पहले केवल हम चार ही लोग थे, अपने कुटुंब में छोटा और सुखी परिवार हुआ करता था हमारा कोई भी किसी भी तरह की कोई चिक-चिक कभी न थी। एकदम शान्ति रहा करती थी। अचानक हमारे कुटुम्ब में एक छोटी सी और प्यारी सी नन्ही परी का आगमन हुआ,इस नन्ही सी परी ने हमारे कुटुम्ब के बीच आकर हमारे परिवार की शांति और चुप्पी को बदल कर चहल-पहल और रौनक में बदल दिया था।

इस नन्ही परी को हमनें प्यार और दुलार से क़ानू का नाम दिया। हमें हमेशा ही अपनी प्यारी और सबसे न्यारी क़ानू को कुत्ता बोलना बहुत ही बुरा लगता है..पर है तो क़ानू कुत्ता ही। परमात्मा ने क़ानू को इसी रूप में हमारी झोली में डाल दिया,क्योंकि वो जानते थे, कि हमारे घर में रौनक और प्यार की लहर केवल यही नन्ही परी ला सकती है।

क़ानू को देख हमें हमेशा ऐसा ही लगता है,कि कोई पारियों के देश से नन्ही सी परी हमारे घर हमारे साथ रहने आयी हुई है। हमारी क़ानू इतनी प्यारी स्नेह से भरी और इतनी सुंदर है,कि हमारे पास क़ानू की खूबियों की चर्चा करने के लिए उचित शब्द नहीं हैं। वैसे तो हमनें अभी तक कोई भी मौका नहीं चूका है,अपनी क़ानू के तारीफों के पुल बाँधने का। हमें जब भी वो पल याद आता है,जब हमारे जीवन में क़ानू रूपी प्यारी सी गुड़िया शामिल हुई थी,तो बस हम एक ही लाइन क़ानू को अपनी गोद में लेकर और क़ानू के गाल पर मीठी सी पप्पी देकर गुनगुना लेते हैं…. “मेरे घर आई एक नन्ही परी,चाँदनी से हसीन रथ पे सवार”। वाकई क़ानू आयी तो आसमान से ही है,रथ में सवार ही हो कर ..एक ऐसा तोहफा है,क़ानू हमारे लिए जिसकी जगह शायद अब कोई नहीं ले सकता।


बच्चे तो अब बड़े हो गए हैं, और उन्हें अब हमारी ज़्यादा ज़रूरत महसूस नहीं होती है, हमारा ज़्यादा वक्त हमारी क़ानू-मानू के साथ ही बीतता है। अब चूँकि सर्दियाँ आ गयी हैं, और धूप भी मीठी हो गई है,इसलिए हम सारा अपना घर का काम-काज ख़त्म कर क़ानू को अपने घर के पीछे वाले पार्क में ले जाते हैं। वहाँ क़ानू खेल-कूद भी कर लेती है,खूब मस्ती करती है क़ानू हरी-भरे पौधों में। ऐसे टाइम से क़ानू को लेकर जाते हैं,जब ब्च्चों के आने का टाइम नहीं होता।


‌एक दिन क़ानू भाग-भाग कर पार्क में खेल रही थी, और हम भी पार्क में थोड़ी देर के लिए बैंच पर बैठ गए थे। तभी अचानक हमारे बड़े लड़के के कुछ दोस्त बैट और बॉल लिए पार्क में आ गए,और हम क़ानू को लेकर जाने लगे थे। तभी उनमें से एक करीबी दोस्त हमारे पास आकर खड़ा हो गया था,शायद हमसे कुछ कहना चाहता था।

हम भी क़ानू का चैन और पट्टा हाथ में लिए वहीं खड़े हो गए थे। हमारे सुपत्र का मित्र हमसे कहने लगा,”आँटी में आपके पास आने ही वाला था,दरअसल बात यह है,कि हम सारा परिवार अपने किसी रिश्तेदार की शादी में जा रहे हैं,पर एक समस्या आ खड़ी हुई है। आप तो जानते ही हैं,सुमित ने आपको मिक्की के बारे में तो बता ही रखा है..वही हमारा खरगोश..क्या करें हम मिक्की का..कहाँ छोड़ कर जाएँ उसे। अब कोई कुत्ता तो है नहीं जो साथ ले जायें.. वैसे भी मिक्की को साथ ले जाने के लिये पिताजी बिल्कुल भी तैयार न हैं। आँटी मैंने यह बात सुमित को बताई थी,सुमित ने आपसे बात करने को कहा था,क्या आप हमारे मिक्की को चार छह दिन के लिए रख सकोगे..जब तक हम शादी से लौटें”।

