काग भुषंड की बात सभी को कारगर लगी थी। मुगालते में ही मरेगा आदमी – यह बात सभी को जंच गई थी।

“मौका यही है मित्रों!” लालू ने काग भुषंड का समर्थन किया था। “आदमी की आंख अब ऊपर लगी है तो हम सब मिल कर अब इसे स्वर्ग भेज देते हैं।” वह हंसा था।

“स्वर्ग जाने का तो आदमी का मन भी बहुत है भाई।” चुन्नी ने एक किलक लील कर कहा था। “अब उठा देते हैं इसका भी बोरिया-बिस्तरा!”

एक रण नीति तय होती जा रही थी। पृथ्वी राज बड़े ही धैर्य से होते संवाद सुन रहा था। उसे एहसास हो रहा था कि कोई न कोई विकल्प अवश्य सामने आएगा और अजेय बना ये आदमी अबकी बार मूंह की खाएगा।

“सनद रहे सभासदों!” शशांक ने फिर से हाथ उठा कर अपनी अंतिम बात को अंजाम दिया था। “भनक भी न लगे आदमी को हमारे इरादों की।” उसने अपनी गोल गोल आंखें घुमाई थीं। “हमें अपनी हर योजना, हर चाल और हर हाल गुप्त रखना होगा।” उसने सुझाव दिया था। “गद्दार भी तो हमीं में से हो सकते हैं?” उसने पूरी सभा को घूरा था। “जरूरी है कि हम अपने तयशुदा उद्देश्य को लेकर वफादार बने रहें! लेकिन ..”

“गद्दारों पर मेरी नजर रहेगी शशांक!” लालू ने एक घोषणा जारी की थी। “गद्दारों को हम मौका ही नहीं देंगे कि कोई गद्दारी करने के लिए मजबूर हो! लेकिन फिर भी ..”

“गद्दारी भी एक नशा है लालू जी!” नकुल ने नंगी तलवार जैसी बात को सभा के बीचों बीच फेंक दिया था। “कुछ लोगों को तो गद्दारी करने में आनंद आता है। चाहे किसी का कितना ही बड़ा अहित हो जाए लेकिन गद्दार तो मानेगा ही नहीं ..”

“इसके लिए फिर दंड प्रक्रिया का प्रावधान हो – तो ही बेहतर होगा!” अब पृथ्वी राज ने एक सुझाव सामने रख दिया था। फिर उसने गरुणाचार्य की ओर देखा था। “पूज्य वर! आपका क्या मत है?” उसने प्रश्न पूछा था।

“गद्दारों के पर पहले ही काटने होंगे – पृथ्वी राज!” गरुणाचार्य एक लम्बे सोच के बाद बोले थे। “दंड प्रक्रिया अकेले काम नहीं करेगी। इसमें इनाम इकरार काम करेंगे।” उन्होंने एक नया मत सामने रक्खा था। “बहकते कदम को चहकने से पहले ही निहाल कर दिया जाए तो कैसा रहेगा?” गरुणाचार्य ने एक प्रस्ताव सामने रक्खा था।

एक श्रेष्ठ उपाय सामने था। सबने करतल ध्वनि से गरुणाचार्य के प्रस्ताव का स्वागत किया था और उसे स्वीकार भी किया था।

“हमने आदमी के साथ मिलकर युद्ध लड़े हैं मित्रों!” हुल्लड़ ने सूंड़ उठा कर एक ऐलान जैसा किया था। “हम से ज्यादा आदमी को कोई नहीं जानता।” उसने एक सच सामने रख दिया था। “हमने युद्ध होते हुए देखे हैं, जीतते हुए देखे हैं और हारते हुए भी देखे हैं! आदमी को आदमी का लहू पीते देखा है हमने।” हुल्लड़ बहुत भावुक था। “जम आदमी के दिमाग पर युद्ध सवार होता है तो वह पागल हो जाता है। जितना सीधा सादा वह दिखाई देता है उससे कई गुना दानव भी बन जाता है लड़ाई के दौरान!”

