी संस्कृति ….संस्कार ….और सभ्यता …गंगा जल से पवित्र हैं ! ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का मंत्र …हमारे दिमाग की ही उपज है ! संकारों से ही हम बड़े हैं ….विस्तृत हैं ….विशाल हैं ! और ये बाहर के लोग ….?” वो रुके थे .

“लालची हैं …!” मैंने एक शब्द सुझाया था .

“हाँ …….! या कि कहें – भूखे-नंगे हैं ! हमारा जैसा वैभव इन हे पास नहीं है ! अतः जो भी यहाँ आता है …उस की आँख में हमारा ये वैभव समा जाता है ! फिर वह …हमें मार कर …परस्त कर के ….छल से –बल से …घात-प्रतिघात से … हमारा सर्वस्व छीन लेना चाहता है …? वह तो हमें जीने तक का अवसर प्रदान नहीं करना चाहता ,नरेन्द्र …?”

गुरु जी की आवाज़ में एक अटूट वेदना थी !!

“घोर अमानवीय ये लोग ….मानवता को भूल …दानव बन कर हम पर …कहर ढाते हैं ! और हम ……?”

“लड़ते ही नहीं …..?” मैंने उपहास करना चाहा था .

“लड़ते हैं !” उन्होंने कहा था . “हम लड़ाके हैं ….बांके वीर हैं …. सच्चे-अच्छे सैनिक हैं !” गुरु जी हँसे थे . “लेकिन अयाश …और अहंकारी नहीं हैं ! मुसलमानों के आगमन के बाद से ही हमारी अपनी परम्पराओं का पतन हुआ ,नरेन्द्र !” वो बताते ही रहे थे .

मुसलमान -शब्द अनायास फिर आ कर मेरे गले में फांस की तरह अटक गया था !

कुछ था …कुछ ऐसा जाल था …जो मुझ पर फेंका जा रहा था -मुझे बदनाम कर – मुसलमानों का घोर बैरी सिद्ध किया जा रहा था ! मुझे हर कीमत पर मिटाने का …षड़यंत्र अपने चरम पर था !

“अब हमें मुसलमानों से क्या उम्मीदें रखनी चाहिए …?” मैंने एक अटपटा प्रश्न गुरु जी से पूछा था . “देश …अब तो आज़ाद है ……”

“कहाँ,नरेन्द्र ?” वो फिर से टीस आए थे . “कट्टर हैं , ये इस्लामी ….! इन्हें सुधारना तो दूर …..इन से तो दूर रहना तक दूभर हो जाएगा ….?” उन की द्रष्टि उठी थी . वह तनिक संभाल गए थे . “मुसलमान और ईसाई आज भी हिन्दुओं को अपनी रयाया के रूप में देखते हैं ! मौके की तलाश में हैं , ये लोग !”

“तो हम क्या करें ….?” मैंने पूछा था .

“अब हमें -अपने शाशक का रूप-स्वरुप बनाना है ! ऐसा रूप-स्वरुप जहाँ वो आम न हो कर ख़ास हो ! ऐसा स्वरुप जो एक नैतिक डर को जन्म दे ! ख़ास कर विधर्मियों के लिए हमें अब कड़े नियम-क़ानून बनाने होंगे ! सहज में उन्हें बराबरी सौंप कर फिर गुलाम हो जाना बुद्धिमानी नहीं है ,नरेन्द्र !”

गुरु जी चुप थे . मैं भी सोच में डूबा हुआ था . बात तो सच थी . लेकिन उस का सच होना संभव न लग रहा था ! देश जहाँ आ कर पहुँच गया था – वहा से लौट कर….अब सतयुग में आना …मुझे भी असंभव लगा था !

“मालिक हो ….शाशक हो …. नेता हो ….या कोई भी अगुआ हो ….उस का चरित्र अलग होता है ! और अलग होना भी चाहिए !” गुरु जी बताने लगे थे . “संकट जब गहराता है तो ….एक चरित्र ही है ….जो आदमी का साथ देता है …अपना उस का चरित्र !!” उन का कहना था .