यह बात कोई बहुत ज़्यादा विचार करने की न थी,सुमित अक्सर मिक्की खरगोश की बहुत सारी बातें हमसे किया करता था, मिक्की की बातों से ही वह खरगोश हमारे सारे परिवार के मन को भा गया था। वैसे भी सभी मिक्की से मिलना और खेलना चाहते थे। क़ानू की कोई भी समस्या हमें नज़र न आ रही थी। बस,हमनें फटाक से कह दिया था,”जब तुम्हारा मन करे तब मिक्की को हमारे यहाँ छोड़ जाना,बस हमें ज़रा खरगोश को रखने व खान-पान का तरीका बता देना,क्योंकि हमने कभी खरगोश नहीं पाले”।

हमारी बात सुन और हाँ में हमारा जवाब पाते ही, सुमित का मित्र बहुत ही खुश हो गया था, हमें”thank you आँटी, छोड़ जायउँगा मिक्की को”,कहकर पार्क में खेल में मस्त हो गया था। हम भी क़ानू रानी को लेकर घर आ गए थे।

‌हमनें घर आकर सभी को मिक्की खरगोश हमारे साथ आकर कुछ दिन रहेगा वाली बात बताई थी। सभी घर के सदस्य मिक्की के रहने की ख़बर से बहुत ही खुश हो गए थे। बल्कि बच्चे तो बोल भो पड़े थे,”आने दो मिक्की को,खूब मज़े करेंगे मिक्की और क़ानू के साथ”।

एक दो दिन बाद ही सुमित यानी के हमारे सुपत्र का दोस्त अपनी माँ के साथ अपने खरगोश को हमारे घर छोड़ने आ गया था,खरगोश की मलकिन का कहना हुआ था,”बहनजी दो चार दिन आप हमारे मिक्की को रख लिजीये फ़िर हम आकर ले जाएँगे, बस, दिन में घास में छोड़ दीजिएगा धूप में,और बाकी का टाइम अन्दर ही रह लेगा. कहेगा कुछ नहीं मिक्की तो बेड और सोफों के नीचे ही छुपा बेठा रहता है। खाने-वाने की कोई दिक्कत नहीं है,बस जो घर में हरी सब्जियों के छिलके और हरे पत्ते होते हैं वही डाल देना मिक्की तो उनसे ही खुश रहता है”। हमनें मिक्की खरगोश की सारी जानकारी लेकर खरगोश को अपनी गोद में ले लिया था,और सुमित के मित्र और माँ से भी कहा था,”,बेफिक्र होकर जाइये अच्छे से रखेंगें हम मिक्की को”।

‌अब मिक्की खरगोश हमारी गोद में था, क़ानू के बाद हमनें मिक्की को ही गोद मे उठाया था, बहुत ही मुलायम और एकदम प्यारा सा स्पर्श था,मिक्की का। हम मिक्की को लेकर सीधा ऊपर आ गए थे, क़ानू वहीं छत्त पर कूद-कूद कर खेल रही थी…अचानक क़ानू को यह आभास हो गया था, कि हमारी गोद में कोई और है,बस तो भई अब तो क़ानू ने तेज़-तेज़ भोंकना शुरू कर दिया था,मिक्की को हमारी गोद में चिपका देखकर क़ानू से बिल्कुल भी बर्दाश्त न हो रहा था..आगे वाले दोनों हाथ हमारे ऊपर रखकर खड़ी हो गई थी.. क़ानू हमें देखकर भौंकते हुए अपनी फ्लॉवर जैसी पूँछ भी हिलाए जा रही थी.. क़ानू का भौंकना हमसे कह रहा था,”कौन है ये, उतारो इसे गोद से नीचे,आपकी गोद में मेरे अलावा और कोई भी नहीं बैठ सकता”। हम अब क़ानू से बचाकर मिक्की को अन्दर ले आए थे ।