“कहना क्या चाहते हो भाई?” नकुल ने कटाक्ष किया था। “इस समर सभा में हम आदमी के बड़प्पन का गुणगान करने इकट्ठा नहीं हुए हैं मित्रों! हम उसे जान गये हैं कि वह घटिया है, सनकी है और लालची है!”

“मैं भी बस यही बताना चाहता था नकुल महा मंत्री जी कि किसी भी तरह हमारी इस महा मुहिम की भनक अगर आदमी को लगी तो हमारी खैर नहीं!”

हुल्लड़ की बात समर सभा के ऊपर छा गई थी। आदमी का रूप स्वरूप फिर से सब के कलेजे कंपा गया था।

“इससे पहले कि आदमी को होश आये हमारा हमला हो जाए!” लालू ने सही पत्ता समय के हिसाब से फेंका था।

“और अगर चूक हुई तो .. मार डालेगा हम सब को भाई जी!” हुल्लड़ ने भी बात का तोड़ किया था। “बहुत बेरहम है ये आदमी! जालिम है जालिम! मैं आपको बताए देता हूँ कि ये यातनाएं देने में निपुण है और जान लेने में प्रवीण है!”

हुल्लड़ की घोषणाओं की प्रतिक्रिया सभी जमा पदाधिकारियों पर हुई थी। सभी को अपने अपने गले चाक होते नजर आये थे। आदमी का खौफ पहले ही बहुत था लेकिन अब हुल्लड़ की बजाई तुरई से तो सब के प्राण ही सूख गये थे। अब सबने एक साथ अनायास ही डाल पर ऊपर बैठे काग भुषंड को देखा था।

शैतान से शैतान ही लड़े तो फतह होने की उम्मीद बढ़ जाती है! काग भुषंड किन्हीं मायनों में आदमी से भी ज्यादा मक्कार और बेरहम था। आदमी के पास अगर हाथ थे तो काग भुषंड के पास पर थे। आदमी जब जमीन पर भागता था तो काग भुषंड हवा से बातें करता था।

“काग भुषंड जी संबोधन नकुल ने किया था। “अब तो हर आंख आप पर ही लगी है। आदमी की अक्ल से आगे केवल आप ही कुछ सोच सकते हैं!” उसने हंस कर अन्य सभी सभासदों की ओर देखा था।

नकुल की बात हर किसी को जंच गई थी।

“मैंने भी बहुत सोचा है मित्रों!” काग भुषंड ने अपने पंख फड़फड़ाए थे। “मैंने आदमी को अब हर रोज नापना आरम्भ कर दिया है।” उसने आंखें मटका कर लालू को घूरा था। लालू भी तनिक कुनका था। बढ़ा हुआ काग भुषंड का कद लालू को खटक गया था। “सबसे पहले मैंने इसके मित्रों को इसका शत्रु बनाने की सोची है!” काग भुषंड ने एक दूर की कौड़ी लाकर सभा के बीचों बीच फेंक दी थी।

चुन्नी ने काग भुषंड को नई निगाहों से देखा था। लेकिन हुल्लड़ काग भुषंड की बात सुनकर मुसकुराया था।

पृथ्वी राज को लगा था जैसे कोई सोची समझी रणनीति उस सभा में खेली जा रही थी। उसने नकुल को सावधान किया था। पीछे बैठी तेजी भी तनिक तन आई थी। शशांक ने जंगलाधीश के तने तेवरों को देख लिया था। और अब उसने लालू से आग्रह किया था कि वह बात को बिगड़ने न दे!

काग भुषंड अपनी मक्कारियों के लिए बदनाम तो था ही। गरुणाचार्य ने भी अपनी बुद्धि पर धार धरकर काग भुषंड की अगली चाल को ठीक से समझने का प्रयत्न किया था।

मेजर कृपाल वर्मा

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