और आज वही बात सच थी !!

मैं अफ़सोस के साथ सोच रहा था कि …जस्टिस आफ्ताव आलम जैसे उच्च कोटि के लोगों का सोच भी कितना घटिया , टुच्चा और …साम्प्रदायिक था …? उन की बेटी – शाहरुख़ ….किस कदर होनी-अनहोनी के साथ खेल रही थी …? ये लोग आज भी अपने आप को शाशक मानते थे ? आज भी उन का इरादा था कि ….

“अगर अमित शाह …जेल से बाहर आ गया तो …गुजरात में आग लग जाएगी !” मैं एक शोर सुन रहा था . “गुजरात का ही नहीं ….पूरे देश का मुसलमान …भयभीत है ….नाराज़ है ! विदेशों में भारत की छवि बिगड़ी है ! हमारे व्यापार पर भी प्रभाव पड़ा है ! लोग हमें नीची निगाहों से देखने लगे हैं ! हिन्दू साम्प्रदायिकता का ये विषैला सांप …हमारी सारी सद्भावनाओं को सटक रहा है ! सोनियां गाँधी ने कहा है …..राहुल जी भी बोले हैं ……! ममता ….और माया …का मत है ….कि ….”

“नहीं मिलेगी , बेल …..?” मैंने साल्वे को पूछा था . मेरे पसीने छूट रहे थे .

“उम्मीद …अभी बची है !” उन का उत्तर था . “प्रेस ने कहर ढा रखा है ! आप के नाम के नगाड़े बजा-बजा कर …मुसलमान नांहक में पेट पीट रहे हैं !”

“लेकिन …वो मुसलमान ….जो मेरे साथ हैं ….जो मेरे भक्त हैं ….जो मेरे लिए …..”

“वही एक आशा -किरण है …. जिसे ले कर मैं लड़ रहा हूँ !” साल्वे हँसे थे . “आप बुरे नहीं हैं ….आप को तो बुरा कहा जा रहा है !!” वह जोरों से हंस पड़े थे .

“शाशक का चरित्र,नरेन्द्र …..?” गुरु जी की आवाजें थीं .

“जी,गुरु जी ! मैं सही मईनों में …एक शाशक का चरित्र गढ़ूंगा ….! मैं आप को कभी निराश नहीं करूंगा ….मैं लडूंगा …और आप के आशीर्वाद से …जीतूंगा भी ज़रूर …..”

“अमित तुम्हारा …अभिन्न है ….?”

“मैं जानता हूँ, गुरु जी !!” मैंने स्वीकारा था .

और ….आज अमित बेल पर छूट रहा था ….!!

एक अच्छी-खासी जंग हो कर चुकी थी ! एक तूफ़ान आ कर गया था ! बेल के ऊपर पावंदियाँ थीं ….शर्तें थीं …और हिदायतें थीं …कि ….अमित गुजरात में न रहेगा !अमित – एक अजूबे की तरह …कोई सांप …या बिच्छू-सा कुछ बन कर ही …जेल से बाहर आया था ! और अमित एक अचम्भे की तरह फिजा पर छा गया था …!!

अमित से लोग मिलने आ रहे थे . अमित को मीडिया ने घेर लिया था ! अमित से प्रश्न पूछे जा रहे थे . अमित के बारे में कयास लगाए जा रहे थे !!

“मुझे अपनी नहीं , आप की चिंता खाए जा रही थी, भाई जी !” अमित मुझे बता रहा था . “अब मैं प्रसन्न हूँ ! मैं तो जहन्नुम में …रह कर भी …जिन्दा …रहूँगा !” हंस रहा था , वह. “लेकिन ….आप …..???”

“मैं नहीं मरूंगा,पगले ….!!” मैंने अमित को हिए से लगा कर कहा था .

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श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

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