मिक्की देखने में एकदम मोटा सा बहुत ही प्यारा एकदम सफेद कलर का रैबिट था। पिंक कलर के लम्बे-लम्बे सुन्दर खड़े हुए कान थे.. मिक्की के। एकदम छोटा सा बटन जैसा मुहँ था..अपने छोटे से बटन जैसे मुहँ को लिए मिक्की चुप-चाप सोफे के कोने में क़ानू का भौंकना सुनकर डरा-सहमा सा बैठ गया था। क़ानू ने तो पूरा का पूरा घर सिर पर उठा लिया था..हमें तो यह डर सता रहा था,कि कहीं क़ानू काट न ले मिक्की को। अगर काट लिया तो लेने के देने पड़ जाएँगे।

आख़िर क़ानू से तंग आकर हमने मिक्की को अपने घर के स्टोर रूम में बन्द करने का फैसला ले लिया था। हमनें मिक्की को गोद मे उठा स्टोर रूम में क़ानू का पुराना वाला बिस्तर बिछा कर मिक्की के बैठने का इंतेज़ाम कर दिया था,कि कहीं मिक्की को ठंड न लग जाये। घर में कुछ पत्ता गोभी और गाजर वगरैह पड़ी हुई थी,हमनें कई तरह की सब्ज़ियों के टुकड़े कर और पत्ता गोभी के पत्ते ऐसे ही मिक्की के आगे डाल दिये थे… खाने में मिक्की को पत्ता गोभी का स्वाद बहुत ही पसन्द आया था। जैसे ही हमनें मिक्की के आगे पत्ता गोभी के पत्ते डाले मिक़्क़ी खुश होकर चूक-चूक कर खाने लगा। खाना पीना मिक्की के लिए सब कुछ अंदर रख हमनें स्टोर रूम का दरवाज़ा बन्द कर दिया था।

मिक्की के घर में होने का एहसास क़ानू को पूरी तरह से था,सारी रात क़ानू को चैन नहीं आया था,रोज़ तो अपने कम्बल रज़ाई में चुप-चाप अपनी गुलाब जामुन जैसी नाक बाहर निकालकर सो जाती है,पर मिक्की के घर में आने से क़ानू की नींद उड़ गई थी। क़ानू को दो चार दिन के लिए आया हुआ मेहमान बिल्कुल भी पसन्द न आ रहा था।

क़ानू की सूँघने की शक्ति ने पता लगा ही लिया था,कि यह मिक्की का बच्चा स्टोर रूम में ही बंद है। अब तो अगले दिन ही क़ानू रानी ने स्टोर रूम के बाहर ड्यूटी लगा थी। क़ानू स्टोर रूम के दरवाज़े को सूँघते हुए इधर से उधर और उधर से इधर हो रही थी। और दरवाज़े पर अपने पँजे मार-मार कर हंगामा मचा दिया था।

अब थोड़ी सी देर के लिए हमें भी मिक्की को बाहर निकलना था। हमनें क़ानू को चैन और पट्टा लगाकर एक तरफ़ बाँध दिया था। और हमनें क़ानू को भौंकता छोड़ स्टोर रूम का गेट खोल दिया था, क्या देखते हैं, कि मिक्की इधर-उधर तेज़ी से भाग-भाग कर कमरे में खेल रहा था..पूरा का पूरा कमरा मिक्की ने सब्ज़ियों के पत्तों से गन्दा कर दिया था। हमें देखते ही मिक्की एक कोने में सहम कर चुप-चाप बैठ गया था।

हम मिक्की को प्यार से गोद में उठाकर धीरे से नीचे बगीचे की घास पर छोड़ आये थे। मिक्की फुदक-फुदक कर घास में खेलने लगा था। मिक्की को यूँ घास में खेलता छोड़ हम ऊपर आ गए थे। क़ानू अभी भी चैन और पट्टे से बँधी मिक्की को लेकर परेशान लग रही थी। पर हम भी क्या करते,जितनी देर मिक्की घास में खेल रहा था, कम से कम उतनी देर तक तो हम क़ानू -मानू को बिल्कुल भी नहीं खोल सकते थे।

हम क़ानू और मिक्की को अपने-अपने हाल पर छोड़ अपने रोज़ मरहा के कामों में वयस्त हो गए थे,अचानक हमें क़ानू के भौंकने की आवाज़ें आना बन्द हो गयीं थीं। हमनें सोचा था,”सुबह से तो उस मिक्की को लेकर टेंशन में भौंके जा रही है,थक कर वहीं सो गई होगी,रात को भी मिक्की की चिन्ता में इधर-उधर ही घूमें जा रही थी”।

थोड़ी देर बाद हमारे घर-गृहस्थ के काम ख़त्म होने के बाद अब हमनें मिक्की महाराज को अन्दर फ़िर से कमरे में बन्द करने का सोचा था”चलो!भई मिक्की महाराज हो गया बहुत खेल-कूद,अब चलो अन्दर”। पर एक हैरानी की बात हमें यह लग रही थी, कि क़ानू रानी की भौंकने की आवाज़ें बिल्कुल आनी बन्द हो गईं थीं। हमनें सोचा,”अरे!यह चमत्कार कैसे हो गया…क़ानू और चुप”। बाहर निकलकर देखा तो क़ानू का चैन और पट्टा वहीं गिरा हुआ था..और क़ानू वहाँ पर थी ही नहीं।

क़ानू को क़ानू की जगह न देख कर हम घबरा गए थे, और तेज़ी से क़ानू!क़ानू! करते नीचे सीढ़ियों की तरफ़ भागे थे..”अरे! यह क्या! क्या देख रहें हैं,हम”। हम तो बगीचे का नज़ारा देखकर एकदम हैरान ही रह गए थे…क़ानू मिक्की के साथ प्यार से खेल रही थी। अपनी काली गुलाब जामुन जैसी नाक से मिक्की को चारों तरफ़ से सूंघ कर अपनी दोस्ती अहसास मिक्की को करवा रही थी। अपने हाथों से मिक्की को इधर-उधर पलट कर अपने ढँग से मिक्की के साथ खेल रही थी,हमारी क़ानू।

अब हमारी समझ में अच्छी तरह से आ गया था,कि हमनें ही क़ानू का पट्टा ढीला छोड़ दिया था जल्दी और हड़बड़ाहट में,क्या करते महारानीजी ने हमारा दिमाग भोंकी-भोंक कर उस मिक्की मैन के पीछे ख़राब जो कर दिया था, इसलिए गर्दन में से आसानी से पट्टा निकालकर भाग आयी है।

एक बात और हमारी समझ में आ गयी थी कि.. क़ानू मिक्की को देख कर ज़ोर-ज़ोर से क्यों भोंक रही थी..दरअसल क़ानू मिक्की की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहती थी,जो हम बिल्कुल भी समझ न पा रहे थे। क़ानू और मिक्की को संग-संग खेलता देख हमारी क़ानू को लेकर चिन्ता दूर हो गई थी।

हमनें मिक्की को स्टोर रूम से निकाल कर क़ानू वाले कमरे में ही छोड़ दिया था,बस खाने-वाने के लिए ही हम मिक्की को स्टोर रूम में ले जाते थे। क़ानू ने खूब ग़हरी और अच्छी मित्रता कर ली थी,मिक्की के संग…आख़िर हमारी क़ानू-मानू ऐसी वैसी थोड़े ही थी,पूरे मैनर्स थे हमारी प्यारी सी काना में..घर आये हुए मेहमान की भला बेइज़्ज़ती कैसे कर सकती थी..काना । बहुत ही इज़्ज़त प्यार और खेल-कूद कर रखा था, क़ानू ने मिक्की को अपने संग। हमारा सारा घर क़ानू के इस मिक्की के साथ वयवहार को लेकर बेहद खुश था। इस बात पर सबने कहा था”फालतू में ही तूफान बना रखा है,आपने क़ानू को..महमान नवाज़ी करना तो कोई क़ानू से सीखे”।

इसी तरह सुमित के मित्र के वापिस आने तक हमारे क़ानू और मिक्की के संग काफी अच्छा समय निकला था। शादी से वापिस आने के बाद ही सुमित का मित्र मिक्की को वापिस हमारे घर लेने आ गया था। और मिक्की को स्वाभाविक अपने घर जाना ही था। हमें और हमारी प्यारी सी क़ानू को मिक्की खरगोश बहुत याद आया।मिक्की खरगोश की याद में क़ानू बहुत उदास रहने लगीं थी, हमसे क़ानू की यह उदासी देखी न गई और हमने सुमित के मित्र से इज़्ज़ाज़त लेकर क़ानू को रोज़ शाम को मिक्की के घर मिक्की संग खेल-कूद कराने ले जाने लगे।

क़ानू अब पार्क न जाकर रोज़ शाम को मिक्की खरगोश के संग खेल-कर खुश रहने लगी थी। और एक बार फ़िर नयापन लिए मिक्की खरगोश और क़ानू संग ज़िन्दगी फ़िर से हमें और हमारे परिवार को लेकर चल पड़ी थी, क़ानू-मानू के साथ।